भक्त परम पुरुष के सखा हैं क्योंकि भक्त अपने अस्तित्व को परम पुरुष से अभिन्न मानते हैं
जमशेदपुर । काफी संख्या में आनंद मार्गी इस धर्म महासम्मेलन में भाग ले रहे हैं जो लोग भी शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो पाए हैं वह वेब टेलीकास्ट के माध्यम से कार्यक्रम का लाभ उठा रहे
निकटवर्ती आनंद नगर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से विश्वस्तरीय त्रिदिवसीय धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन आनंद नगर में ब्रह्म मुहूर्त में साधक-सधिकाओं ने गुरु सकाश एवं पाञ्चजन्य में ” बाबा नाम केवलम” का गायन कर वातावरण को मधुमय बना दिया। प्रभात फेरी में साधकों ने बाजे-गाजे के साथ आनंद नगर के गली- गली अष्टाक्षरी महामंत्र का गायन किया। पुरोधाप्रमुख जी के पंडाल पहुंचने कौशिकी व तांडव नृत्य किया गया। प्रभात संगीत का अनुवाद हिंदी में आचार्य स्वरूपानंद अवधूत, अंग्रेजी में आचार्य रागानुगानंद अवधूत एवं बांग्ला में अवधूतिका आनंद दयोतना आचार्या ने किया। साधकों को संबोधित करते हुए आनंद मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय विश्वदेवानंद अवधूत ने कहा की “जब प्रेम और आकर्षण इतना गहरा होता है की दो व्यक्ति एक प्राण और दो शरीर एक जैसे हो जाते हैं, तो उन्हें सखा कहा जाता है । भक्त परम पुरुष के सखा हैं क्योंकि भक्त अपने अस्तित्व को परम पुरुष से अभिन्न मानते हैं ।वे यह भूल जाते हैं कि वह और परमपुरुष अलग सताऐ हैं ।इसलिए (इस दृष्टि से) भक्त परम पुरुष के सखा हैं और परम पुरुष भक्त के ।विस्तारित मन ही बैकुंठ है।
मन के संकुचित अवस्था में आत्मा का विस्तार संभव नहीं है। यदि इस संकुचित अवस्था को हटा दिया जाए, दूर कर दिया जाए ,तो मन में स्वर्ग की स्थापना हो जाती है। इसलिए बाबा कहते हैं विस्तारित हृदय ही वैकुंठ है ।जहां मन में कोई कुंठा नहीं है,कोई संकीर्णता नहीहै, उसे ही स्वर्ग कहते हैं । भक्त कहता है कि मैं हूं और मेरे परम पुरुष हैं दोनों के बीच में कोई और तीसरी सत्ता नहीं है ।मैं किसी तीसरे सत्ता को मानता ही नहीं हूं।इस भाव में मनुष्य प्रतिष्ठित होता है तो उसी को कहेंगे ईश्वर प्रेम में प्रतिष्ठा, भगवत्प्रेम में प्रतिष्ठा हो गई ।यही है भक्ति की चरम अवस्था। चरम अवस्था में भक्त के मन से जितने भी ईर्ष्या, द्वेष, घृणा , भय, लज्जा , शर्म ,मान मर्यादा, यश -अपयश इत्यादि के भाव समाप्त हो जाते हैं। उनका मन सरल रेखा कार हो जाता है और उनमें ईश्वर के प्रति भक्ति का जागरण हो जाता है।