बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बावजूद जहरीली शराब पीने से मौत का तांडव जारी है:लक्ष्मी सिन्हा
बिहार पटना:-राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने बातचीत ने कहा कि बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बावजूद शराब पीने से मौत की घटनाओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। हर बार स्थान और पीड़ित परिवार के चेहरे बदल जाते हैं। इस बार छपरा में जहरीली शराब पीने से लगातार 3 दिन से मौत का तांडव जारी है, अब तक 52 लोगों की मौत हो चुकी है। कुछ माह पूर्व भी छपरा में शराब पीने से आठ लोगों की मौत हुई थी। हर बार प्रशासन की ओर से जांच का आदेश दिया जाता है, लेकिन नतीजा सिर्फ कागजों में ही दबकर रह जाती है। शराबबंदी कानून की धज्जियां उड़ रही है हर बार घटना के बाद कुछ गिरफ्तारी होती है लेकिन समस्या की जड़ पर चोट नहीं किया जाता है इसका जिम्मेदार शासन या प्रशासन,,? श्रीमती सिन्हा ने कहा कि बिहार में जहरीली शराब से करीब 50 से अधिक लोगों की मौत के बाद भी नीतीश कुमार सरकार शराबबंदी की अपनी नीति को लेकर जिस तरह अडिग नजर आ रही है, उससे यही स्पष्ट होता है कि वह यह बुनियादी बात समझने को तैयार नहीं की दुनिया में कहीं भी शराबबंदी सफल नहीं हुई। इस पर हैरानी नहीं की यह बिहार में भी नाकाम है। भले ही पुलिस-प्रशासन शराब की अवैध बिक्री रोकने के लिए पूरा जोर लगाए रहता हो, लेकिन सच यही है कि वह कहीं अधिक आसानी से उपलब्ध है। शराब की अवैध बिक्री के धंधे ने एक उद्योग का रूप ले लिया है और वह मांग पर वांछित स्थान पर पहुंचाई जा रही है। इससे न तो शासन अनभिज्ञ हो सकता है और न ही प्रशासन। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि शराबबंदी की नाकामी का पता अवैध तरीके से शराब बिक्री के आरोप में गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों की संख्या से भी पता चलता है और शराब पीने वालों की पकड़-धकड़ से भी। इसमें संदेह नहीं कि छपरा जिले में जहरीली शराब से हुई मौत के लिए शराब की अवैध बिक्री में लिप्त तत्व ही जिम्मेदार हैं। इस घटना ने यह भी स्पष्ट कर दिया की बिहार में शराब चोरी-छिपे बिक भी रही है और उसे अवैध तरीके से बनाया भी जा रहा है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि बिहार में जहरीली शराब से मौत का यह पहला मामला नहीं। इसके पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी है। छपरा में जहरीली शराब से हुई मौत पर यह कह कर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता कि जो शराब पिएगा, वह तो मरेगा ही। एक तो इस तरह का कथन पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिड़कने सारिखा है और दूसरे, इस सवाल से बचने की कोशिश भी की आखिर शराबबंदी के बाद भी शराब बिक्री कैसे हो रही थी,,?उचित यह होगा कि बिहार सरकार शराबबंदी के अपने फैसले पर नए सिरे से विचार करें। ऐसा इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि एक ओर जहां जहरीली शराब से मौत के सिलसिले के साथ शराब की अवैध बिक्री जारी है, वहीं राज्य को राजस्व का अच्छा-खासा नुकसान भी हो रहा है। अब तो यह भी नहीं कहा जा सकता कि शराबबंदी से किसी तरह का राजनीतिक लाभ मिल रहा है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि प्रारंभ में यह लगा हो कि शराबबंदी का फैसला राजनीतिक रूप से लाभकारी है, लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं दिखता और यही कारण है की वे राजनीतिक दल भी शराबबंदी पर सवाल उठा रहे हैं, जो एक समय उसे सही बताया करते थे। ऐसी नाकाम नीतियों पर टिके रहने का कोई मतलब नहीं, जो सामाजिक, आर्थिक रूप से सही न साबित हो रही हों। शराबबंदी के मामले में गुजरात की भी चर्चा होती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि वहां की नीति बिहार से भिन्न है।