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श्रीलंका में आया संकट, भारत के लिए है सबक

एक्सएलआरआइ में एक्सपीजीडीएम की ओर से पैनल डिस्कशन का आयोजन


जमशेदपुर। श्रीलंका वित्तीय और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है। साल 1948 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से इस वक्त सबसे खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहे इस देश में महंगाई के कारण बुनियादी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं. ‘श्रीलंका की इस प्रकार की स्थिति क्यों उत्पन्न हुई, साथ ही इससे भारत को क्या सबक लेनी चाहिए’ इस गंभीर विषय पर एक्सएलआरआइ में एक्सपीजीडीएम डिपार्टमेंट की ओर से एक पैनल डिस्कशन का आयोजन किया गया. जिसमें पैनलिस्ट सदस्यों में राहुल बाजोरिया (एमडी बार्कलेज कॉरपोरेट एंड इन्वेस्टमेंट बैंक), अंकुर शुक्ला (दक्षिण एशिया अर्थशास्त्री, ब्लूमबर्ग एलपी) आयुषी चौधरी (भारत और श्रीलंका अर्थशास्त्री, एचएसबीसी) और एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर सह अर्थशास्त्री प्रो. एचके प्रधान शामिल थे। कार्यक्रम की शुरुआत एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर अब्दुल कादिर के उद्घाटन भाषण से हुई. इसमें पहली वक्ता आयुषी चौधरी थीं, जिन्होंने श्रीलंका की आर्थिक संरचना और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को प्रमुख रूप से प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या की। उन्होंने वर्तमान समस्या की पुष्टि करने के लिए कई तथ्य और आंकड़े प्रस्तुत कर बताया कि ये समस्या कितनी गहरी है. कहा कि कोविड ने अर्थव्यवस्था को और अधिक विनाशकारी बनाया है। क्योंकि पर्यटन अर्थव्यवस्था बनाने में महत्वपूर्ण कारकों में से एक है. लेकिन पर्यटन ठप हो गया. उन्होंने जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने के प्रभाव पर चर्चा की। कहा कि इस वजह से अनाज का उत्पादन कम हुआ और भोजन की कमी हुई। उन्होंने राजनीतिक संकट जैसे विभिन्न बाहरी और आंतरिक कारकों की भूमिकाओं पर चर्चा करती है और इस स्थिति के संभावित उपाय क्या हो सकते हैं, इस पर भी चर्चा की।

निर्यात में विविधता लाकर भारत ने खुद को किया मजबूत : एमडी, बार्कलेज कॉरपोरेट एंड इन्वेस्टमेंट बैंक पैनल डिस्कशन के दौरान बार्कलेज कॉरपोरेट के एमडी सह चीफ इकोनॉमिस्ट राहुल बाजोरिया ने कहा कि पाकिस्तान, नेपाल व मालदीव जैसे देशों में के साथ ही कई दक्षिण पूर्व एशियाई देश भी इसी प्रकार के संकट का सामना पूर्व से कर रहे हैं. लेकिन वे कुछ हद तक इस संकट से बाहर निकले, इससे भारत को सबक लेने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने भारत का उदाहरण देते हुए कहा कि कि कैसे भारत ने अपने निर्यात में विविधता लाकर भुगतान संतुलन की समस्या पर काबू पा लिया। इस प्रकार के संकट से बचने व सतत विकास के लिए टिकाऊ नीतियों और अनुकूलनीय विकास से जुड़े विभिन्न आयामों पर भी चर्चा की गयी।
– ऋण पर अधिक ब्याज भुगतान भी है संकट का एक कारण : अंकुर शुक्ला
कार्यक्रम के दौरान तीसरे वक्ता के रूप में ब्लूमबर्ग एलपी के दक्षिण एशिया के अर्थशास्त्री थे. उन्होंने कहा कि निर्यात के मामले में श्रीलंका पीछे है। इसके साथ ही वहां ऋण पर काफी अधिक ब्याज का भुगतान भी श्रीलंका की आर्थिक विपन्नता के प्रमुख कारणों में से एक है। इससे भारत को सबक लेने की आवश्यकता पर बल दिया। मौके पर एक्सएलआरआइ के प्रोफेसर सह अर्थशास्त्री प्रोफेसर एचके प्रधान ने कहा कि अधिकतर ऋण अल्पकालिक ऋण होते हैं, इसलिए समय पर ऋण चुकाने में असफल होने की संभावना अधिक होती है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका अपने घरेलू ऋण बाजार को विकसित करने में भारत से सीख सकता है।

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