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बंटवारे बाद आए सिखों के खतियान को माने सरकार : इंदरजीत मुख्यमंत्री से मिलेगा सिखों का प्रतिनिधिमंडल

जमशेदपुर: सिखों के दूसरे बड़े तख्त एवं गुरु गोविंद सिंह जी की जन्म स्थली तखत श्री हरमंदिर जी पटना साहिब प्रबंधन कमेटी के महासचिव सरदार इंद्रजीत सिंह ने कहा कि 1932 के खतियान को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कदम कि वे सराहना करते हैं परंतु इसमें कुछ त्रुटियां हैं जिन्हें दूर कर दिया जाना चाहिए।
उनके अनुसार वे खुद कोल्हान प्रमंडल से आते हैं और यहां अंतिम सर्वे सेटेलमेंट 1963- 64 का है. सरकार के फैसले को मानें तो यहां के हमारे जनजातीय भाई और मूलवासी भी सरकारी सुविधाओं के लाभ से वंचित हो जाएंगे.
वही 1947 देश के बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में पश्चिमी पाकिस्तान से सिख और हिंदू बिरादरी और पूर्वी पाकिस्तान से बांग्ला हिंदू झारखंड में आकर बसे और यहीं के होकर रह गए हैं। अब उनकी तीसरी और चौथी पीढ़ी झारखंड राज्य के विकास में अपनी महत्ती भूमिका का निर्वहन कर रही है। 1947 के देश विभाजन की त्रासदी के परिणाम स्वरूप उन्हें झारखंड में आना पड़ा है और वे बाई चॉइस यहां नहीं आए हैं। लेकिन वहां आ गए तो वे यहीं के होकर रह गए हैं और देश के किसी भी राज्यों में उनका कोई स्थाई ठिकाना नहीं है और उनका स्थाई ठिकाना ही झारखंड है।
सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश है कि कोई एक व्यक्ति दो राज्य का निवासी नहीं हो सकता है और यहां रहने वाले पाकिस्तान से आए हिंदू सिख बांग्ला बिरादरी केवल और केवल झारखंड के ही निवासी हैं और उनके खतियान को भी मान्यता मिलनी चाहिए और कानूनी प्रावधान में शामिल किया जाना चाहिए। तभी कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार चरितार्थ कर पाएगी और यहां में यह भी देखना है कि जमशेदपुर में जो पाकिस्तान से आए हैं उन्हें अभी तक तत्कालीन सरकार द्वारा आवंटित भूमि का खतियान नहीं मिला है। ऐसे में उनके लिए अलग से भी प्रावधान किया जाना चाहिए।
सरदार इंद्रजीत सिंह के अनुसार पाकिस्तान से आए हिंदू एवं सिख बिरादरी अपनी भावी पीढ़ी को लेकर चिंतित है और उन्होंने अपनी भावनाओं को तख्त के समक्ष रखा है। ऐसे में दांत झारखंड के प्रभावित सिक्खों और हिंदू बिरादरी का प्रतिनिधिमंडल लेकर मुख्यमंत्री से मिलेगा और अपनी बातों को तथ्यात्मक रूप से रखेगा।

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