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विधायक सरयू राय कानपुर में गोविंदाचार्य के गंगा संवाद यात्रा में शामिल हुए

उत्तर प्रदेश । कानपुर। अविरल गंगा- निर्मल गंगा के उद्घोष के साथ विगत 11 नवम्बर को उत्तर प्रदेश के नरौरा से सुप्रसिद्ध विचारक के एन गोविंदाचार्य के नेतृत्व में निकली गंगा संवाद पदयात्रा का समापन आज 28 नवम्बर को कानपुर के गोला घाट पर हुआ। जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय आज दिन भर यात्रा में शामिल रहे और समापन समारोह को संबोधित किया। श्री गोविन्दाचार्य की गंगा संवाद यात्रा दल में सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए और गंगा को निर्मल एवं अविरल रखने का संकल्प लिया।

टिहरी करें बाद नरौरा में गंगा जी को पूरी तरह बांध दिया गया है। पर्यावरणीय प्रवाह भी नहीं छोड़ा जा रहा है.और औद्योगिक एवं नगरीय अपशिष्ट पदार्थ बेतहाशा गिरते रहने के कारण कानपुर में गंगा जी बेहद प्रदूषित हो गई हैं। इसी विडम्बना को सामने लाने के लिए गोविंद जी ने 400 किलोमीटर से अधिक दूरी तक गंगा जी के किनारे पदयात्रा कर वस्तुस्थिति की जानकारी ली।

विधायक सरयू राय ने कहा कि गंगा जी में कम जलप्रवाह और प्रदूषित जल प्रवाह के कारण निचले भाग में स्वच्छ गंगाजल मिलना बड़ी समस्या बन गया है। बिहार के बक्सर से लेकर झारखंड के राजमहल तक के इलाक़ा में नदी के भीतर गंगा जल की मात्रा काफ़ी कम हो गई है। गंगाजल के नाम पर घाघरा, सोन, गंडक़, बूढ़ी गंडक, कोसी, कमला आदि नदियों से प्रवाहित जल की मात्रा नहीं आये तो गंगा जी का अस्तित्व समाप्त प्रायः हो जाएगा।

उन्होंने यात्रा दल को संबोधित करते हुए कहा कि बड़ी नदियों के साथ साथ छोटी नदियों एवं लघु जलस्रोतों को संरक्षित करना भी महत्वपूर्ण है. क्योंकि बड़ी नदियाँ इन्हीं से मिलकर बनती है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर दामोदर नद का उल्लेख किया और कहा कि सरकारी ख़ज़ाना से एक धेला खर्च किये बग़ैर गत 20 वर्षों के सतत जन प्रयास से दामोदर औद्योगिक प्रदूषण से क़रीब- करीबी मुक्त हो गया है। शांतिपूर्ण जनान्दोलन के माध्यम से किसी बड़े जलस्रोत को प्रदूषण मुक्त करनेवाला यह प्रत्यक्ष उदाहरण है।

श्री गोविन्दाचार्य ने कहा कि दो माह के भीतर नदियों एवं अन्य जलस्रोतों की अविरलता और निर्मलता की समस्या पर विमर्श करने के लिए वे एक सम्मेलन बुलाएँगे। उन्होंने कहा हे कि नदियों पर संकट सभ्यता का संकट है। नदियों के जल से औद्योगिक साम्राज्य खड़ा होता है पर वही आगे चलकर नदियों के लिये भस्मासुर बन जाते हैं और नदियों को लीलने पर उतारू हो जाते हैं।

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