वर्तमान पीढ़ी जिस सहजीवन को प्रेम के रूप में प्रचारित कर रही है वह प्रेम नहीं, अपितु दैहिक आकर्षण मात्र है: लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि आधुनिकता की चाह में भटकते युवा पीढ़ी इंटरनेट मीडिया और फिल्मों आदि पर प्रसारित होने वाले रिश्तो में प्रवेश कर रही है। मुक्त संबंधों के लालच में युवा अपना जीवन बर्बाद कर रहे हैं। वे सच्चा साथी तलाशने में विफल रहते हैं। ऐसे रिश्तो में दुष्कर्म, हत्या और रिश्ते में मतभेद पर आत्महत्या के लिए उसका ने जैसे आरोप लगने के मामले बढ़ रहे हैं। इसमें संदेह नहीं कि युवा पीढ़ी प्रेम रूपी पट्टी आंखों पर बांधकर एक अंधेरी गुफा की तरफ बढ़ रही है। जहां शिवाय ठोकर के उसे कुछ नहीं मिलता। प्रश्न यह है कि जो युवा प्रेम और सहजीवन यानी लिव-इन रिलेशनशिप के मार्ग को प्रफुल्लित होकर चुनते हैं, क्यों इन रिश्ते में इतनी कड़वाहट आ जाती है कि एक-दूसरे को अदालत में घसीटने से भी गुरेज नहीं करते? क्या प्रेम वाकई इतना विध्वंसक और घातक है की श्रद्धा वालकर, निक्की यादव और मेधा तोखी जैसी न जाने कितनी लड़कियां अपने जीवन से हाथ धो बैठे हैं? इनका उत्तर है वर्तमान पीढ़ी जिस तथाकथित प्रेम को सामाजिक क्रांति के रूप में प्रचलित करने का प्रयास कर रही है वह प्रेम नहीं, अपितु दैहिक आकर्षण मात्र है, जोकि किशोरावस्था में होना स्वाभाविक है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि तथाकथित नारीवादी समर्थकों की दृष्टि में जो कुछ भी पश्चिमी संस्कृति का हिस्सा है, वही सशक्तता का परिचायक है। सशक्तिकरण की इसी छद्म परिभाषा को स्वीकार करते हुए अनेक युवतियां सहजीवन की ओर प्रवृत्त हो रही है। भारतीय संस्कृति परंपराओं को रूढ़िवादी मानने वाली मानसिकता आधुनिकता की दौड़ में भाग तो रही है, परंतु उस सत्य से आंखें मूंदे बैठी है जिसे जानना उसके लिए बेहद जरूरी है। वह यह की भारतीय संस्कृति कभी भी ‘प्रेम विवाह’ के विरुद्ध नहीं रही है, परंतु वह प्रेम की संकीर्ण परिभाषा के विरुद्ध है। जिस प्रेम को अपने जीवन का आदर्श मानकर परिवार और समाज से विमुख हो सहजीवन का मार्ग चुनने के लिए युवा पीढ़ी लालायित दिखती है, उसका प्रथम प्रेरक ‘माया नगरी’ का वह संसार है, जहां प्रेम को महिमामंडित करके कुछ इस रूप में दिखाया जाता है कि प्रेम की सफलता तभी है जब उसे विद्रोह का लबादा पहनाया जाए। इसमें विद्रूपता यह है कि प्रेम का डंका बजाने वाली यह पीढ़ी अंततोगत्वा सहजीवन को विवाह में परिवर्तन करने की चाह रखती है। मुक्त संबंधों की पैरवी करने वाली लड़कियां अपने सहजीवन साथी पर विवाह का दबाव बनाती हैं। अगर उसमें वे सफल नहीं होती तो दुष्कर्म का आरोप लगा उन्हें कारागार तक पहुंचा देती है। प्रेम का यह स्वरूप अदालतों के लिए चिंता का विषय बन चुका है। इसलिए युवा पीढ़ी के लिए यह समझना जरूरी है कि प्रेम एक बहुत परिपक्व भाव है, जो समर्पण, दायित्व-निर्वहन और त्याग की आधार भूमि पर खड़ा होता है। वहीं दैहिक आकर्षण अल्पकालिक है, जो देह भोग की प्राप्ति के साथ धीरे-धीरे क्षीण होने लगता है। पुरुष या स्त्री, दोनों के ही भविष्य के लिए देह आकर्षण का मायाजाल और सहजीवन का मार्ग किसी भी स्थिति में सुखकर नहीं होता। आगे श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि सहजीवन की समाप्ति अधिकांश मामलों में दुखदायी होती है। सहजीवन से निकलने के प्रश्चित स्त्री के लिए जीवन और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। उसके लिए पुनः परिवारिक जीवन आरंभ करना लगभग असंभव सा हो जाता है। वहीं पुरुष की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं रहती। अगर सहजीवन संगिनी ने उसे अदालत तक घसीट लिया, जो कि अमूमन देखने में आता है तो उसके लिए शेष कुछ भी नहीं बचता। यह समझना जरूरी है कि जीवन की वास्तविकताएं और फिल्मी दुनिया के किरदारों में बहुत अंतर है। इन सबके बीच अभिभावकों का भी दायित्व है कि जब उनके बच्चे प्रेम में पढ़ने का दावा करे तो समय और धैर्य से उनकी भावनाओं को समझने का प्रयास करें। अभिभावकों का धैर्य और स्नेह यकीनन प्रेम और आकर्षण के मध्य अंतर को समझने-समझाने में सहायक होगा। समय का बहाव प्रेम संबंधों की गहराई को परख सकेगा, जो की युवा पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए अपरिहार्य भी है।