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‌तालीम की तलब और इल्म की इमारत मोहम्मद गुलरेज अंसारी

जमशेदपुर। धागे बुनते वक्त, धागों को जोड़कर कपड़े बनाते वक्त और कंधो पर कपड़े को लाद कस्बों में रिश्ते वक्त, बचे वक्त में स्कूल जाते बच्चों की पीठ पर लदे बस्तों को मैंने ठीक है हसरतों से निहारते वक्त उन्हें तालीम की जो तलब हुई थी वह उनके ख्वाबों में इमारत की शक्ल अख्तियार करने लगी। बचपन में गुजारी मुफलिसी ने उन्हें इतना लगा कर दिया था कि अब और कोई गरीब बच्चा पढ़ने की हसरत मन में तबाए न रह जाए। अब्दुल कय्यूम अंसारी और सुहैल अजीमाबादी के उसूलों से उन्होंने प्रेरणा लेकर यह तय कर लिया कि मोमिनों और आदिवासियों में शिक्षा का अलख जगाना उनका पहला कर्तव्य। इसी इरादे से उन्होंने 1946 में अपने गुरु अब्दुल कय्यूम अंसारी के नाम पर एक स्कूल इरबा में स्थापित किया। गांव-गांव घूमकर उन्होंने यह अलख जगाना शुरू किया कि लड़के हो या लड़कियां सब को स्कूल भेजो, वही ईल्म की इबादतगाह है। उनकी धर्मपत्नी नफीरू‌ननिशा उनकी शादी के वक्त साक्षर नहीं। अब्दुर रज्जा़क अंसारी ने सबसे पहले उन्हें साक्षर और शिक्षित करने का काम घर से शुरू किया। पति और पत्नी ने मिलकर धीरे-धीरे उस इलाके में 17 स्कूलों की स्थापना की। उन्होंने ओरमांझी में एक हाई स्कूल की स्थापना भी की जहां उन 17 स्कूलों से पास किए हुए बच्चे पढ़ने आते थे।
नियोजन की योजना: सहकारिता आंदोलन
अपने इर्द-गिर्द अवस्थित समाज के आखरी बच्चे तक शिक्षा मुहैया करने का बीड़ा जब उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा कर लिया तो अपने लक्ष्य के दूसरे मुहिम में जुट पड़े, और यह मुहिम थी इन लोगों को रोजगार से जोड़ना। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले इरबा गांव में ही बुनकर सहकारी समिति की नींव डाली जो आज यहां की सबसे बड़ी नियोजक संस्था बन चुकी है।
बुनकर समिति: समाज की आर्थिक संरचना का आधार
अब्दुर रज्जा़क अंसारी के ऐसे कार्यों से समाज न केवल शिक्षित हुआ वरन आर्थिक संरचना भी मजबूत हुई। बुनकर समिति के अभूतपूर्व प्रयास से छोटा नागपुर मेही रीजनल हैंडलूम विवर्स को-ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड’की स्थापना की गई। उन्होंने जाति, धर्म से ऊपर उठकर काम किया और बुनकर सशक्तिकरण को एक नया आयाम दिया।
शिक्षा और रोजगार के बाद की कड़ी: स्वास्थ्य का वादा
सबसे पहले शिक्षा के दीप घर-घर में जलाना, उसके बाद भी उस दीप के आलोक में जीवन शैली को आलोकित करना और उसके बाद भी जीवन के दीप को निर्वात जलते रहने हेतु स्वास्थ्य की कसौटी पर खरे उतरने का वादा करना-यह तीन मूल मंत्र थे अब्दुर रज्जा़क अंसारी के, जो उन्होंने अपने समाज को देने का वादा किया था पूरा भी किया। इसी वादे को तामील करने हेतु उन्होंने लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं देने के लिए प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। कई , चिकित्सा, रोजगार नी‌ंव रखें।

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