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उत्तर-दक्षिण को बांटने की प्रकृति संपूर्ण देश के लिए घातक सिद्ध होगी: लक्ष्मी सिन्हा

बिहार (पटना) समाज सेविका एवं राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी (महिला प्रकोष्ठ) श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि उत्तर बनाम दक्षिण के बीच के कथित भेद को बढ़ावा एवं तूल देने का प्रयास किया गया। उत्तर-दक्षिण को बांटने की यह प्रवृत्ति नहीं नहीं है। निहित राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु तमाम राजनीतिक दलों द्वारा समय-समय पर इस विभाजनकारी विषबेल को सींचने की कुचेष्टा की जाती रही है। इसे आर्य बनाम द्रविड़,मूल बनाम बाहरी, काली चमडी बनाम गोरी चमड़ी तथा हिंदी बनाम गैर-हिंदी विमर्श का ही विस्तार माना जा सकता है। हाल के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद मतगणना वाले दिन जैसे ही यह साफ हुआ कि कांग्रेस मध्य प्रदेश राजस्थान और छत्तीसगढ़ हर रही है और तेलंगाना में जीत रही, वैसे ही कांग्रेस नेता प्रवीण चक्रवर्ती ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘उत्तर- दक्षिण सीमा रेखा मोटी और स्पष्ट होती जा रही है।’ बाद में उन्होंने यह पोस्ट हटा दी। इसी दिन कार्ति चिदंबरम ने सिर्फ दो शब्द ‘द साउथ’ पोस्ट किए। आशय यह जताना था कि दक्षिण के मतदाता उत्तर की तुलना में अधिक सचेत, प्रगतिशील एवं परिपक्व है। हद तो तब हो गई, जब डीएमके सांसद डीएवी सेंथिल कुमार ने संसद में कहा कि इस ‘देश के लोगों को सोचना चाहिए कि भाजपा की ताकत बस इतनी है कि वह मुख्य तौर पर गौमूत्र वाले राज्यों में ही जीत सकती है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘भाजपा दक्षिण भारत में नहीं आ सकती, क्योंकि तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में हम बहुत मजबूत हैं।’ तेलंगाना के नवनियुक्त मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी द्वारा अपने डीएनए को बाहरी डीएनए से बेहतर बताने वाला बयान भी उत्तर-दक्षिण के बीच विभाजन पैदा करने की मंशा को ही दर्शाता है। ऐसे बयान अकारण, अनायास या यों ही हवा में उछले गए वक्तव्य नहीं होते, बल्कि उनके पीछे चुनावी हानि- लाभ का गणित भी होता है। सुनियोजित राणनीति होती है। यह विडंबना ही है कि स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत पर संवर्धित अधिकार जताने तथा संपूर्ण देश में जानी-पहचानी जाने वाली कांग्रेस का स्वयं आज क्षेत्रीय दलों-सा होता जा रहा है। यह देखकर सचमुच निराशा होती है कि जो कांग्रेस कभी जोड़ने की बात करती थी और एकता एवं अखंडता का दम भरती थी, उसे आज कभी मजहबी तुष्टीकरण तो कभी जाती है एवं क्षेत्रीय अस्मिताओं के उभार में अपना भविष्य दिखाई देता है। कांग्रेस के अलावा अन्य क्षेत्रीय दलों को यह याद रखना होगा कि इस देश की मूल प्रकृति और संस्कृति जोड़ने की है तोड़ने की नहीं। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि भाजपा जहां काशी-तमिल संगमम, सौराष्ट्र-तमिल संगमम जैसे संस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ-साथ अपनी तमाम नीतियों-योजनाओं के माध्यम से विकसित भारत, समर्थ भारत, सशक्त भारत के साथ 2047 तक भावी भारत की चमकदार छवि प्रस्तुत कर रही है, वहीं कांग्रेस अभी भी ओबीसी आरक्षण, जातीय जनगणना, उत्तर-दक्षिण जैसी विभेदकारी मुद्दों और विमर्श के भरोसे वोट बटोरने की आस लगाए बैठी है। लोकमत की अवमानना करने या मतदाताओं की समझ पर सवाल उठाने के स्थान पर कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों को यह सूचना होगा कि आज का भारत लिंग, जाति, भाषा, प्रांत और मजहब यदि से ऊपर उठकर विकसित विश्व के साथ कम से कदम मिलाकर चलना चाहती है।

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