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चुनाव जीतने के लिए वित्तीय स्थिति को अनदेखी कर लोकलुभावन वादे करना अर्थव्यवस्था के साथ खुला खिलवाड़ है: लक्ष्मी सिन्हा

बिहार पटना: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी की प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि मुफ्तखोरी की राजनीति का सहारा लेकर चुनाव जीतने की कोशिश किस तरह आम होती जा रही है, इसका ताजा प्रमाण है जबलपुर में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की यह घोषणा की यदि राज्य में उनकी सरकार बनी तो सौ यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी, रसोई गैस सिलेंडर पांच सौ रुपए में दिया जाएगा और महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए दिए जाएंगे। इसके अलावा उन्होंने किसानों का कर्ज माफ करने और पुरानी पेंशन योजना लागू करने का भी वादा किया। उन्होंने इसे पांच गारंटी की संज्ञा दी। कुछ इसी तरह की पांच गारंटीयां कर्नाटक में भी दी गई थी। उन्हें पूरा करने के लिए कर्नाटक सरकार को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है, क्योंकि राज्य की वित्तीय स्थिति उन्हें पूरा करने की अनुमति नहीं देती। कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में भी कुछ ऐसे ही वादे किए थे। हिमाचल सरकार को छह माह बाद भी इन वादों को पूरा करना कठिन हो रहा है और इसका कारण राज्य की वित्तीय स्थिति है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि जैसे गारंटियों कांग्रेस दे रही है, वैसे ही अन्य दल भी। अभी हाल में दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने दस गारंटियां दी थी। ये गारंटियां और कुछ नहीं लोकलुभावन वादे ही होते हैं। चूंकि जब कोई एक दल ऐसे वादे करता है तो अन्य दल भी वैसा करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। इसके बाद उनमें मुफ्त की सामग्री या सुविधा देने की होड़ लग जाती है। एक समय यह होल्ड तमिलनाडु तक सीमित थी, लेकिन अब सारे देश में फैल चुकी है और सभी दल उसकी चपेट में आ चुके हैं। यहां तक कि वह जो इस तरह के लोकलुभावन वादों को रेवड़ी संस्कृति बताती है। राजनीतिक दल लोकलुभावन वादों का यह कह कर बचाव करते हैं कि उन्हें जनकल्याण कहा जाए न कि मुफ्तखोरी।वे कुछ भी कहे, सच यह है कि उन्होंने जनकल्याण और मुफ्तखोरी के बीच का भेद खत्म कर दिया है। वे ऐसा करने में इसलिए सफल है, क्योंकि जो एक के लिए रेवड़ी है, वही दूसरे के लिए जनकल्याण। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि जनकल्याण की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं, इसलिए जिस दल के जो मन में आता है,वह भी घोषणा कर देता है। कई बार उनकी ओर से ऐसी घोषणाएं भी कर दी जाती है, जिन्हें पूरा करना संभव नहीं होता। उन्हें या तो आधे-अधूरे ढंग से पूरा किया जाता है यह देर से अथवा उनके लिए धन का प्रधान जनता के पैसों से ही किया जाता है। उदाहरणस्वरूप कर्नाटक सरकार ने दो सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने के वादे को पूरा करने के लिए बिजली महंगी कर दी। इसी तरह पंजाब सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स बढ़ा दिया। चुनाव जीतने के लिए वित्तीय स्थिति की अनदेखी कर लोकलुभावन वादे करना अर्थव्यवस्था के साथ खुला खिलवाड़ है। इस पर रोक नहीं लगी तो इसके दुष्परिणाम जनता को भुगतने पड़ेंगे।

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