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आदिवासियों के रक्षार्थ झामुमो को उखाड़ फेंकना जरूरी : सुरेश सोय

चाईबासा। ईचा खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान के अध्यक्ष बिर सिंह बुड़ीउली, संयोजक दशकन कुदाद: और विधि सलाहकार सुरेश सोय के संयुक्त नेतृत्व में प्रखंड तांतनगर के ग्राम जोजो सिंडी और मरं सिंडी में ईचा डैम (स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना) से होने वाले दुष्प्रभाव के प्रति ग्रामीणों के बीच जागरूकता अभियान चलाया गया। जिसकी अध्यक्षता ग्रामीण मुंडा दीनबंधु कालुंडिया ने की । झामुमो की चंपई सरकार द्वारा ईचा डैम रद्द करने से मुखरने के बाद कोल्हान के 87 गांव के प्रभावित ग्रामीणों में आक्रोश देखने को मिल रहा है । विस्थापितों में रोष होना लाजमी है क्यों की झामुमो ने यहां के आदिवासियों और मूलवासियों से चुनाव के पूर्व ये वादा किया था हमारी सरकार बनी तो ईचा डैम पूर्ण रूप से रद्द कर दिया जाएगा। आदिवासी मूलवासियों द्वारा चुनी हुई झामुमो की सरकार से उम्मीद के विपरीत कार्य कर डैम का स्वरूप बदलने और विस्थापितों को डबल मुआवजा देने का नया झुमला देना शुरू किया है । आज मुख्यमंत्री, मंत्री और उनके विधायकों को इसका खामियाजा विरोध के रूप में सामना करना पड़ रहा है। संघ कोल्हान के 87 गांव में झामुमो को घुसने नही देने का एलान कर चुकी है। आज इसी कड़ी के तहत ग्राम सिंडी में संघ के द्वारा ग्रामीणों को वादा खिलाफी का जवाब वोट से झामुमो को देने का अपील किया गया जिसका समर्थन ग्रामीणों ने एक साथ हांथ उठा कर किया। संघ के विधि सलाहकार ने कड़े शब्दों में कहा कि आदिवासियों के रक्षार्थ कोल्हान से झामुमो को उखाड़ फेंकना जरूरी हो गया है। आदिवासी सरकार द्वारा पूंजीपतियों के मिलीभगत से आदिवासियों विरुद्ध षड्यंत्र रचने का काम कर रही है। झामुमो भगाओ अभियान अब विस्थापित गांव के घर घर जाकर लोगों को जागृत करेगी। आंशिक रूप से डूबने वाले गांव के ग्रामीणों को इस अभियान हिस्सा बनाया जा रहा है। साथ ही उच्च न्यायलय में जन हित याचिका दायर करने हेतु धन संग्रह का अभियान शुरू किया गया। ताकि इस आंदोलन को न्याय मिल सके। और 126 गांव के सामाजिक, पारंपरिक, धार्मिक और आदिवासी रुढ़ी जन पारंपरिक व्यवस्था को बचाया जा सके। मुख्य रूप से श्याम कुदादा,लालू कालुंडिया,सालूका कालुंडिया योगेश कालुंडिया, गुलिया कालुंडिया, बब्लू बरजो,सुनील बाड़ा,रोबिन अल्डा, असाई कालुंडिया लक्ष्मी कालुंडिया,मंजू कालुंडिया,बिरसा गोडसोरा, सालुका बारी सुनील बाड़ा डोबरो कालुंडिया, आंदोलनकारी और ग्रामीण शामिल थे।

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