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दुःख होने पर चिंता नहीं, प्रभू का चिंतन करना चाहिए – कथा वाचक

मानगो वसुन्धरा स्टेट में भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ का तीसरा दिन

जमशेदपुर। मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा स्टेट में सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन मंगलवार को कथावाचक वृजनंदन शास्त्री ने अपनी सुमधुरवाणी से धु्रव चरित्र, राजा बलि वामन भगवान प्रसंगों पर चर्चा करते हुए कथामृत का भक्तों को रसपान कराया और कहा कि मन का बंधन है मन को मोक्ष। सुख और दुःख हमारे मन की कल्पना हैं। विषम परिस्थिति में भी हम सुखी रह सकते हैं अगर मन यह मान लें की दुःख है ही नहीं। दुःख होते हुए भी न हरि को भूलो न जग छोड़ांे। दुःख होने पर चिंता नहीं, प्रभू का चिंतन करना चाहिए, क्योंकि चिंता एक दिन चिता से मिलायेगी और प्रभू का चिंतन किया तो वह बांके बिहारी से मिलाकर जीवन को धन्य कर देगा। वृजनंदन शास्त्री ने कथा के माध्यम से भगवान के अलग-अलग रूपों की झांकियों का दर्शन कराते हुए आगे कहा कि मनुष्य जीवन में जाने अनजाने प्रतिदिन कई पाप होते है। उससे मुक्ति पाने का एक मात्र उपाय ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित करना हैं। उन्होंने ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने की बात कही। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए उन्होंने जीवन में कथा में बताए आदर्शों का श्रवण करने का आह्वान करते हुए कहा कि इसमें वह शक्ति है, जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है। जिस भूमि में देवता भी जन्म लेने को तरसते हैं उसे भारत कहतेे हैं। भरत ने शासन किया इसलिए इस भूमि का नाम भारत पड़ा। संत, भक्त एवं वीरों की भूमि हैं भारत। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश हैं जिसके आगे मॉ शब्द का प्रयोग किया जाता हैं। भरत जी ने मृग का चिंतन करके शरीर छोड़ा तो मृग बने, क्योंकि चिंतन के आधार पर शरीर प्राप्त होता हैं। धु्रव की तरह भक्ति एवं अटल इरादे ही ईश्वर से मिलाते और सफलता दिलाते हैं। हमारे भजन में दृढ़, विश्वास एवं श्रद्धा का न होना ही हमें ईश्वर से अभी तक मिलने का अवसर नहीं मिला। धु्रव जी को सौतेली मॉ और पिता के कटु वचन बोलने पर भी धु्रव ईश्वर की शरण में जाकर भजन किया और ठोकर को ठाकुर जी की कृपा मानी। महाराज ने यहां पर एक श्लोक प्रस्तुत किया-‘‘जिंदगी में अगर ठोकर खायी नहीं होती तो हे श्याम तेरी याद आयी नहीं होती‘‘।
नारायण सेवा संस्थान, उदयपुर (राजस्थान) के सहायतार्थ शर्मा परिवार द्धारा आयोजित कथा के तीसरे दिन मंगलवार को यजमान के रूप में उमाशंकर शर्मा, किरण शर्मा, कृष्णा शर्मा (काली), जय प्रकाश शर्मा, गोविंदा शर्मा, कृपा शंकर शर्मा, गिरजा शंकर शर्मा, रामा शंकर शर्मा, विष्णु शर्मा, रामानंद शर्मा, विश्वनाथ शर्मा समेत काफी संख्या में भक्तगण शामिल थे।

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