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झारखंड में क्यो सुस्त दिख रही कांग्रेस! कछुए की चाल से भी धीमी है लोकसभा की तैयारी, जाने क्या है वजह

संतोष वर्मा

चाईबासा।लोकसभा चुनाव की तैयारी पूरी हो चुकी है।कभी भी चुनाव आयोग चुनाव की घोषणा कर सकता है.इसे देखते हुए सभी राजनीतिक दल चुनावी रेस में दौड़ पड़ी है।जनसभाएं होने लगी है.विभिन्न तरीके से जनता के पास पहुंचने में नेता लगे हुए है.झारखंड की बात करें तो यहां भी भाजपा,झामुमो और अन्य दलों ने अपने अपने तरीके से चुनाव की तैयारी शुरु कर दिया है लेकिन कांग्रेस में सुस्ती साफ दिख रही है।अब तक ना तो कांग्रेस ने कोई चुनावी रैली की शुरूआत की है और ना ही लोकसभा चुनाव को लेकर कैंडिडेट की लिस्ट फाइनल कर सकी है। अगर 7-7 फार्मूले की ही बात की जाए तो अब तक ना तो सहयोगी दलों से सीटों के ताल मेल पर कोई ठोस बात हो पायी है और ना ही उम्मीदवारों पर कांग्रेस के अंदर सहमति बन पाई है . अंदर की खबर तो ये भी है की यहां अगर कोई योग्य प्रत्यासी नहीं मिला तो बाहरी को भी आजमाया जा सकता है। अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा , सवाल अब यह भी उठने लगा है कि सूबे की सत्ता में आसीन होने के वावजूद कांग्रेस संगठन को मजबूत क्यों नहीं कर सकी! जिला से लेकर प्रखंडों तक मे भाई -भतीजा बाद से लेकर चमचों के हाथों में पार्टी कीज बागडोर दे दी गई लेकिन योग्य कार्यकर्ताओं को हासिये पर डाल दिया गया। कांग्रेस के लिए स्थिति आज इतनी बिकट है कि एक सीट के जीत की गारन्टी देने वाला शायद ही कोई नेता हो? शायद ही इन 5 वर्षों में कोई नेता बन पाया हो जोग जीत की गारंटी दे सके।

प्रदेश में गठबंधन की सरकार फिर भी संगठन कमजोर

प्रदेश में कांग्रेस की गठबंधन की सरकार है।बावजूद पार्टी के नेता सक्रिय नहीं दिख रहे है। लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस में महिनों से मंथन चल रहा है लेकिन अब तक लिस्ट फाइनल नहीं हो सकी।अब प्रभारी और अध्यक्ष विभिन्न लोकसभा क्षेत्र में जा कर मंथम कर रहे है।आखिर टिकट किसको दे.किस पर दांव खेले जो सीट को झोली में डाल सके।इसे देख लोगों में चर्चा होने लगी कि भोज के दिन कोहड़ा रोपने का काम कांग्रेस कर रही है। लोकसभा चुनाव को लेकर कई बैठक रांची से दिल्ली तक हुई लेकिन कुछ निष्कर्ष नहीं निकल सका है।

चुनाव सर पर लेकिन मगजमारी जारी

तभी तो अब प्रभारी लोकसभा क्षेत्र पहुंच कर बैठक कर रहे है.स्थानीय नेताओं से बैठक कर रणनीति बना रहे है।लेकिन एक सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस के नेता ही पार्टी को डुबाने में लगे है।ना तो किसी तरह की सक्रियता पार्टी के नेताओं में दिखाई दे रही है ना ही कार्यकर्ताओं में,आखिर कैसे चुनाव में अपनी नैया पार करा पाएंगे।

कांग्रेस को छोड़ सभी दल के कार्यक्रम तय

कांग्रेस को छोड़ दे तो भाजपा झामुमो ताबड़तोड़ कार्यक्रम कर जनता तक पहुंच रही है।झामुमो के प्रखंड स्तर से लेकर जिला स्तर तक कार्यक्रम चला रही है।कभी आक्रोश मार्च निकाल रही है तो कभी हेमन्त सोरेन की गिरफ्तारी के विरोध में न्याय मार्च इसके अलावा और भी कई कार्यक्रम चलाए जा रहे है।जिससे देखने में ही लग रहा है कि चुनाव के रेस में जेएमएम तो आगे दौड़ रही है।वहीं भाजपा की बात कर ले तो भाजपा भी कई कार्यक्रम चला कर केंद्र सरकार की उपलब्धि को जनता के बीच रख रही है।मोदी के नाम पर 400 के आंकड़े को तक पहुंचने में लगी है।साथ ही झारखंड में 14 लोकसभा सीट पर कमल खिलाने की कोशिश में सभी नेता अभी से ही लगे है।लेकिन इसमें कांग्रेस कही दूर दूर तक दिख नहीं रही है।

दमदार प्रत्याशियों का कांग्रेस में टोंटा

अगर बात कैंडिडेट की करें तो कांग्रेस के पास कई लोकसभा क्षेत्र में कैंडिडेट नहीं है।जिसमें पलामू लोकसभा का नाम सबसे ऊपर है,यहां से किसी बाहर के नेता को उम्मीदवार बनाने की तैयारी चल रही है।साथ ही गोड्डा की जंग में देखे तो भाजपा से कम आपस में ही कांग्रेसी बयानबाजी करते दिख रही है।अब सवाल है कि आखित कांग्रेस को कौन डुबाना चाहता है।क्या जो आरोप प्रदेश नेतृत्व पर विधायकों और अन्य नेताओं ने लगाया था वह सही है।

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