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उठूंगा गिरूंगा और फिर सीना…..

रघुबंश
*”ठोकरें खाता हूँ पर*,
*शान” से चलता हूँ”*।
*”मैं खुले आसमान के नीचे*,
*सीना तान के चलता हूँ”*

*”मुश्किलें तो सच है जिंदगी का*,
*आने दो- आने दो*”।
*”उठूंगा, गिरूंगा फिर उठूंगा और*,
*आखिर में “जीतूंगा ” यह ठान के चलता हूँ”*

साथ बना रहे….
स्नेह बना रहे….
टीम सुरेश सोन्थालिया।

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