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गोधूली गौंवो का रंभाना अच्छा लगता है।

विभावरी विहंगों का चहकना
कांक्षित कोयली का कुहूकना
मुक्त मुक्त्ता का नहाना
अच्छा लगता है।

वक्ष कंवल कुलवंती का
कच्चा आम अमराइयों का
मंजरित जुड़े का महकना
अच्छा लगता है।

द्वारे द्वारे सजी संध्या
राह निहारती रति रंध्या
गोधूली गौंवो का रंभाना
अच्छा लगता है।

रम्य राम्या के आलिंगन में
मुकलित हो अकुलाना
कूप कुसुमा का कुसुमाना
अच्छा लगता है।

उषा बेला
उषा की अंगड़ाइयां।
देख दर्पण सहेज शर्माना
अच्छा लगता है।।

स्वरचित रचना आचार्य दिग्विजय सिंह तोमर अंबिकापुर। 14 अक्तूबर 2022.

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