सरना कोड दो और आदिवासी वोट लो : सेंगेल सालखन मुर्मू
जमशेदपुर। भाजपा / आरएसएस सरना धर्म कोड दो, आदिवासियों का वोट लो। सरना धर्म अर्थात प्रकृति पूजा धर्म की मान्यता का आंदोलन अब प्रकृति पूजक आदिवासियों का एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन बन चुका है। एसोसिएटेड प्रेस (AP), न्यूयॉर्क ने 23 नवंबर 2022 को सरना धर्म कोड आंदोलन को विश्वव्यापी स्तर पर प्रसारित कर दिया है। आदिवासी सेंगेल अभियान (सेंगेल) करो या मरो की तर्ज पर इसे मंजिल तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध है। यदि भारत सरकार 20 जनवरी 2023 तक कोई सकारात्मक फैसला नहीं करती है तो प्रथम चरण में 30 जनवरी, 2023 को राष्ट्रव्यापी रेलरोड चक्का जाम करने को सेंगेल बाध्य है।
परंतु ईसाई मिशनरी और झामुमो-कांग्रेस भी इसमें सर्वाधिक बड़ी बाधक हैं।
आदिवासी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी पर अबतक सर्वाधिक सेंधमारी और नुकसान ईसाई मिशनरियों ने किया है। आदिवासी विशिष्ट भाषा- संस्कृति, सोच- संस्कार, जीवन- मूल्यों के साथ प्रकृति- पर्यावरण को ही अपना पालनहार, ईश्वर मानते हैं। परंतु ईसाई मिशनरियों ने विदेशी धर्म- संस्कृति,सोच- संस्कार आदि थोप कर आदिवासियों को जड़ों से काटने-भटकाने का काम किया है। आदिवासीयत की रक्षा की जगह ईसाईयत की रक्षा को मजबूर किया है। अतएव सेंगेल ईसाई मिशनरियों के खिलाफ आवाज बुलंद करने को मजबूर है। सरना आदिवासियों को एकजुट कर प्रकृति पूजा धर्म को बचाना सेंगेल के लिए धर्मयुद्ध के समान है। जिसकी इजाजत भारत का संविधान देता है।
दूसरी तरफ ईसाई बने आदिवासियों के वोट-बैंक का दुरुपयोग कर झामुमो- कांग्रेस असली आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म इज्जत, आबादी, रोजगार (डोमिसाइल, आरक्षण, नियोजन), चास-वास आदि को उजाड़ने का ही काम कर रहा है। सरना धर्म कोड मान्यता के मामले पर ईसाई आदिवासियों को खुश करने के लिए झामुमो टालमटोल रवैया अपनाता है। झामुमो ने पूरे संताल परगना को केवल नोट और वोट के लिए ईसाई और मुसलमानों के हाथों सुपुर्द कर दिया है। सेंगेल मतांतरित अर्थात ईसाई बने आदिवासियों को एसटी सूची से बाहर करने का पक्षधर है।
मगर बीजेपी / आर एस एस से भी अपील है कि हम प्राकृति पूजक आदिवासियों को जोर जबरदस्ती हिंदू धर्मावलंबी ना घोषित किया जाए। हम प्रकृति पूजक थे और अधिकांश अभी भी प्रकृति पूजक हैं। हमारे बीच स्वर्ग- नरक, पुनर्जन्म, वर्ण व्यवस्था, दहेज प्रथा, व्यक्ति केंद्रित ईश्वर आदि नहीं है। हम मूर्ति पूजक नहीं हैं। हम हिंदू मैरिज कानून- 1955 के भीतर भी नहीं हैं,जबकि सिक्ख, जैन, बौद्ध इसमें हैं। अतः हमें जन्मजात हिंदू घोषित करना गैरकानूनी और असंवैधानिक है। परंतु कोई आदिवासी यदि स्वेच्छा से अपने आपको हिंदू घोषित करता है या हिंदू धर्म को अपनाता है तो हमें उस पर कोई आपत्ति नहीं है। परंतु हमारी इच्छाओं के खिलाफ हमारी तरफ से कोई हमें खुद हिंदू घोषित करेगा तो वह गलत है। चूंकि भारत का संविधान हमें धार्मिक आजादी प्रदान करता है। हम प्रकृति पूजक आदिवासियों की हालात आज उस रंग विहीन पानी की तरह है, जिस पर जो रंग डाल दो वही रंग बन जाता है। इसलिए हम भी भारत सरकार से मांग करते हैं कि हमको भी सरना धर्म कोड के रूप में एक धार्मिक रंग अर्थात पहचान या कोड प्रदान की जाए। ताकि हमारे प्रकृति पूजक आदिवासियों को अपने रंग के बारे जानकारी हो और उसको कोई किसी दबाव में, प्रलोभन में, नासमझी में, अनचाहे दूसरे रंग में न रंग डालें। हम किसी विदेशी धर्म, विदेशी भाषा- संस्कृति के चंगुल में ना फंस जाएं। अतएव हमें अविलंब सिक्ख, जैन, बौद्ध धर्म की तरह मान्यता प्रदान की जाए। 2011 की जनगणना में सरना धर्मावलंबियों ने लगभग 50 लाख की संख्या में अपनी धार्मिक पहचान दर्ज कराया था, जबकि जैन धर्मावलंबियों की संख्या 45 लाख थी । अतः हमारी मांग बिल्कुल जायज है।
हमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भरोसा है। सरना धर्म कोड मान्यता के मामले पर हम निश्चित जल्द कामयाब होंगे। सनद रहे कि हम प्रकृति पूजक आदिवासी भारत के असली धरतीपुत्र हैं और सरना धर्म कोड की मांग के पीछे कोई बाहरी तत्व या ईसाई मिशनरियों का हाथ नहीं है। बल्कि ईसाई बने सभी आदिवासियों से निवेदन है कि वे अविलंब अपने पूर्वजों के प्रकृति पूजा धर्म में वापस आ जाएं और आदिवासीयत की जड़ों को मजबूत करें अन्यथा उनके लिए आगे नाहक मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।