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बिष्टुपुर राम मंदिरः देवी भागवत कथा में गुरूजी ने की बेटी बचाने की अपील

शिव पार्वती विवाह महोत्सव की झांकियों ने श्रद्धालुओं को किया आनंदित

जमशेदपुर। श्रीविद्या शक्ति सर्वस्वम, चेन्नई के तत्वाधान में श्रीमाता ललिताम्बिका राजराजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की अत्यंत महत्ती कृपा से बिष्टुपुर राम मंदिर में चल रहे नौ दिवसीय श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ एवं श्रीमद देवी भागवत, कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन मंगलवार को विजय गुरूजी ने हिमालय को देवी गीता का उपदेश, मां पार्वती का प्राकट्य, शिव पार्वती विवाह महोत्सव कथा का वर्णन प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया। कथा के दौरान शिव पार्वती विवाह महोत्सव की झांकियों ंने श्रोताओं को आनंदित किया। बुधवार 4 जनवरी को प्रकृति देवियों के अंश स्वरूपा देवियों का वर्णन होगा। सातवें दिन मंगलवार को भी 37 यजमानों द्धारा श्री अम्बा यज्ञ नव कुण्डात्मक सहस्त्रचंडी महायज्ञ किया गया।
सत्य और शिव एक हैः- गुरूजी ने शिव पार्वती विवाह महोत्सव का प्रसंग सुनाते हुए बेटी बचाने की अपील करते हुए कहा कि भगवान शंकर और पार्वती जी के विवाह का प्रसंग बहुत मंगलकारी है। जो इस कथा को सुनता है, उसके मनोरथ पूर्ण होते हैं। सत्य ही शिव है और शिव ही सत्य है। जीवन के अटल सत्य मृत्यु को भगवान शिव ने अंगीकार किया, तभी उन्हें भष्म प्रिय है। यह विधाता का मानव के लिए संदेश भी है। उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ, ऐसे ही हमारे जीवन में आत्मा का विवाह परमात्मा से होना चाहिए, ताकि हम भी शिव के चरणों में जा सकें और मोक्ष को प्राप्त कर सकें।

पार्वती ने अपने पिता को उपदेश दियाः- उन्होंने कहा कि भगवती में पूर्ण निष्ठा तथा तत्परता रखनी चाहिए, ऐसा वेदान्त का स्पष्ट उदघोष हैं। जो मनुष्य किसी भी बहाने सोते, बैठते अथवा चलते समय भगवती का निरन्तर कीर्त्तन करता हैं वह संासारिक बंधन से मुक्त हो जाता हैं। जब देवी ने हिमालय के यहाँ मैना के गर्भ से जन्म लिया तो हिमालय ने देवी को प्रणाम किया और उनसे ब्रह्मविद्या प्रदान करने का अनुरोध किया। उन्होंने आगे कहा कि पार्वती ने अपने पिता को उपदेश दिया जो देवी गीता या भगवती गीता कहा जाता है। पार्वती हिमनरेश हिमावन तथा मैनावती की पुत्री हैं, तथा भगवान शंकर की पत्नी हैं। उमा, गौरी भी पार्वती के ही नाम हैं। यह प्रकृति स्वरूपा हैं। पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमनरेश के घर आये थे। हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में यह बताया कि तुम्हारी कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। किन्तु महादेव जी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये तुम्हारी पुत्री को घोर तपस्या करना होगा। पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये वन में तपस्या करने चली गईं। अनेक वर्षों तक कठोर उपवास करके घोर तपस्या की तत्पश्चात वैरागी भगवान शिव ने उनसे विवाह करना स्वीकार किया।

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