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बांग्लादेश धर्म महासम्मेलन में आनंद मार्ग ने कहा आध्यात्मिक अनुशीलन एवं कुसंस्कारों के विरूद्ध संग्राम से ही शांति संभव है


जमशेदपुर : जमशेदपुर के कोलकाता रीजन के रीजनल सेक्रेटरी आचार्य नवरूणानंद अवधूत के प्रयास से रांची आनंद मार्ग जागृति रातू रोड से बांग्लादेश श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख दादा का प्रतिनिधित्व करने रांची से बांग्लादेश धर्म महासम्मेलन को संबोधित करने गए सीनियर पुरोधा आचार्य विमलानंद अवधूत बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हिस्टोरिकल रामना काली मंदिर, ढाका यूनिवर्सिटी के पास में आयोजित किया गया। आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया।किसी कारणवश श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत बांग्लादेश नहीं जा सके। उनके प्रतिनिधित्व के लिए वरिष्ठ पुरोधा आचार्य विमलानंद अवधूत को धर्म महासम्मेलन को संबोधित करने के लिए संस्था की ओर से भेजा गया। बांग्लादेश में साधकों की संख्या काफी थी लोग काफ़ी उत्साहित थे। साधक साधिकाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में गुरु सकाश, पाञ्चजन्य एवं योगासन का अभ्यास अनुभवी आचार्य के निर्देशन में किया।
संध्याकाल में सामूहिक धर्म चक्र व गुरु वंदना के उपरांत “रावा “की ओर से प्रभात संगीत पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया गया। विदित हो कि प्रभात संगीत संगीत का एक नया घराना है जिसे आनंद मार्ग के संस्थापक श्री प्रभात रंजन सरकार उर्फ श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने दिया है । वरिष्ठ पुरोधा आचार्य विमलानंद अवधूत जी ने प्रवचन में कहा कि “आध्यात्मिक अनुशीलन एवं कुसंस्कारों के विरूद्ध संग्राम से ही शांति संभव है”

उपस्थित साधक- साधिकाओं को संबोधित करते हुए आचार्य विमलानंद अवधूत ने कहा कि व्यक्तिगत एवं सामूहिक जीवन में शान्ति ही आदर्श मानव समाज की पहचान है।
आध्यात्मिक अनुशीलन एवं कुसंस्कारों के विरूद्ध संग्राम से ही शान्ति संभव है।
आदर्श मानव समाज की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि प्रथमतः मनुष्य की जरूरतों एवं मन की बात को समझकर, समाज के विधि- निषेधों को बनाना आवश्यक है।
मनुष्य का दैहिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास हो सके उसका ध्यान रखना द्वितीय विशेषता है।
सत्य को ग्रहण कर दिखावे वाले मान्यताओं, भावजड़ता, अंधविश्वास को नहीं मानना, यह आदर्श समाज व्यवस्था की तृतीय विशेषता है।
सामाजिक एकता की प्रतिष्ठा, सामाजिक सुरक्षा और शान्ति (मन की साम्यावस्था) आदर्श समाज व्यवस्था के मौलिक बिंदु हैं। सामाजिक एकता के लिए साधारण आदर्श, जातिभेद हीन समाज, सामूहिक सामाजिक उत्सव एवं चरम दण्ड प्रथा का ना होना आवश्यक पहलू है।
सुविचार(Justice) एवं श्रृंखला बोध या अनुशासन से ही सामाजिक सुरक्षा संभव है।
आध्यात्मिक अनुशीलन एवं कुसंस्कारों के विरूद्ध संग्राम से ही शान्ति पाया जा सकता है।
नीति ( यम – नियम) है मानव जीवन का मूल आधार, धर्मसाधना माध्यम और दिव्य जीवन लक्ष्य है।
आचार्य ने कहा कि उपरोक्त सभी तत्त्व आनन्द मार्ग समाज व्यवस्था में मौजूद है।

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