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क्षेत्रीय भाषाएं हमारी संस्कृति और ज्ञान : लक्ष्मी सिन्हा

पटना। राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं हमारी संस्कृति और ज्ञान परंपरा की वाहक होती है।
सैकड़ों वर्ष के मुगलो और अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान देश की कई क्षेत्रीय भाषाएं विलुप्त हो गई, क्योंकि शासक वर्ग ने अपनी भाषा थोकने का हर संभव प्रयास किया था। मातृभाषा के महत्व को समझते हुए यूनेस्को ने जागरूकता एवं संरक्षण के लिए 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस आयोजन करने का निर्णय लिया। वर्ष 2018 के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 19500 भाषाएं और बोलियां है, जिसमें 196 भारतीय भाषाएं लुप्तप्राय है। उन भाषाओं को संरक्षण और संवर्धन की तत्काल जरूरत है। सिर्फ दिवस की रस्म अदायगी करने से मातृभाषा की रक्षा नहीं हो सकती है, इसे स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना चाहिए एवं अपनी बोल_चाल में शामिल करनी चाहिए। देश में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते प्रभाव के कारण क्षेत्रीय भाषाओं का पतन का दौर प्रांरभ हो गया।
श्रीमती सिन्हा ने कहा कि मातृभाषा में बच्चों का बौद्धिक विकास तीव्र होता है, वे किसी भी विषय को गहराई से समझ सकते हैं। दुनिया के सभी विकसित देशों ने अपनी मातृभाष अपना कर विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ है। भारत अपनी मातृभाषा की बदौलत ही विश्व गुरु कहलाता था। अंग्रेजी को मातृभाषा से अधिक प्रधानता देने की वजह से ही हम विकसित देशों के श्रेणी में नहीं है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि मातृभाषा को अपनाकर भारत पुनः विश्व गुरु बन सकता है। अंग्रेजों ने साजिश के तहत हमासे अपनी मातृभाषा का गौरव छीन लिया था। जय हिंद जय भवानी

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