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झारखंड में आइएएस पूजा सिंघल की रिमांड अवधि पांच दिनों के लिए बढ़ी, सीए सुमन गये जेल

रांची. झारखंड में प्रवर्तन निदेशालय (इडी) द्वारा खनन विभाग की सचिव रह चुकी आइएएस पूजा सिंघल और सीए सुमन कुमार को इडी ने कोर्ट में पेश किया. दोनों को इडी की विशेष अदालत के न्यायाधीश के समक्ष पेश किया गया. इडी ने कोर्ट से पूजा सिंघल को फिर से पांच दिनों के लिए रिमांड पर मांगा. इसको कोर्ट ने मान लिया और पूजा सिंघल को फिर से पांच दिनों के रिमांड पर भेज दिया. वहीं, सीए सुमन कुमार को जेल भेज दिया गया. इस दौरान पूजा सिंघल को फिर से रिमांड पर लेने के लिए कई तरह की दलीलें इडी ने रखी और कहा कि अभी काफी पूछताछ बाकि है, इस कारण पांच दिन कम से कम चाहिए ही. इसके बाद कोर्ट ने इडी की गुजारिश को मान लिया. वैसे पूछताछ के दौरान पूजा सिंघल का स्वास्थ्य का ख्याल रखने को कहा गया है. इडी ने कोर्ट को बताया है कि जब भी पूछताछ की जाती है, तब पूजा सिंघल की तबीयत गड़बड़ हो जाती है, जिससे रिमांड की अवधि समाप्त होती जाती है और ज्यादा सख्ती नहीं बरती जा सकी है. इस कारण अभी पूछताछ के लिए कुछ और समय की जरूरत है.
सरयू राय ने इडी के डिप्टी डायरेक्टर को लिखा पत्र, जांच का दायरा बढ़ाने की गुजारिश
इडी की चल रही कार्रवाई के बीच भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाने वाले विधायक सरयू राय ने प्रवर्तन निदेशालय के उपनिदेशक (डिप्टी डायरेक्टर) को पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने कहा है कि मीडिया से मिल रही खबरों के मुताबिक, पूजा सिंघल के विरूद्ध जांच में 2016 के पूर्व खूंटी एवं चतरा ज़िलों में मनरेगा में हुई अनियमितताओं के संदर्भ हैं. उल्लेखनीय है कि 8 नवंबर 2016 को देश में विमुद्रीकरण (नोटबंदी) लागू हुआ था जो 30 दिसंबर 2016 तक चला था. इस दौरान जांचाधीन व्यक्तियों, व्यक्ति समूहों एवं इनसे संबंधित संस्थानों के वित्तीय लेन-देन पर एक नज़र जांच की प्रक्रिया में डालनी चाहिये. इसके अलावा सरयू राय ने कहा है कि मनरेगा की अनियमितताओं को लेकर पूजा सिंघल पर विभागीय कार्रवाई चल रही थी. झारखंड सरकार की अधिसूचना द्वारा पूजा सिंघल को आरोप मुक्त कर दिया गया, उनके विरूद्ध विभागीय कार्यवाही समाप्त कर दी गई. श्री राय ने यह भी बताया है कि जिन आरोपों से श्रीमती सिंघल को झारखंड सरकार ने मुक्त कर दिया, वे आरोप प्रवर्तन निदेशालय की जांच का आधार बने हैं. जांच चल रही है और कार्रवाई जारी है. इससे तत्कालीन झारखंड सरकार द्वारा वर्ष 2017 में उन्हें आरोप मुक्त करने की प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है. प्रथम दृष्ट्या यह प्रक्रिया दूषित प्रतीत हो रही है. विभागीय कार्यवाही संचालन के लिये नियुक्त संचालन पदाधिकारी का पद अर्द्ध-न्यायिक होता है. संचालन की प्रक्रिया भी अर्द्ध-न्यायिक होती है. उपस्थापन पदाधिकारी और सरकार का संबंधित विभाग आरोप सिद्ध करने में महती भूमिका निभाता है. प्रक्रियानुसार संचालन पदाधिकारी के निर्णय की समीक्षा सरकार करती है. समीक्षा में उभरे बिन्दुओं के आलोक में सरकार और उपस्थापन पदाधिकारी विषय को संचालन पदाधिकारी के पास पुनर्विचार के लिये भेज सकते हैं. आरोपों की गंभीरता के मद्देनज़र श्रीमती सिंघल को आरोप मुक्त करने के निर्णय पर पहुंचने के पूर्व राज्य सरकार के संबंधित पद सोपानों में से किसी ने भी इस पर गौर करने का कष्ट किया है या नहीं, इसकी समीक्षा आवश्यक प्रतीत होती है. इसकी जांच की जा सकती है और की जानी चाहिये. श्री राय ने यह भी लिखा है कि जांच के क्रम में खान विभाग के क्रियाकलापों पर भी प्रवर्तन निदेशालय विचार कर रहा है, ऐसा समाचार पत्रों के अवलोकन से प्रतीत होता है. सरयू राय ने कहा है कि वर्तमान सरकार में भी और पूर्ववर्ती सरकार में भी उन्होंने (सरयू राय ने) लौह अयस्क खनन में अनियमितताओं से संबंधित कतिपय मुद्दों की और झारखंड सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है. इस संबंध में सरयू राय ने “रहबर की राहजनी” एक पुस्तक भी प्रकाशित किया है. उन्होंने इस पुस्तक में लिखे गये तथ्यों को भी जांच के दायरे में लाने की अपील की है.

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