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हिंदी रंगमंच दिवस पर पथ संस्था द्वारा नाटक की प्रस्तुति

जमशेदपुर; कला मंदिर बिस्टुपुर में हिंदी रंगमंच दिवस के अवसर पर नाट्य संस्था “पथ पीपल्स एसोसिएशन फॉर थिएटर” द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य हिंदी रंगमंच दिवस को मनाना, ओर लोगों के मन में रंगमंच के प्रति खोई हुई भावना को वापस से जागरूक करना और साथ ही जितने युवा रंगकर्मी हैं जो कि रंगकर्म से जुड़ रहे हैं और थिएटर को फिल्मों में जाने का एक जरिया मानकर आते हैं उन्हें रंगमंच के बारे में समझाना, रंगमंच क्या है उन्हें बताना, और रंगमंच से क्या सीख मिलती है उसके बारे में उन्हें जागरूक करना।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर:-
जमशेदपुर वूमंस कॉलेज के प्रोफेसर राकेश पांडे और अमित धर मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान राकेश पांडे जी ने वहां बैठे सभी युवा रंग कर्मियों को हिंदी रंगमंच दिवस एवं नाटक के बारे में कई मुख्य जानकारियां दी और नाटक करने के लिए उन्हें जागरूक किया। साथ ही अमित धर जी ने पथ नाट्य संस्था एवं पथ के संस्थापक मोहम्मद निज़ाम जी को तहे दिल से शुक्रिया अदा किया और हिंदी रंगमंच दिवस के शुभ अवसर पर उन्होंने हर कठिन परिस्थिति में रंगमंच के साथ आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए पद के दो कलाकार सुमन सौरभ ओर विवेक विशाल जी ने हिंदी रंगमंच दिवस के अवसर पर दो छोटी सी कविता सुनाइए , दोनों ही कविताओं का मुख्य उद्देश्य यही बताना था, कि भले ही हमारे जिंदगी में कितनी भी बड़ी परेशानी, कठिनाइयां क्यों ना आए लेकिन हर कठिनाइयों को चीरते हुए अपना राह खोज निकालना यह हमें नाटक से सीखने मिलता है। तो इसीलिए हम सभी रंग कर्मियों को मिलकर इस बात पर अमल करना चाहिए कि चाहे , की कितनी भी बड़ी परेशानियां क्यों ना आए हम उन से लड़ेंगे और नाटक को आगे बढ़ाएंगे।कार्यक्रम के अंत में पथ के तीन युवा रंग कर्मियों ने एक छोटा सा नाटक प्रस्तुत किया जस नाटक का नाम है ” अ ” का भेद है। इस नाटक के जो कलाकार रहे वो थे :सुमन नायक,आदिल खान, दीपेश सिंह राजपूतऔर नाटक का निर्देशन किया है सुरु सरदार ने ।
प्रताप सहगल द्वारा लिखित नाटक ‘अ का भेद’ नाट्य कला के साथ जुडी समस्याओं की तरफ इंगित किया गया है,कि क्यों नाटकों का महत्व अथवा दर्शकों की संख्या घटती जा रही है । इसमे कई ऐसे प्रयोग, सीन या जुगाड़ वृत्तियों की तरफ इशारा करते हुए नाटक को सरल सहज और स्पष्ट ना रखने और जरूरत से ज्यादा प्रतीकात्मक रखने की तरफ ध्यान आकृष्ट करते हुए नाटक को आम जनमानस से जोड़ने वाला बनाने पर जोर दिया गया है । कई बार कई निर्देशक ऐसी ऐसे प्रयोग करते हैं कि दर्शक सिर्फ प्रतीकात्मक अनुमान लगाता रह जाता है! इन कारणों से नाटक का नुकसान हो रहा है। व्यंग्यात्मक रूप से लिखे इस अति लघु नाटक में नाट्य कर्मियों से निवेदन है कि दर्शक को पुनः नाटक से जोड़ने का प्रयास किया जाये ।नाटक खत्म होने के बाद धन्यवाद ज्ञापन करते हुए सभी रंग कर्मियों ने एकजुट होकर रंग कर्म के प्रति अपनी जागरूकता दिखाई और जय रंगकर्म का नारा लगाते हुए समारोह की समाप्ति हुई ।

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