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हमें यह समझना होगा कि 21वीं सदी के भारत में सिर्फ जाति के भरोसे विकास एवं बराबरी संभव नहीं: लक्ष्मी सिन्हा

बिहार पटना:-राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहां की लड़कियों की शिक्षा से सामाजिक क्रांति’ पढ़ा। किसी भी राष्ट्र के विकास में महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य है। हिजाब, घूंघट, दहेज, तीन तलाक और दुष्कर्म की घटनाओं के बीच अच्छी खबर यह है कि लड़कियां शिक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रही हैं। हल्की एक खबर के अनुसार दक्षिण भारत में आइआइटी मैं लड़कियों की संख्या पिछले पांच साल में 19 प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत को पार कर गई है। यह किसी सामाजिक क्रांति से काम नहीं है। कुछ साल पहले तक लड़कियों को विशेष कर लड़कों के मुकाबले कमजोर मानकर गणित के बजाय होम साइंस पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था। आज स्थिति बदल रही है। लड़कियां विज्ञान और गणित के क्षेत्र में भी अपना दमखम साबित कर रही है और कई बार तो लड़कों से बेहतर प्रदर्शन करती है। स्पष्ट यह है कि सरकार ने उन्हें मौका दिया और सही समय पर कदम उठाए तो परिणाम सामने है। क्या जाति के विभाजनकारी और अवैज्ञानिक विमर्श के बीच. सामाजिक बराबरी और सौहार्द के लिए यह कदम ज्यादा सार्थक नहीं है? 21वीं सदी के भारत में सिर्फ जाति के भरोसे विकास और सच्ची बराबरी संभव नहीं है। आज देश में लड़कियों की शिक्षा के लिए उठाए कदमों के बहुत अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। हाल में चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे भी अनेक महिला वैज्ञानिकों का योगदान रहा। युवा वैज्ञानिक पुरस्कार अपने वालों में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। पिछले 100 वर्ष तक महिला वैज्ञानिकों में सिर्फ एक विदेशी मैडम क्यूरी कहीं नाम इस देश के लोग जानते रहते हैं, लेकिन अब विज्ञान के कई क्षेत्रों में भारत की महिलाएं भी अपना नाम दर्ज कर रही है। संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षाओं के परिणाम तो पूरे देश जानता है। वर्ष 2022 की परीक्षा में पहले पांच में चार लड़कियां थीं। उससे पिछले चार वर्षों में भी लगातार लड़कियां ही टाप करती रही है। हर वर्ष सिविल सेवा परीक्षा में लड़कियों की सफलता लड़कों के मुकाबले कई गुना अधिक रहती है। ज्यादातर राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं की परिणाम हो या सीबीएसई के रिजल्ट, लड़कियों की सफलता भविष्य के प्रति उम्मीद जताती है। जो रक्षा सेवाएं दशकों तक महिलाओं के लिए बंद रही, उनके दरवाजे भी अब खुल गए हैं। लगभग 10,000 महिला अधिकारी इस समय देश की तीनों सेवाओं में काम कर रही हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। बावजूद इसके उनके साथ भेदभाव की खबरें भी आती रहती है। श्रीमती सिन्हा ने आगे कहा कि मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं के लिए संसद में 33% आरक्षण का प्राविधान इस दिशा में एक बहुत सकारात्मक कदम है। ऐसे राजनीतिक कदम का संदेश दूर तक जाता है। 73वें और74वें संविधान संशोधन के द्वारा पंचायती राज और नगर निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का प्राविधान किया गया, उसके बहुत अच्छे परिणाम आए हैं। फिर भी भारत के लोकतंत्र में महिलाओं को वहां स्थान नहीं मिला, जिसकी वे हकदार है। महात्मा गांधी ने 1925 में जब सरोजिनी नायडू को कांग्रेस अध्यक्ष के लिए नामित किया था, तब तक महिलाओं की ऐसी बराबरी की बात यूरोप, अमेरिका और चीन में भी नहीं होती थी। अभी भी राजनीतिक में जो महिलाएं सक्रिय हैं, वे ज्यादातर राजनीतिक घरानों से संबंध रखती हैं। महिला शिक्षा के जरिए इस वंशवादी लोकतंत्र में भी बदलाव संभव होगा, लेकिन महिलाओं की सच्ची बराबरी के लिए अभी बहुत प्रयास करने होंगे। मौजूदा लोकतंत्र में भी महिलाओं का प्रतिशत मात्रा 14 है, जो दुनिया में लोकतंत्र के पैमाने पर बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। यूरोप, अमेरिका और कई देशों के संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50% से भी ज्यादा है। अफ्रीका के रावांडा की संसद में तो 60% महिलाएं हैं। दुनिया के किसी भी देश को मानवीय आधुनिकता के संदर्भ मैं महिलाओं की बराबरी के पैमाने से ही आंका जा सकता है। इस मामले में जहां यूरोप, अमेरिका दुनिया भर में अव्वल है तो मुस्लिम देशों में महिलाओं की स्थिति बहुत निराशाजनक है। सरकार के स्तर पर महिला उत्थान के जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनमें पूरे समाज को भी सक्रिय भूमिका निभानी होगी। तभी महिलाओं की स्थिति पूरी तरह सुधार सकेगी। समाज को सोच बदलने की आवश्यकता है। नारी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयासों के अलावा परिवार और समाज को भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

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