बिहार पटना: समाजसेविका श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि मेरा सपना तो एक है। मेरा अपना नहीं, सदियों पुराना, काहे की सनातन है। कितने बुद्ध, महावीर, इतने कबीर, नानक, उस सपने के लिए प्राणों को न्योछावर कर गए। उस सपने को मैं अपना कैसे कहूं? वह सपना मनुष्य के अंतरात्मा का सपना है। हम उस सपने को भारत कहते हैं। भारत कोई भूखंड नहीं, ना ही कोई राजनीतिक इकाई है, भारत है एक अभीप्सा, एक प्यास, सत्य को पा लेने की। उस सत्य को, जो हमारे हृदय की हर धड़कन में बसता है। उसकी पुनरुद्धोषणा भारत है। ‘अमृतस्य पुत्र:।’ ‘हे अमृत के पुत्रों।’जिन्होंने इस उद्धोषणा को सुना, वे भारत के नागरिक हैं। कोई किसी देश में, किसी भी सदी में हो, अगर उसकी खोज अंतस की खोज है, तो वह भारत का निवासी है। मेरे लिए भारत और और अध्यात्म पर्यायवाची है। भारत और सनातन धर्म पर्यायवाची है। भारत सनातन यात्रा है, एक अमृत- पथ है, जो अंतर अनंत तक फैला हुआ है। इसीलिए भारत ने इतिहास नहीं लिखा, केवल उस चिरंतन की ही साधना की है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि मैं भी उस अंतर यात्रा की छोटी-सी यात्री हूं। चाहती हूं कि जो भूल गए हैं, उन्हें याद दिला दूं, जो सो गए हैं उन्हें जगा दूं। भले ही उसकी लौ मद्धिम हो गई हो, लेकिन दीया अब भी जलता है। मैं चाहती हूं कि तुम्हारी भूली संपदा कि तुम्हें याद दिला दूं, ताकि तुम्हारे भीतर से भी आवाज उठे:अहं-ब्राह्मास्मि, मैं ईश्वर हूं।