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दीपावली को लेकर तेज हुई कुम्हारो के चाक की रफ्तार लोगों के घर आंगन के रोशन करेंगे घर के दीए

नेहा तिवारी
प्रयागराज; शंकरगढ़ चाइनीज समानों पर प्रतिबंध लगने से इभ बार दीवाली को लेकर कुम्हारो की चाक की रफ्तार तेज हो गयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हार दिन रात काम कर रहे हैं। कुम्हारो को उम्मीद है कि उनका पुस्तैनी कारोबार फिर से लौट आएगा। दीपावली पर इस बार लोगो के आगन मिट्टी के दीए से रोशन होगे। बाजार में मिट्टी के दीए बिकने के लिए पहुच गए हैं। लोगो ने दीए की खरीदारी भी शुरू कर दी है। गांव में सादियो पारंपरिक कला उधोग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में जहा पूरा सहयोग मिलता रहा वही गांव में रोजगार के अवसर भी खूब रहे। इनके से नगर सहित ग्रामीण क्षेत्र में कुम्हारी कला भी एक रही जो समाज के एक बड़े वर्ग कुम्हार जाति के लिए रोजी – रोटी का सारा रहा।
पिछले कुछ वर्षो में आधुनिकता भरी जीवनशैली के दौर में चाइनीज़ सामानो ने इस कला को बहुत पीछे धकेल दीया था। पिछले दो बर्षो में खास बदलाव आया है और एक बार फिर गांव की लुप्त होती कला की पटरी पर लौटने के संकेत मिले है कुम्हारी कला में निर्मित खिलौने, दीयाली, सुराही व अन्य मिट्टी के बर्तन की मांग बढ़ी तो कुम्हारो के चहरे खिल गए। शंकरगढ़ विकास खंड क्षेत्र के आज भी कुम्हार मिट्टी के दीये के साथ ही बच्चो के खिलौने आदि बनाते हैं। रोजगार का जारिया बनेगी पुश्तैनी कला वही ग्रामीण क्षेत्रों के कुम्हार समाज के युवाओ का कहना है कि बदली सोच से लग रहा है कि हम नव युवको के लिए हमारा पुश्तैनी कला व्यवसाय एक बार फिर रोजगार का जारिया बनेगा। सरकार कुछ आर्थिक सहयोग के साथ तकनीक तौर पर बिजली से चलने वाला चाख तथा मिट्टी खनन की समुचित व्यवस्था मुहैया करा दे अगर तो और आसान हो जाएगा लेकिन अब लोग फिर मिट्टी के सामान को प्रमुखता देने लगे हैं। लोगो का विदेशी समान से मोह भंग हो रहा है। चाइनीज़ झालरो ने ले ली थी जगह उल्लेखनीय है की चाइनीज झालरो व मोमबत्तीयो की चकाचौंध ने दीयो के प्रकाश को गुमनामी के अंधेरे में धकेल दिया था। मिट्टी की दियाली व बच्चो के खिलौने अब फिर से गाव व बाजार तक में दिखने लगे हैं। मिट्टी से निर्मित होने वाले बर्तनो का उपयोग शुरू होने से पहले पर्यावरण भी सुरक्षित हो रहा है प्रकाश पर्व दीपावली की तैयारी के लिए अभी से मिट्टी के दीए गढने लगे है कुम्हार।

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