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दामोदर व स्वर्णरेखा नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का विधायक सरयू राय के नेतृत्व में स्वर्णरेखा नदी प्रदूषण समीक्षा अभियान का शुभांरभ

जमशेदपुर. दामोदर और स्वर्णरेखा नदियों को प्रदूषण मुक्त करने का अभियान के क्रम में रविवार को जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय के नेतृत्व में स्वर्णरेखा नदी प्रदूषण समीक्षा अभियान का शुभांरभ नदी के उदगम स्थल, नगड़ी स्थित ‘रानीचुँआ’ से किया गया। नदी पूजन में अभियान दल के सदस्य सहित नगड़ी के गणमान्य अतिथिगण भी शामिल थे। यात्रा के क्रम में श्री राय ने जानकारी दी की स्वर्णरेखा यात्रा प्रथम बार वर्ष 2005 में आरंभ की गई थी। तब पानी के दो स्रोतों से पानी रिसता था। एक से क्षारीय जल प्रवाह होता था और दूसरे से अम्लीय जल प्रवाह होता था, जो बाद में कुछ दूरी पर जाकर आपस में मिल जाती है। उन्होंने कहा कि उदगम स्थल से मात्र कुछ दूरी पर कई राईस मिले अधिष्ठापित है, जिसका दूषित जल पास के ही छोटे-छोटे कच्चे गडढ़ों में जमा किया जाता है, जो रिस-रिस कर भगर्भ जल को दूषित कर रहा है, जो मानवजाति के लिए काफी हानिकारक है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि रानीचुँआ को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाय। इस विषय पर उन्होंने पिछले दिनों पर्यटन सचिव से बात भी की है। पर्यटन सचिव ने इस पर सकारात्मक रूख अपनाया है। उन्होंने कहा कि इस स्थान का सौन्दर्यीकरण करने की आवश्यकता है, इस स्थान पर वृक्षारोपण भी किया जाना चाहिए। श्री राय ने कहा कि इस उदगम स्थल से धुर्वा डैम में पानी जाता है, जिससे राँची की प्यास बुझती है।
उन्होंने बताया कि राँची सहित जमशेदपुर में औद्योगिक एवं नगरीय प्रदूषण की समस्या काफी गंभीर हो गई है। प्रतिष्ठान अपने अपशिष्ट का समुचित निस्तारण किये बगैर सीधे नदी में बहा देते है वहीं शहरी घरों के सिवरेज पानी बिना परिशोधन के नालों के माध्यम से नदी में प्रवाहित हो रहा है, जिससे नदी का जल अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। राईस मिलों की इसमें सबसे अधिक भूमिका प्रत्यक्ष तौर पर देखने को मिला। अभियान दल के सदस्यों ने उदगम स्थल से लगे स्वर्णरेखा नदी के किनारे-किनारे लगभग 3 किलोमीटर पैदल चलकर नदी का निरीक्षण किया जिसमें पाया गया कि नदी का जल राईस मिल के प्रदूषण के प्रभाव से अत्यधिक काला हो गया है साथ ही यह भी पाया गया कि किसानों के खेतों में ट्रेक्टर के माध्यम से भूसा एवं अपशिष्ट गिराया जा रहा है, जिससे खेतों में काली परत जम गयी है। श्री राय ने कहा कि नदी प्रदूषित होने से जैव विविधता समाप्त हो रही है, जलीय जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। श्री राय ने कहा कि नदी तो हर साल बरसात में स्वयं को साफ कर लेती है, हमें केवल इसमें किसी प्रकार की गंदगी नहीं डालनी है। इसे साफ रखने में जनता का सहयोग चाहिए। नदी को साफ रखना केवल सरकार का काम नहीं है, हमारा भी नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम नदी को साफ रखे, उसमें किसी प्रकार का कचरा नहीं फेंके। जन सहयोग से ही इस भागीरथी प्रयास को सार्थक किया जा सकता है।
स्वर्णरेखा नदी प्रदूषण समीक्षा अभियान के संयोजक डॉ. एम.के. जमुआर ने कहा कि रानीचुँआ के पास स्थित पांडु गांव के ग्रामीणों से सम्पर्क करने पर ज्ञात हुआ कि नदी के किनारे अवस्थित चावल मिलों के कारण प्रदूषण की समस्या भयावह हो गयी है। धान की भूसे की वजह से आँख में 4-5 दिन तक जलन का अनुभव होता है। कपड़ों पर भी राख जमा होने के कारण शरीर में खुजली होती है। ग्रामीणों ने बताया कि चावल मिलों की स्थापना के पहले गाँवों में मच्छर नहीं पाये जाते थे, लेकिन अब मच्छर बहुतायात में है। सारी वस्तुस्थिति से अवगत होकर अभियान दल के सभी सदस्यों ने स्थानीय ग्रामीणों को साथ लेकर वास्तविक स्थिति को जानने के लिए ‘सारवी राईस मिल’ गये, जो गाँव से 500 मीटर की दूरी पर है। मिल में पर्यावरण प्रदूषण को रोकने की व्यवस्थाओं का पूर्णतः अभाव देखा गया। धान के प्रसंस्करण के बाद निकली हुई पानी को छोटे-छोटे कच्चे गडढ़ों में जमा किया जा रहा है, जिससे भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है। धान की भूसे को हवा में फैलने से रोकने का कोई उपाय नहीं है। फलस्वरूप आसपास के पूरे स्थान पर भूसे तथा भूसे का राख बिखरा हुआ देखा गया। अभियान ने डोकाटोली में भी दो चावल मिलों को देखा, वहाँ भी स्थिति दयनीय थी। पूरे क्षेत्र में धान की भूसी तथा राख फैली हुई थी।
अभियान के अगले पड़ाव में लोग कुदलौंग पहुंचे, जहाँ नदी पर एक चेक डैम बना हुआ है, जिसका निरीक्षण करने पर राईस मिल से निकले प्रदूषित जल एवं भूसा भरा हुआ पाया गया दल में शामिल वैज्ञानिकों द्वारा जल एवं गाद का नमूना लिया गया। धुर्वा डैम का निरीक्षण करने के क्रम में आसपास में लोगों से सम्पर्क करने पर पता चला कि पानी का रंग पहले की अपेक्षा काला हो गया है। मछलियाँ मर रही है तथा पानी के कारण शरीर में खुजली की समस्या भी रहती है। अभियान के साथ चल रहे युगांतर भारती के वैज्ञानिकों के द्वारा धुर्वा डैम, सिठियो, तिपुदाना से पानी एवं गाद का नमूना संग्रह भी किया गया, जिसका विश्लेषण प्रयोगशाला में किया जायेगा और उसकी विश्लेषण प्रतिवेदन सरकार के संबंधित विभागों के सचिवों को प्रेषित की जायेगी।
अभियान में स्वामी विवेकानंद ग्रामीण विकास संस्थान, महाराणा प्रताप सेवा संस्थान, एचईसी ऑफीसर एसोसिएशन, आईएफएस वाईफ एसोसिएशन, एस.एन.सिन्हा इंस्टिच्यूट एंड बिजनेस मैनेजमंेट, सूर्य मंदिर ट्रस्ट, लीलावती ट्रस्ट, मरांग गोमके जयपाल सिंह फाउंडेशन, सूर्या एजुकेशन वेलफेयर सोसाईटी के प्रतिनिधिगण उपस्थित थे।
यात्रा दल में संयोजक डॉ. एम.के. जमुआर, तापेश्वर केशरी, अंशुल शरण, आशीष शीतल मुडा, अमेय विक्रमा, सुधीर कुमार ‘समीर, रितेश झा, उमेश दास, मुकेश कुमार, मुकेश सिंह, राहुल मुडा, धर्मेंन्द्र तिवारी, अजय साह आदि उपस्थित थे।
युगांतर भारती के कार्यकारी अध्यक्ष, अंशुल शरण ने कहा कि कल (23 मई) को यात्रा 9.30 बजे पूर्वाहन से केतारी बगान, चुटिया, नामकुम पुल, टाटीसिल्वे, गेतलसूद होते हुए मूरी एवं अन्य जगहों पर पुनः भ्रमण, निरीक्षण और नमूना संग्रहण करेगी।

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