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परिवारवाद की राजनीतिक कोई कस सकता है तो केवल और केवल जनता जनार्दन: लक्ष्मी सिन्हा

पटना। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने काकी परिवारवाद की बेलगाम राजनीतिक भारतीय राजनीतिक की एक वास्तविकता से बखूबी परिचित इसमें कोई संदेह नहीं की परिवारवादी राजनीतिक दलों वाली व्यवस्था में लोकतंत्र आदर्श रूप में पुष्पित_पल्लवित नहीं हो पाता। फिर ऐसे लोकशाही और राजशाही में कोई फर्क नहीं रह जाता है। उसमें सामान्य राजनीतिक कार्यकर्ताओं की नियति सिर्फ पार्टियों के प्रथम परिवार की पालकी ढोने तक सिमटकर रह जाती है। उनके हिस्से में अपेक्षाकृत कम महत्व के दायित्व आते हैं, क्योंकि शीर्ष पद तो सदैव प्रथम परिवार के लिए आरक्षित रहते हैं और यह सिलसिला पीढ़ी _दर_पीढ़ी चलता रहता है। ऐसी स्थिति में प्रतिभाओं की उपेक्षा एवं अपमान स्वभाविक ही है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा निःसंदेह राजनीतिक दलों ने यह जो व्यवस्था बनाई है, बात तंत्र में लोक के भरोसे का अवमूल्यन कर लोकतंत्र की अवधारणा को प्रश्नंकित करती है, किंतु यह भी उतनी ही कड़वी सच्चाई है कि तंत्र की इस निरूपित होती तस्वीर के लिए जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है। जब वह एक के बाद एक चुनावों में परिवारिक मिलिकयत के माफिक चलने वाले राजनीतिक दलों को सत्ता की कुंजी सौंपती है तो इससे इन दलों की ही मन बढ़ता है। ऐसे में परिवारवाद की बेलगाम होती राजनीतिक की लगाम और कोई कर सकता है तो केवल और केवल जनता जनार्दन। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि वह इस पर जितना विवेकसम्मत निर्णय करेगी, लोकतांत्रिक व्यवस्था उतनी ही बेहतर बनेगी

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