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द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने पर सम्पूर्ण आदिवासी समाज ने बारीडीह में मनाया जश्न, शामिल हुए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास

आदिवासी समाज की मजबूत आवाज एवं झारखंडी- संथाली संस्कृति की वाहक बनेंगी द्रौपदी मुर्मू: रघुवर दास

जमशेदपुर। देश की प्रथम जनजातीय महिला द्रौपदी मुर्मू के 15वें राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर पूरे देश के आदिवासी समाज मे हर्ष का माहौल है। सोमवार को द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति चुनाव में शानदार जीत पर शहर के आदिवासी समाज द्वारा खुशियां मनाई गई। सम्पूर्ण आदिवासी समाज द्वारा बारीडीह स्थित जेहरा टोला बस्ती में आयोजित कार्यक्रम में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सह भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास शामिल हुए। जहां समाज के लोगों द्वारा उनका पारंपरिक रीति-रिवाज से उनका स्वागत किया गया। पारंपरिक वेशभूषा में समाज के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति आभार जताया। कहा कि द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन कर एनडीए सरकार ने संपूर्ण आदिवासी समाज का गौरव बढ़ाया है। पहली बार जनजातीय महिला के राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज गौरवान्वित महसूस कर रहा है।

वहीं, कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष में जनजातीय समाज का कोई भी व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंच पाया, पू्र्व में देश में वर्षों तक शासन करने वाले राजनीतिक दलों ने कभी इसकी चिंता नहीं की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनजातीय समाज की प्रथम महिला द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर आज देश का राष्ट्रपति बनाया। भारतीय गणतंंत्र के लिए आज ऐतिहासिक दिन है, द्रौपदी मुर्मू समाज में आखिरी पायदान पर बैठे लोगों का नेतृत्व करेंगी। उन्होंने कहा कि झारखंड के राज्यपाल के रूप में लंबे समय तक उनके साथ काम करने का अवसर मिला। जहां उन्होंने अपनी सादगी और परिश्रम से सभी को प्रेरित किया। श्री दास ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू जी आम आदिवासियों की तरह ही बहुत ही मेहनती हैं और बहुत ही सादगीपूर्ण जीवन जीती हैं। द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति बनना अंत्योदय का प्रतीक है। उनसे प्रेरणा लेकर आदिवासी समाज की लड़कियां, अपने अधिकारों के लिए लड़ सकेंगी। पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि राज्यपाल के रूप में झारखंड के विद्यालयों में संथाली शिक्षा के प्रति उनकी काफी चिंता रहती थी। राज्य के महाविद्यालयों में संथाली शिक्षा प्रारंभ करने में उनका योगदान अतुलनीय रहा।

इस दौरान गोविंद सोरेन, भगवान चातर, संतोष नाग, शंकर सोरेन, काजू शांडिल, चाँदमनी कुंकल, महेंद्र हंसदा, राकेश सिंह, संतोष ठाकुर, भूपेंद्र सिंह, पवन अग्रवाल, कुमार अभिषेक, सूरज शांडिल, अंजू शांडिल, निराला मार्डी, रवि सोरेन, सुरभी रानी सोरेन, निर्मल सिंह, नीलू झा, परशुराम सामंत, संजय मुंडा, निर्मल गोप, विजय साहू, रंजीत सिंह, अरुण कुमार, पुष्पेंद्र सिंह समेत अन्य उपस्थित थे।

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