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छंदमाल्य- की जबरदस्तरही प्रस्तुति

जमशेदपुर। छंदबद्ध रचनाओं की गीतमय प्रस्तुतियों के साथ छंदमाल्य भाग-3 का आयोजन दिनांक 5 नवम्बर 2023 को बिष्टुपुर स्थित चैंबर ऑफ कॉमर्स भवन के सभागार में छंदमाल्य कवि मण्डपम्, जमशेदपुर द्वारा किया गया ।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जयपुर, राजस्थान से आये छंदाचार्य गोप कुमार मिश्र ने की । मुख्य अतिथि के रूप में छंदज्ञ दिनेश रविकर जी राँची से पधारे, वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रसेनजीत तिवारी (तुलसी भवन के मानद सचिव) तथा रामनंदन प्रसाद (उपाध्यक्ष तुलसी भवन) उपस्थित थें । इस कार्यक्रम में शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं साहित्य प्रेमी गोविंद दोदराजका जी को छंदमाल्य सम्मान-२०२३ से सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का संयोजन प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ एवं डॉ संध्या सिन्हा ने संयुक्त रूप से किया । संचालन की ज़िम्मेदारी सभी ग्यारह छंदसाधकों ने मिलकर निभायी ।

कार्यक्रम का उद्घाटन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन एवं साधकों द्वारा सरस्वती वंदना के साथ किया गया । छंदों का यह अद्भुत कार्यक्रम कुछ इस तरह से नियोजित किया गया था कि जिसमें किसी भी वाक्य को गद्य में उच्चारित नहीं किया गया , अतिथियों का स्वागत ,मंच पर आमंत्रण, आभार, संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन तक के कार्यों को केवल छंदों में हीकिया गया । यहां तक की समीक्षात्मक टिप्पणियां भी छंदों में की गई ।

वर्तमान में जहाँ छंदों का स्थान फूहड़ता युक्त कविताओं और चुटकुलों ने ले लिया है वहीं शहर की छंदज्ञ प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ ने शहर के प्रतिभाशाली कवियों को छंदज्ञान से अवगत कराने का बीड़ा उठाया है । उन्होंने बताया कि आज जमशेदपुर के अधिकांश कवि व कवियित्री छंद की जानकारी रखते हैं, और मंचों पर छंद की प्रस्तुति देने में सक्षम लगने लगे हैं ।

इस कार्यक्रम की चिंतक व संयोजिका प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ ने आगे बताया कि “उनकी इस अनोखे छंद आधारित कार्यक्रम की परिकल्पन को साकार करने का बीड़ा नगर एवं राज्य के कुशल छंदसाधकों ने भलि भाँती उठाया । छंदमाल्य कवि मंडपम् की यह तीसरी प्रस्तुति थी । इससे पहले छंदमाल्य -१ का आयोजन दिनांक 11.09.2022 को सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन तुलसी भवन, बिष्टुपुर, जमशेदपुर में सफलता के साथ आयोजित किया गया एवं छंदमाल्य-2 का आयोजन 23.04.2023 को छत्तीसगढ़ में ‘कला कौशल साहित्य संगम’ ने किया था ।

छंदमाल्य-3 के सहसंयोजन का दायित्व डॉ, संध्या सिन्हा ने बखूबी निभाया । जिनके कठिन परिश्रम का फल है कि तीन सत्रों में होने वाला यह कार्यक्रम पूरे जमशेदपुर के लिए एक आकर्षण का केंद्र बना रहा । इस पूरे कार्यक्रम में जमशेदपुर के साहित्यकार तकरीबन छः महीनों तक नए छंदों को सीखने में परिश्रम करते रहें, छंदों का अभ्यास करते रहें, उन सबके सहयोग से यह कार्यक्रम किसी महोत्सव से कम नहीं प्रतीत हो रहा था । कार्यक्रम की सूत्रधार एवं संयोजिका प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ , सहसंयोजक प्रोफेसर डॉ संध्या सिन्हा , हास्य विधा में पारंगत नवीन कुमार अग्रवाल एवं दीपक वर्मा ‘दीप’ , गीत गज़लों की दुनिया का जाना माना नाम शोभा किरण , खूबसूरत लेखिनी और आवाज़ की मल्लिका डॉ रजनी रंजन , छंदों की जानकार एवं मधुर स्वर वाली माधवी उपाध्याय, अद्भुत लेखन करने तथा नृत्य में पारंगत रीना सिन्हा ,लेखन और सुरों का तारतम्य लिए निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’ जो संगीत विधा में विशारद हैं और कुशल नृत्यांगना भी हैं ,पैंतीस से भी ज्यादा साझा संकलन में प्रकाशित छंदों की जानकार आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’ , राँची से कुशल प्रबंधक की बेहतरीन छवि वाली मनीषा सहाय ‘सुमन’ साहित्य साधक के रूप में उपस्थित रहीं । सवैया, लावणी छंद , विधाता छंद ,दोहा , जैसे छंदों का अद्भुत प्रदर्शन किया गया ।

प्रथम सत्र के उद्घाटन में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया और कार्यक्रम की सभी कवियित्रियों द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई । प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ के उद्बोधन के बाद छंदमाल्य -3 पुस्तक का लोकार्पण हुआ । जिसमें सभी ग्यारह प्रतिभागियों द्वारा लिखित विधाता छंद , सवैया छंद तथा लावणी छंद में गीत संकलित हैं । प्रथम सत्र का संचालन शोभा किरण एवं दीपक वर्मा ‘दीप’ के द्वारा किया गया ।

अब प्रतिभागियों के प्रस्तुतियों की बारी थी । जिसमें बारी- बारी से सभी की प्रस्तुति हुई । सभी साहित्यकारों ने सात-सात मिनटों में अपनी प्रस्तुति दी । जिसमें परिचय तथा रचनाओं को विधाता छंद , सवैया छंद एवं लावणी छंद के माध्यम से मुक्तकों एवं गीतों के रूप में प्रस्तुत किया गया और हर प्रस्तुति के बाद कार्यक्रम के अध्यक्ष गोप कुमार मिश्र तथा मुख्य अतिथि दिनेश रविकर जी द्वारा बारी-बारी से सभी प्रतिभागियों की प्रस्तुतियों की समीक्षा की गई।
अन्य सत्र का संचालन — तीन भागों में
रीना सिन्हा और मनीषा सहाय ‘सुमन’, निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’ एवं माधवी उपाध्याय ,आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’, तथा डा रजनी रंजन एवं दीपक वर्मा दीप ने संयुक्त रूप से किया गया ।

दूसरे सत्र में सर्वप्रथम कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों ने अपना वक्तव्य दिया तथा इस कार्यक्रम के प्रति अपने दृष्टिकोण को रखा । हमारे मुख्य अतिथि ने भी अपना दायित्व निभाया । इस प्रस्तुति के अंत में जयपुर, राजस्थान से विशेष आग्रह पर आए छंदमाल्य-३ कार्यक्रम के अध्यक्ष गोप कुमार मिश्र ने अपनी समग्र दृष्टि से देखते समझते हुए इस पूरे कार्यक्रम की तैयारियों एवं आयोजन पर समीक्षात्मक व्याख्या की ।
इस पूरी परियोजना में गोप कुमार मिश्र छंदमाल्य के प्रतिभागियों के साथ थे । सभी साधकों को छंद सिखाने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । अतः उनका दृष्टिकोण प्रतिभागियों के लिए अति आवश्यक था ।

उन्होंने इस कार्यक्रम को अनोखा,अद्वितीय और अतुलनीय बताया, साथ ही चिंतक प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ और पूरी टीम को उनके अथक प्रयास के लिए अनेक अनेक बधाईयां दीं और छंदमाल्य की आगामी कड़ियों के लिए शुभकामनाएं दीं । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दिनेश रविकर , विशिष्ट अतिथि रामनंदन प्रसाद , विशिष्ट अतिथि प्रसेनजीत तिवारी एवं सम्मानित अतिथि गोविंद दोदराजका ने अपने अपने विचार रखें । अतिथियों के द्वारा छंदमाल्य के सभी प्रतिभागियों को अंगवस्त्र ,स्मृति चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया । इस सत्र की खासियत यह रही कि स्मृति चिन्ह में छंद में परिचय लिखकर दिया गया था।

अब तीसरे सत्र में खुला मंच आयोजन लगभग तीन बजे आरंभ हुआ —
इस सत्र में शहर के ही उन प्रतिभागियों को प्रस्तुति देनी थी जो छंदमाल्य सत्र में नहीं थे परंतु आगामी कड़ियों में जुड़ना चाहते थे ।इस सत्र में भी सभी कवियों को विधाता छंद में ही रचनाऐं सुनानी थी । जिसमें कुछ छंदज्ञ तो कुछ नवोदित जानकर भी रहे , जिन्होंने अपनी बेहतरीन छंद काव्य पाठ से सबका मन मोह लिया । तालियों की गूंज अंत तक उतनी ही जोरदार सुनाई देती रही , जितनी प्रारंभ में। प्रस्तुति देने वालों में शहर के वरिष्ठ साहित्यकार और छंदों के जानकार श्यामल सुमन , मामचंद अग्रवाल ‘वसंत’ , छंदों की परम ज्ञानी मेहा मिश्रा , वीणा पांडेय भारती , अनामिका मिश्रा, पूनम शर्मा स्नेहिल , संतोष कुमार चौबे , किरण कुमारी , सविता सिंह मीरा ,डाॅ लता मानकर , पद्मा प्रसाद एवं शिप्रा सैनी रही । खुले मंच का छंदबद्ध संचालन दीपक वर्मा ‘दीप’ एवं अंत में धन्यवाद ज्ञापन नवीन अग्रवाल ने दोहा छंदों में इस कार्यक्रम का समापन किया । इस तरह 5 नवम्बर 2023 का पूरा दिन छंदमाल्य के नाम रहा , जो नाम इतिहास में अंकित होकर अमर हो गया ।

छंदमाल्य प्रतिभागियों की प्रस्तुति परिचय रिपोर्ट

छंदमाल्य- 3 में ग्यारह प्रतिभागियों ने संपूर्ण छंद में अदभुत प्रस्तुति प्रदान की , विधाता छंद , सवैया छंद एवं लावणी छंद आधारित गीतों की सुरमयी प्रस्तुति के लिये सभी प्रतिभागियों को सात मिनट का समय दिया गया था। छंदमाल्य तीन में नए जुड़े रचनाकारों में नवीन अग्रवाल, रीना सिन्हा , माधवी उपाध्याय प्रतिभागी के रूप में प्रथम बार सम्मिलित हुए हैं ।सभी की प्रस्तुति की विस्तृत व्याख्या अग्रलिखित है ।

प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’

आयोजन की सूत्रधार,चिंतक, परिकल्पना और कार्यक्रम संयोजिका .प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’, जिनके सानिध्य में प्रतिभागियों को छंद सीखने की ऐसी ललक पैदा की,कि शहर के कवि व कवियित्रियाँ सभी छंद सीखने के लिए प्रतिबद्ध है गईं । बिहार में पैदा हुईं , वहीं शिक्षा ग्रहण की फिर झारखण्ड जमशेदपुर में व्याह कर आई तो यहीं की होकर रह गई । उनके व्यक्तित्व में बिहार की निष्ठा की झलक है तो झारखण्ड का अख्खडपन भी झलकता है । उनकी प्रस्तुति का सभी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे , विधाता छंद में अपने नाम को सटीक परिभाषित करती उनकी छंद वर्षा में भींग कर सभी तृप्त हुए । उन्होने‌ एक ऐसे विषष पर सवैया पढ़ा जो साधारणत: से बढ़कर अकल्पनीय था , हाँ यदि भारत देश का राष्ट्रिय पशुधन गाय एक अछूता विषय जिसपर उन्होंने सवैया लिखा और उसका वाचन किया । प्रेम जेहाद पर विधाता छंद में रचना प्रस्तुत की । लावणी छंद में गीत जो सबकी अपेक्षाओं से परे था । अपने स्वभाव और लीक से हटकर उन्होंने गूगल बाबा पर गीत पढ़ा, जिसमे गूगल के सभी फायदे और नुकसान को बड़ी ही खूबसूरती से संजोया गया था । छंदों भरा यह कार्यक्रम अपने चरम पर था, सबके लाज़वाब गीत को सुनकर ये तय कर पाना सभी के लिए मुश्किल था, कि कौन किससे कितना बेहतर है। सभी एक से बढ़कर एक थे। पंक्ति प्रस्तुत है –
गुगल बाबा जो कहता है , सही गलत सद्ज्ञान लगे’।

नवीन अग्रवाल

हास्य व्यंग्य वह भी यदि छंदमय हो तो सोने पे सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए मंच पर आए जमशेदपुर के प्रसिद्ध हास्य /व्यंग्य के कवि नवीन अग्रवाल, उनके नाम से ही दर्शक दीर्घा में बैठे लोंगो के चेहरे पर सरल मुस्कान फैल गयी । दोहे में सबको प्रणाम करते हुए सबको विधाता छंद में अपना परिचय दिया। सवैया में भी चुगली वुगली जैसे शब्दों का प्रयोग हास्य का पुट लिए रहा । लावणी छंद में गीत के क्या ही कहने । वैसे तो नवीन अग्रवाल जी को अब तक पढ़ते हुए सबने सुना था, पर ये पहली प्रस्तुति उनकी गाते हुए देखी सुनी गई ,जो सबके लिए अनोखा पहला और आश्चर्य जनक अनुभव रहा, नवीन जी इतने अच्छे सस्वर के गायन के धनी भी हैं। उनकी रचना नगद नहीं तो क्यों डरता है, लेकर देख उधार ज़रा आने वाले समय में उनकी पहचान बनेगी । लाज़वाब सुर ताल शब्दों से सजी रही उनकी पूरी प्रस्तुति के लिये दर्शकों के साथ मंचासीन अतिथियों ने भी उनकी भूरि -भूरि प्रशंसा की ।

माधवी उपाध्याय

छंदमाल्य तीन की साहित्य प्रतिभा कोकिलकंठा और छंद आधारित गीतो पर पर अपनी मजबूत पकड़ रखने वाली माधवी उपाध्याय जी को साहित्य विरासत में मिला है । परंतु इनकी साधना व कोशिश व सक्रियता के लिये यह जमशेदपुर साहित्य जगत में जानी मानी हस्ती हैं ,पिता हरेराम त्रिपाठी जाने माने साहित्यकार की पुत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हैं । बिहार की बेटी झारखंड की बहू माधवी जी ने अपने परिचय में सब कुछ समेट कर सभी को अपनी प्रतिभा की झलक दिखायी वहीं मोहन की बंसी पर लिखा सवैया और उसपर उनकी मधुर बोली, जैसे चार चांद ही लग गए। उसके बाद शृंगार में रचित लावणी गीत,और उसे गाने का अंदाज़ ऐसा रहा कि दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग ताल देने लगे। कुछ देशज शब्दों का प्रयोग गीतों की सुंदरता को बढ़ा रहा था, उनकी गायकी व प्रस्तुति सुंदरतम रही।

रीना सिन्हा

जमशेदपुर साहित्य आकाश में छंदबद्ध व मुक्त रचनाओं में अपनी पहचान को दुरूस्त बनाती लेखिका कवयित्री सभी विधा में पारंगत रीना सिन्हा जी सौम्य और सुंदरता की प्रतिमूर्ती बनकर जब मंच पर आई तो अदभुत मंजर छा गया । रीना जी भी छंदमाल्य तीन में प्रथम बार भाग ले रहीं हैं । उनके बेहतरीन शब्दों के संयोजन से लिखी गए विधाता छंद में अपना परिचय मात -पिता स्थान रुचिकर मात्र चार पंक्तियों में कमाल की प्रस्तुति रही । लावणी छंद द्वारा गीत में धरती की पुकार का अनुपम वर्णन , जिसमें मानव द्वारा किये गए अत्याचारों को कुछ इसतरह पेश किया गया, कि दर्शक भी सोचने पर विवश हो गए । दर्शकों की खूब तालियाँ बटोरती रीना जी की इस प्रस्तुति की सुखद छाया उनके मुखड़े पर स्पष्ट थी, अंत में दोहे में आभार व्यक्त कर वह मंच से विदा ली।

आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’

आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’ हमेशा मुख पर मुस्कान रखे आदर्श व गुणों की परिभाषा गढ़ती न जाने कितने ही छंदों को लिखने की कला को साधने वाली साथ ही 35 से भी अधिक साझा संग्रहों में छंद बद्ध व मुक्त छंद में सहभागिता कर चुकी जमशेदपुर की कवयित्री आज किसी परिचय की मुहताज नही है । सस्वर परिचय गाथा सुनते ही तालियों की बौछार ने ये साबित कर दिया,सचमुच छंद साधना में आरती जी उचित सम्मान की हकदार हैं । विधाता में परिचय और फिर अपनी हिंदी भाषा और उनकी रचना ने सबका मन मोह लिया , जिसमे हिंदी को उन्होंने भारत का सरताज बनाने की बात कही । लावणी छंद में गीत भी बेहतरीन रहा जिसमें उन्होंने नारी कब अभिशाप बनी है? कहा-बेटी के पांव मत बांधो । इस सृजन और प्रस्तुति के साथ सभी का दिल जीतने में सफल रही । आरती जी प्रथम छंदमाल्य में प्रतिभागिता कर चुकी हैं ।

दीपक वर्मा ‘दीप’

जमशेदपुर साहित्य में हास्य की फुलझड़ियां छोड़ने में पारंगत आद. दीपक वर्मा ‘दीप’ जी अपनी पहचान बन चुके हैं हास्य छंद ,उनका निराला लेखन व मुस्कुराते व्यंग्य मय चेहरे पर भाव की उत्पक्ति ने हमेशा की तरह दर्शको हंसने और सोचने पर मजबूर कर दिया कि” छंद में भी हास्य! दीपक वर्मा क्या बात !! क्या बात !!!
वैसे हास्य वह भी स्तरीय विषयगत हास्य एक कठिन विधा है और हास्य यदी विधाता लावणी व दोहों में हो तो यह लेखन को संभव करना दीपक जी के दाएँ /बाएँ हाथ का खेल ही कहा जाएगा । इस कला में निपुण दीपक वर्मा ‘दीप’ जी ने सबको हंसा कर लोट पोट कर दिया । खूबसूरत परिचय,सवैया में भी हास्य, पत्नी को लेकर हास्य को रचना ये कला उनके नाम ही है। लावणी गीत कुछ इस तरह था,रोज़ लुगाई शक करती है, साली भी हैरान लगे,मेरे रहते दीपक जीजू,किस पर देने जान लगे ” अदभुत रहा वहीं दर्शक दीर्घा में बैठी उनकी साली व पत्नी ने भी उनके सुन्दर प्रस्तुति का आनंद उठाया । दीपक वर्मा जी छंदमाल्य प्रथम के सहयोगी रचनाकार रह चुकें हैं ।

मनीषा सहाय ‘सुमन’

राँची की रहनेवाली ,बिहार में जन्मी और वर्तमान कर्मभूमि जबलपुर से खूबसूरत व्यक्तित्व की स्वामिनी मनीषा सहाय’सुमन’ जी एकमात्र ऐसी प्रतिभागी है जो छंदमाल्य के अबतक के तीनो आयोजनो में सहयोगी व प्रतिभागी रहीं हैं।

साहित्य उनको विरासत में पिता कवि सुरेन्द्र नाथ जी से मिला और बिहार के साहित्यिक परिवेश व साहित्य विरासत को आगे बढ़ाती उनकी लेखिनी की माधुर्यता और समरसता ने सबका मन जीत लिया । विधाता छंद में परिचय,सवैया में ईश वंदना, तालियों की गड़गड़ाहट बता रही थी, प्रस्तुति अत्याधिक लाजवाब है ।लावणी में प्रकृति प्रेम पर रचा उनका गीत “मौसम ने फिर करवट बदली, तरुवर नाचे ताल भरे, रात अंधेरी कोयल कूके शुभ संकेतक भास करे, लेखिनी के सशक्त होने का प्रमाण देती हैं।

निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’

छंदमाल्य के बेहतरीन मणि माणिक्य समान व्यक्तित्व की स्वामिनी निवेदिता श्रीवास्तव’गार्गी’ जी के शालीन माधुर्य बिखेरता व्यक्तित्व ने मंच पर सभी का हृदय की धड़कनों को तरंगित कर दिया , अपने अनूठे अंदाज व सौम्य मुस्कान के साथ इन्होने दोहे में सबका स्वागत किया । विधाता छंद में अपना परिचय पढ़ा ,छपरा में जन्मी और उनका विवाह जमशेदपुर में हुआ, फिर माता पिता व स्वयं का खूबसूरत परिचय देते हुए , सवैया और अतिसुन्दर शृंगार गीत अपनी मनमोहक आवाज़ में प्रस्तुत किया , पंक्तियां कुछ यूं थी-“महक उठी जीवन बगिया,दर्शन पहली बार हुआ।युगों युगों से लगन लगी थी,अब पिय अंगीकार हुआ।” बेहतरीन प्रस्तुति बेहतरीन शब्द संयोजन की दर्शकों के साथ अतिथियों ने भी सराहना की। निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’ जी भी छंदमाल्य एक में प्रतिभागिता कर चुकी है ।

डॉ. रजनी रंजन

डॉ रजनी रंजन जो कि बेहतरीन छंद साधिका एवं शिक्षिका हैं, अनुपम छंद सर्जक तथा मधुर स्वर ,सुर , ताल की स्वामिनी ने मंच पर अपनी छंदमयी प्रस्तुति से मंच को जागृत कर दिया । हर छंद की अपनी लय धुन होती है पढ़ने व गायनकी शाश्वत परंपरा में माहिर छंदकार रजनी रंजन जी ने दोहों में सबकी वंदना करते हुए, अपना परिचय विधाता छंद में बड़े ही अनूठे तरीके से प्रस्तुत किया । सवैया को सवैया के विधान में सबके सामने रखा, और विधाता छंद में ही एक गीत जिसमें उन्होंने झारखंड के वीर सिपाही बिरसा मुंडा की पूरे जीवन गाथा को छंदों में पिरोते हुए दर्शकों के मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। श्रोता उनकी आवाज़ की मखमली जादू में कुछ देर के लिए खो गए। दर्शकों के साथ मंचीय अतिथियों ने भी पूरी प्रस्तुति की शानदार समीक्षा के साथ रजनी जी कला कौशल की तारीफ की। रजनी जी प्रथम छंदमाल्य में सम्मिलित रह चुकी है।

डॉ. संध्या सिन्हा

जमशेदपुर में विदुषी का जिक्र यदि चले, तो पहला नाम होगा आ. प्रोफेसर डॉ संध्या सिन्हा जी की ही चर्चा में आतीं हैं । जब वह मंच पर आई दर्शक दीर्घा ने जोरदार तालियों से उनका अभिनंदन किया ।
दोहे में सबका स्वागत और स्वयं को विद्या व्यसनी कहते हुए विधाता में अपना परिचय जिसमें पूरे परिवार को समेट रखा था। उनके शब्द भाव व संयोजन अति उत्तम रहा, सशक्त लेखिनी का परिचय देता हुआ उनके सवैया छंद पर सभी मंत्र मुग्ध हो उठे और लावणी गीत और स्वर का क्या ही कहना बस सभी श्रोता और मंचीय आसीन अतिथि झूम उठे । बेहतरीन श्रृंगार गीत “आओगे तो खिल खिल जाए,जूही चंम्पा राह झरे, आंगन की तुलसी जल बैठी,प्रिय वियोग में आह भरे।”
बस आह स

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