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तुलसी भवन में कुमकुम द्वारा संचालित संपूर्ण छंदों पर आधारित छंदमाल्य का आयोजन किया गया

देश के कई बड़े बड़े शहरों से शामिल हुए ख्याति प्राप्त कवि और कवयित्री

जमशेदपुर। लौह नगरी में साहित्य के ह्रदय-स्थल तुलसी भवन में सिंहभूम जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा आयोजित एवं वरिष्ठ साहित्यकारा , छंदज्ञ विदुषी श्रीमती प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ द्वारा संचालित पूर्णतः छंदों पर आधारित एक दिवसीय कार्यक्रम “छंदमाल्य” आयोजित किया गया। उक्त कार्यक्रम विविधवर्णी आभा के लिए मुख्यतः 3 सत्रों मे संचालित किया गया। इस पूरे कार्यक्रम में तुलसी भवन के मानद महासचिव श्री प्रसेनजित तिवारी का उल्लेखनीय योगदान रहा, जो पूरे कार्यक्रम में दृष्टिगोचर होता रह।
कार्यकारिणी का भी उल्लेख अति अनिवार्य है। उनका भरपूर सहयोग ही है जो खूबसूरत कार्यक्रम प्रस्तुत हुआ है।

प्रथम सत्र उद्घाटन सत्र हुआ जिसमें अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन के बाद सरस्वती वंदना छत्तीसगढ़ से आये कवि कौशल महंत ‘कौशल’ ने की। कार्यक्रम का शुभारम्भ तुलसी भवन के न्यासी अरुण कुमार तिवारी के स्वागत भाषण से कार्यक्रम से किया गया। अध्यक्ष दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’ एवं मुख्य अतिथि आदरणीय डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय के उद्बोधन से पूर्व कार्यक्रम की रूपरेखा की प्रस्तुति प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ ने दोहे में किया। प्रथम सत्र का संचालन डॉ. संध्या सिन्हा और धन्यवाद ज्ञापन प्रतिभा प्रसाद कुमकुम ने किया।

द्वितीय सत्र में छन्दमाल्य के मंच से 5 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया। तत्पश्चात छंदमाल्य के छंदज्ञ कुल 11 कवि-कवयित्रियों की विविध विषयों पर काव्य-प्रस्तुति हुई, जिसमें भक्ति, पर्यावरण, प्रेम, हास्य एवं नीति की कवितायें प्रमुख रहीं। इसी सत्र में अतिथियों और प्रस्तोताओं को सम्मानित भी किया गया। सत्र का समापन मनीषा सहाय सुमन द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से संपन्न हुआ।
कार्यक्रम का अंतिम सत्र खुला-मंच था, जिसमें नगर एवं नगर के बाहर से पधारे आमंत्रित कवियों ने अपनी छंदोंबद्ध रचनाओं को प्रस्तुत किया । खुला मंच का संचालन दीपक वर्मा दीप एवं मंजू भारद्वाज ने किया , जबकि धन्यवाद ज्ञापन प्रतिभा प्रसाद ‘ कुमकुम ‘ ने किया ।
लगभग दस घंटे तक लगातार चलने वाला यह आयोजन पूरे भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व का ऐसा पहला आयोजन था जिसमें हिंदी साहित्य के पाँच छंदों को माध्यम बना कर आदि से अंत तक कार्यक्रम को एक स्वरूप प्रदान किया गया। राजभाषा हिंदी के विकास व प्रचार-प्रसार में छंद-शास्त्र को स्थापित कर पुन: भारत की प्राचीन साहित्यिक विरासत जिसमें भारतीय ज्ञान-दर्शन व आध्यात्म पिरोया है उसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता शहर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार आदरणीय दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’ ने की। मुख्य अतिथि के रूप में राँची विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पाडेय के साथ ही कई जाने-माने प्रसिद्ध छंद गुरुओं के नेतृत्व में यह आयोजन हुआ। कार्यक्रम संयोजिका श्रीमती प्रतिभा प्रसाद कई छंदो में पारंगत हैं और कार्यक्रम में मुख्य सूत्रधार की भूमिका भी उन्होंने ही निभाई। जिन पांच छंदों पर ये छंदमाल्य आधारित था,वे छंद थे,
१. दोहा २. कुण्डलियां ३. चौपाई ४.घनाक्षरी ५. आल्हा
लगभग 10 महीनों तक अभ्यास करते इस कार्यक्रम के प्रतिभागीयों के रूप में छंद गुरु कौशल दास महंत छतीसगढ़ से, मंजू भारद्वाज हैदराबाद सें मनीषा सहाय ‘सुमन’ राँची से डॉ. रजनी रंजन, घाटशिला से डॉ संध्या सिन्हा ‘सूफी’ , दीपक वर्मा ‘दीप’, आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’, शोभा किरण, निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’, किरण कुमारी ‘वर्तनी’ जमशेदपुर से चयनित किये गए। इन सभी छंदज्ञों ने अपनी छंदमय प्रस्तुति से इस आयोजन को अभूतपूर्व भव्यता प्रदान किया।

श्री कौशल दास महंत – विधा – दोहा, कुण्डलियां,आल्हा छंद
सर्वप्रथम कौशल दास महंत ने अपनी प्रस्तुति में अपना परिचय दोहो से आरंभ किया। छंद ज्ञान से परिपूर्ण संतोष, धैर्य व प्रेम से परिपूर्ण इनके परिचय के दोहों ने मंत्रमुग्ध कर दिया । आगे कुंडलियाँ छंद में ये हिंदी भाषा का गौरवगान करते हुए राज भाषा हिंदी को मानवाता का प्रकाशपुंज बतलाते है। अपने छंद के सुर-ताल, लय यति- गती, भाव ,लालित्य के विज्ञान का विश्लेषण ये दोहों में ही करते है। फिर आल्हा-छंद में इन्होंने मानवता के पुण्य पंथ पर अपनी आकर्षक रचना प्रस्तुत की।

डॉ. संध्या सूफी – विधा – दोहा, कुण्डलियां, घनाक्षरी, चौपाई
इनके बाद डॉ. संध्या सिन्हा ‘सूफी’ ने मनहरण घणाक्षरी विधा में अपना परिचय देते हुए आगे दोहा व चौपाई छंद को माध्यम बना कर रामायण के अतिसंवेदनशील “संजीवनी बूटी लाने के” प्रसंग को इन्होंने जिस तरह दोहा, चौपाई में सुनाया कि राम कथा पुनः सजीव सी प्रतीत हुई।

श्री दीपक वर्मा ‘दीप’ – विधा – दोहा, कुण्डलियां, चौपाई, घनाक्षरी, आल्हा छंद
इसके बाद कुछ रुचि परिवर्तन करते हुए आई हास्य-व्यंग्य की बारी। हास्य कवि आ. दीपक वर्मा ने दोहों के माध्यम से अपना परिचय प्रस्तुत करते हुए हास्य-व्यंग्य के रचनाओं को छंदों में ढ़ाल कर एक नए आयाम को जन्म दिया। फिर कुण्डलियाँ के माध्यम से इन्होंने नारी पर अपनी दिव्य दृष्टि डालते हुए चौपाई छंद की ओर रूख किया जिसमें एक पत्नीव्रता पति के मनोभावों के माध्यम से इन्होंने हास्य रचा। फिर मनहरण घनाक्षरी की विधा में इन्होंने अपनी जीवन संगनी की बड़ाई व खिंचाई सुन्दर व सुगठित तरीके से की। आल्हा राग में पुरूषों को कुछ हास्य से भरपूर वीरता के संदेश भी दिये । सभी छंदो में हास्य का प्रयोग बड़ा ही सुन्दर और मनोहारी लगा ।

डॉ. रजनी रंजन – विधा – दोहा, आल्हा छंद डॉ. रजनी रंजन ने आल्हा-छंद में अपना परिचय प्रस्तुत करते हुए सभी को स्नेहिल नमन प्रेषित किया। आल्हा छंद / वीर छंद में पन्ना धाय की वीरता व राष्ट्रप्रेम की गाथा का सस्वर गान वाक‌ई मनमोहक रहा। ये अपनी रचना में मेवाड़ के राज घराने के घात-प्रतिघात व पन्ना धाय के सर्वोच्च बलिदान की अमर गाथा सुनाती है। आगे दोहों में रामकथा का अविस्मरणीय वर्णन भी कार्यक्रम को ऊँचाईयों तक ले गया।

श्रीमती मनीषा सहाय ‘सुमन’ – विधा – दोहा, घनाक्षरी, आल्हा छंद, कुण्डलियां मनीषा दोहा छंद के माध्यम से अपना परिचय देते हुए शब्द को ब्रह्म रूप में स्थापित किया। अपनी रचना में धरती व प्रकृति का वर्णन वो मनहरण घनाक्षरी में प्रस्तुत करती हैं। फिर पर्यावरण सुधार पर बल प्रदान करते हुए उन्होंने एक और घनाक्षरी सुनाई। आगे आल्हा छंद /वीर छंद के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वतंत्रता आंदोलन में सत्य अहिंसा की लड़ाई ,सत्याग्रह आंदोलन का भी इन्होंने अप्रतिम वर्णन किया। अंत में कुडलियाँ व दोहे में सभी का आभार प्रकट किया।

श्रीमती प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ -विधा – आल्हा छंद
इस वृहत आयोजन की सूत्रधार प्रतिभा प्रसाद ‘कुमकुम’ की प्रतिभा उनके द्वारा रचित छंदों में साफ-साफ नजर आती है। प्रतिभा ने आल्हा छंद में अपना परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि ये झारखंड प्रतिभाओं की खान है। आगे आल्हा छंद में ही वह माता सीता के वनवास के बाद उनकी मान-मर्यादा की करूण कथा का वर्णन करती हैं । वीर रस में माँ के विचलित हृदय की कहानी ,कुल मर्यादा की रक्षा के लिये त्याग, तप और बलिदान के साथ स्त्री स्वाभिमान की रक्षा के स्वर की प्रखर धारा पौराणिक कथाओं के पात्रों को अनमोल सिद्ध करती है।

श्रीमती आरती श्रीवास्तव ‘विपुला’ – विधा – दोहा, घनाक्षरी,आल्हा छंद आरती श्रीवास्तव‌ ‘विपुला’ ने दोहा-छंद में अपना परिचय प्रस्तुत करते हुए अपने घर को तीर्थ बताया। इसके बाद आल्हा छंद में देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की संपूर्ण जीवन यात्रा व स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया। उसके बाद घनाक्षरी में नारी के बढ़ते कदमों की उड़ान दिखाई और दोहे से आभार प्रकट किया।

श्रीमती किरण कुमारी ‘वर्तनी’ – विधा – दोहा, आल्हा छंद किरण कुमारी ‘वर्तनी’ ने दोहों के माध्यम से अपना परिचय सभी के समक्ष रखते हुए वंदना की। फिर दोहो में ही वह प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण का बहुमूल्य संदेश प्रसारित करतीं हैं । उसके पश्चात आल्हा छंद में देश पर मर मिटने वाले वीर सैनिकों की गौरवगान व बलिदान की गाथा सुनाई और अंत में दोहे के माध्यम से आभार प्रकट किया।

श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’ – विधा – दोहा, कुण्डलियां, आल्हा छंद, घनाक्षरी निवेदिता श्रीवास्तव ‘गार्गी’ ने भी दोहों के माध्यम से अपना परिचय प्रदान किया और फिर कुंडलियाँ छंद के द्वारा कृष्ण भक्ति में लीन हो ग‌ईं। इसके बाद इन्होंने आल्हा छंद के माध्यम से वर्षा ऋतु का मनोहर चित्र प्रस्तुत किया। अंत में मनहरण घणाक्षरी में श्रृंगार रस द्वारा अपना मंच आभार प्रकट किया।
श्रीमती शोभा किरण – विधा – दोहा,घनाक्षरी,आल्हा छंद शोभा किरण जी ने भी दोहा-छंद के माध्यम से मंच पर अपना परिचय प्रस्तुत किया। पहले दोहों में फिर मनहरण घनाक्षरी में यह नारी नारायणी के विभिन्न रूपों का मधुर स्वर में गान करती हैं। उसके बाद आल्हा-छंद में भारत की उन महिलाओं का वर्णन किया, जिन्होंने धरती से लेकर आकाश तक अपने देश के स्वाभिमान एवं नारी शक्ति की पहचान को बुलंद किया है।
श्रीमती मंजू भारद्वाज – विधा – चौपाई छंद मंजू भारद्वाथ जी ने चौपाई छंद में अपना परिचय दिया। वे चौपाई छंद में ही कृष्ण ली का यशगान प्रस्तुत करती हैं जिसमें वियोग रस में राधा और गोपियों को समझाने जब कई वेद पुराण के ज्ञाता उद्धव जी आते हैं तो राधा की कृष्ण प्रेम भक्ति में डूब आलोकिक ब्रह्म ज्ञान को भूल बैठते है । भगवान लीलाधर की अपरंपार लीला का दर्शन बहुत ही सुंदर बन पड़ा। यह तो छंदमाल्य कार्यक्रम की अद्भुत प्रस्तुति रही । दूसरे सत्र में आगमन अतिथियों का और प्रतिभागियों का सम्मान समारोह में छंदों के सस्वर पाठ से आरंभ हुआ। छंदों के अविरल फुहारों से सभागार सराबोर होता रहा, गदगद होता रहा। बीस अतिथियों का सम्मान छंदों के प्रवाह में गायन के संग संग प्रवाहमान रहा।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में खुला मंच में दीपक वर्मा ‘दीप’ व मंजू भारद्वाज के संचालन में सिर्फ दोहे व कुंडलियों के प्रस्तुति के साथ गणमान्य साहित्यकारों ने भी ‌अपनी अपनी प्रस्तुति दी, जिनमें प्रमुख नाम हैं – दिनेश्वर प्रसाद सिंह ‘दिनेश’, कौशल महंत ‘कौशल’, डॉ रजनी रंजन,मनीषा सहाय ‘सुमन’, मामचंद अग्रवाल, वीणा पाण्डेय ‘भारती’, माधवी उपाध्याय, यमुना तिवारी ‘व्यथित’, प्रतिमा मणि त्रिपाठी, नवीन अग्रवाल, वीना कुमारी नंदनी आदि।
धन्यवाद ज्ञापन तुलसी भवन के उपाध्यक्ष राम नन्दन प्रसाद ने दोहे में देकर सभी साहित्यकारों को आह्लादित कर दिय। इस तरह पूरा कार्यक्रम छंदमय रहा और कार्यक्रम का नाम छंदमाल्य सार्थक सिद्ध हुआ।
मौके पर सर्वश्री / श्रीमती डाॅ० अजय कुमार ओझा, कैलाश नाथ शर्मा ‘गाजीपुरी’, प्रसन्न वदन मेहता, डाॅ० रागिनी भूषण, कैप्टन राजेश लाल, विक्रमा सिंह देहदुब्बर, बलविन्दर सिंह, डाॅ० पुनम सहाय,डाॅ० संजय पाठक ‘सनेही’ , शकुन्तला शर्मा, ब्रजेन्द्र नाथ मिश्र, डाॅ० उदय प्रताप सिंह, कवलेश्वर पाण्डेय, संतोष कुमार चौबे, सूरज सिंह ‘राजपुत’, जितेश तिवारी, विमल किशोर विमल , रीना सिन्हा, नीलिमा पाण्डेय, नीता सागर चौधरी समेत शताधिक साहित्यकारों की उपस्थिति सराहनीय रही।

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