झारखंड में आदिवासी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी खाते में : सालखन मुर्मू
जमशेदपुर: झारखंड और बृहद झारखंड क्षेत्र में आदिवासी अस्तित्व, पहचान और हिस्सेदारी आज भयंकर संकट में खड़ा है। अब तक उसके प्रकृति पूजा धर्म – सरना धर्म को मान्यता नहीं मिलना, झारखंड में संताली भाषा को प्रथम राजभाषा नहीं बनना, सीएनटी/ एसपीटी कानूनों का घोर उल्लंघन जारी रहना, आसाम – अंडमान के झारखंडी आदिवासी को एसटी का दर्जा नहीं मिलना, शेड्यूल एरिया और टीएसी का अनुपालन नहीं होना, झारखंडी डोमिसाइल नहीं बनना तथा आदिवासी स्वशासन व्यवस्था या ट्राइवल सेल्फ रूल सिस्टम में जनतंत्र और संविधान लागू नहीं होना और विस्थापन पलायन आदि का नहीं रुकना इसके भयंकर प्रमाण हैं। यह बाते पूर्व सांसद और सिंगल अभियान के प्रमुख सलखान मुर्मू ने एक प्रेस बयान जारी कर दी।
उन्होंने कहा की आदिवासियों के उपरोक्त दुर्दशा के लिए जे एम एम सर्वाधिक दोषी है और उसके साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जुड़े हुए माझी परगना महाल, असेका जैसे कुछ नसमझ सामाजिक संगठन हैं। इन सब का कोई आदिवासी एजेंडा नहीं है। केवल वोट और नोट (भ्रष्टाचार) की राजनीति करते हैं। इसलिए पांच बार मुख्यमंत्री और हमेशा बिरोधी दल के नेता बनने के बावजूद जेएमएम ने आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म, इज्जत, आबादी, रोजगार, चास-बास, संवैधानिक अधिकारों के लिए एक भी काम नहीं किया है। आदिवासियों का सर्वाधिक वोट लेकर आदिवासियों को सर्वाधिक बेवकूफ बनाने का काम किया है।
जे एम एम ने केवल वोट के लाभ के लिए कुर्मी महतो और अन्य अनेक जातियों को एसटी (अनुसूचित जनजाति) सूची में शामिल करने का आदिवासी विरोधी राजनीति किया है। जेएमएम के पिछलग्गू आदिवासी सामाजिक संगठन भी इस मामले पर दोषी हैं।
कुर्मी समाज या किसी अन्य समाज को एसटी में शामिल करने के पूर्व भारत सरकार और अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों को जरूर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि केवल वोट बैंक के लिए असली आदिवासियों का जाने-अनजाने जेनोसाइड या कत्ल न हो जाय। जिसे हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। कुर्मी समाज का दावा है कि वे 1950 के पहले एसटी में शामिल थे। तो उन्हें अपने तथ्यों और तर्कों के साथ मान्य सुप्रीम कोर्ट जाना चाहिए। वेबजह बखेड़ा खड़ा करना ठीक नहीं है। सांकेतिक रेल रोड चक्का जाम ठीक है। मगर अनिश्चितकालीन अवरोध सही नहीं है। संबंधित पक्षों के बीच वार्तालाप का रास्ता सही हो सकता है।
आदिवासी समाज को बचना है तो जेएमएम और उनके सहयोगियों को पहचाना होगा। जिसमे अनेक नासमझ आदिवासी संगठनों के साथ-साथ दो धार्मिक समुदाय के लोग भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आदिवासी समाज का अहित कर रहे हैं।
आदिवासी सेंगेल अभियान, आदिवासी अस्तित्व की रक्षा और “आबोआग दिशोम आबोआग राज” को पुनर्जीवित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। 30 सितंबर 2022 को कोलकाता के रानी राश्मोनी रोड (एस्प्लेनेड) में प्रदेशों से शामिल कार्यकर्ताओं का विशाल जनसभा और 2 अक्टूबर 2022 को बोकारो के बिरसा आश्रम हॉल में प्रैक्टिकल झारखंडी डोमिसाइल ( लागू हो सकनेवाला- जो तत्कालीन प्रखंडवार रोजगार दे सके) पर परिचर्चा कर आदिवासी विरोधियों और 1932 खतियान के नाम पर जनता को ठगने वालों को बेनकाब किया जायेगा।
आदिवासीयों की रक्षार्थ आदिवासी सेंगेल अभियान संघर्ष को मजबूर है। चूँकि देश में मजबूत बीजेपी पार्टी झारखंड में कमजोर और बेकार दिखती है। भ्रष्टाचारियों और आदिवासी बिरोधी ताकतों के सामने प्रमुख विपक्ष बीजेपी यहां लाचार और बेबस लगती है।