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काजल की कोठरी में भी रह कर वे जीवन भार बेदाग रहे, लेखन, प्रख्यात शिक्षवाद prof जावेद अख्तर अंसारी।

जमशेदपुर। साल की उम्र तक यह बालक अपने परिवार के विरासत के मुताबिक बुनकरो के काम में लगे रहे, शिक्षा की कोई सहूलियत नहीं थी, चुके यह परिवार बहुत गरीब था. या यू समझे की सबसे गरीब परिवारों में एक था. बुनाई कर रोजगार से जो भी थोड़ा बहुत मुनाफा हो पाता था, यह सब दो जून की रोटी जुटाने में ही खत्म हो जाती थी. अक्सर रात की नींद पेट पर पट्टी बाँध कर, बारह वर्ष तक अब्दुल रज्जाक अंसारी ने न तो गाय के दूध का स्वाद चक्का था नहीं रोटी के टुकड़े का स्वाद मिठास का अभ्यास हो पाया था. इस बात को लेकर उनके साथी मित्र उनका मखौल उड़ते थे. किसी ने नहीं सोचा था एक दिन अब्दुल रज्जाक अंसारी बालक सामाज के विकास का एसा परचम लहराएगा समाज के सारे दबे कुचले पिछड़े वर्ग गरीब, दलित, अदीवासी, पिछड़े अल्पसंख्यकों. बुनकरो, दुखियारा और दुखी के निवारण हेतु आएगा और राष्ट्र एकता अखण्डता की मजबूती नीव रखेगा. बालक अब्दुल रज्जाक अंसारी लगभग 15 किलो मीटर दूरी तय कर छोटे से कस्बे इरबा से रांची की प्रतिदिन यात्रा करना एक मकसद से आरंभ किया कुछ समान बिक जाए दिल से बुने हुए कपड़े इतने खूबसूरत और बेह्तरीन किस्म के होते थे कि चुटकियां मे बिग जाते थे. लगभग सारे कपड़े 10 बजे बिक जाने के बाद वहां पास के ही खान बहादुर हाबीबुररहमान द्वारा खोले गए स्कूल के गेट के पास कौतूहल वास खड़ा रहता था एक दिन उस स्कूल के प्राध्यापक ने उसे अंदर बुलाया और पर्तेंदिन उसके वहां खड़ा रहने का कारण पूछा इस बालक ने सरलता से पढ़ाई के इच्छा जाहिर की, प्राध्यापक ने बच्चे के पीड़ा समझ कर तत्काल उसे पढ़ने की इजाजत दी इस छूट के साथ दे दी वह देर से आ सकता है और जल्दी जा सकता है. इस बालक ने छोटा नागपुर उर्दू मार्ककज उत्थान की नीव राखे.. 1946 की अंतिम लड़ाई चरण मे सारा देश विभाजन के अंधी के चपेट मे संतुलनहीन था. उस वक्त मुस्लिम लीग के कुप्रभाव प्राचार्य से बचने के लिए उन्हों ने 1946 के चुनाव मे पहले उड़ान देश के हित मे भरी छोटानागपुर छेत्र यह चुनाव श्री अब्दुल रज्जाक अंसारी के निर्ततित मे कराया गया उनके चामत्कारिक निर्ततित का असर यह हुआ कि छोटानागपुर प्रमंडलीय के पांचों सीट काँग्रेस की झोली में डाली. मुस्लिम लीग को जबरदस्त शिकस्त दी समाज की पिछड़ों वर्ग को उन्नति के लिए सदैव तत्पर रहे सरदार पटेल के दरबार में उनके लिए दरवाजे खोल दिया गए थे 1946 के बाद उन्हें दिल्ली बुलाया गया. हाजी अंसारी साहब की मकबूलियत का रोजनामा मीनार है. आज उनकी जनकल्याणकारी भयावना का नतीज़ा है कि बुनकरो की विख्यात संस्थान, समितियों के माध्यम से लग भग 14000 बुनकरो की रोटी रोजी-रोटी की समस्याओं का समाधान सफलतापूर्वक संपन्न हो रहा है. अनेकानेक समिती के साथ साथ एकीकृत बिहार मे कैबिनेट मंत्री पद पर सुशोभित हुए वे सक्रिय राजनीति से आजीवन जोड़े रहे अपने युग के महान हस्तियों से उनके गहरे रिसते रहे, पूर्व प्रधान मंत्री श्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ जाकिर हुसैन, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, श्री के बी सहाय, श्री कृष्ण, केदार पांडे, कर्पूरी ठाकुर, बिनदेसवारी दुबे, भागवत आजाद, अब्दुल क्यू यूंमा अंसारी डॉ जगन्नाथ मिश्र सैकड़ों की संख्या में नाम उल्लेखनीय है, विशेषकर मदर टेरेसा भी सामिल है।

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