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स्वास्थ्य : कोरोना काल मे 40 फीसद बढे़ डिप्रेशन के मारीज मनोचिकित्सक ने की उपचार पर चर्चा

नेहा तिवारी
प्रयागराज। आर्थिक तंगी ,पारिवारिक दिक्कत ,बीमारी ,काँरियर ,काम का बोझ तमाम तरह की चिंता समेत अन्य समस्याओ के साथ कोरोना से उबरे लोग भी अब डिप्रेशन का शिकार हो रहे है।
मनोचिकित्सक के मुताबिक करीब 40 प्रतिशत लोग डिप्रेशन का शिकार है। डिप्रेशन के मरीज इसलिए बढ़ रहे है, क्योकि वह खुद को मानसिक रोगी मामने को तैयार नही है। इससे बदल रहा व्यवहार ,लोगो के दिमाग पर भारी पड़ रहा है।

ऐसे तमाम मुद्दो पर चर्चा के बाद इंडियन साइकेटि़क सोसाइटी के तीन दिनी वार्षिक सम्मेलन सिपकांन का को समापन हो गया ।पीजीआई चंडीगढ़ की डाँ सविता मेहरोत्रा ,सतना की डाँ संगीता जैन,लखनउ की डाँ विवेक अग्रवाल, बीएचयू के जय सिंह यादव, डाँ एपी पाण्डे ,जबलपुर के डाँ पीके ज्वैल समेत अन्य विशेषज्ञो ने कोरोना काल मे बढ़ते डिप्रेशन के मरीजो के उपचार पर चर्चा की।

पटना के डाँ विनय कुमार ने रचात्मक और मनोरोग की जानकारी दी ।विशेषज्ञो ने बताया की कोरोना काल मे आया ठहराव और वार्तमान की कार्यशैली के बीच तालमेल का न बैठ पाना भी डिप्रेशन का कारण बन रहा है । लोगो को अपने भीतर आए बदलाव पर ध्यान देकर अनुशासित होना होगा।

इस मौके पर उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश, उत्ताराखंड और झांरखंड के मानसिक रोगी विशेषज्ञो ने दिमाग के साइक्रेटि़ पक्ष को जानने पहचानने और निदान पर आपने अनुभव साझा किए । बताया कि किस तरह डिप्रेशन के शिकार व्यक्ती से बातचीत ,मनोभावो को जानने ,चेहरा दिखाकर उपचार किया जाएगा ।विशेषज्ञो ने व्यवाहार परिवर्तन विषय पर अपने अनुभव साझा किए।

आयोजन सचिव डाँ ,सौरभ टंडन ,संयोजक डाँ विपुल महनोत्रा ,डाँ पुष्कर निगम के मुताविक करीब 150 विशेषज्ञो ने अनुभव साझा किए ।50 से अधिक शोधपत्र पढे़ गये। विशेषज्ञो ने डिप्रेशन ही नही ,नशा गेमिंग ,इंटरनेट और मोबाइल पर निर्भरता के साथ बच्चो के हाथो मे मोबाइल जाने के खतरा पर भी चर्चा कि बताया गया कि बदली परिस्थियो मे बिहेवियर एडिक्शन के खतरे बताकर निदान निदान भी सुझाए गये ।

साइक्रे टिक से परहेज ,अन्य विशेषज्ञो से इलाज संयोजक ,डाँ विपुल मेहरोत्रा के मुताबिक मनोरोग का इलाज कराने से लोग कतराते है। कोरोना काल मे लोग डरे ,घर मे रहे लेकिन आपनो से दूर रह कर इंटरनेट की दुनिया मे रमे रहे।काम से विरत रहे सो दिनचर्या अनियमित हो गयी ,जिससे डिप्रेशन ही नही बढा़ बीमारियों ने घेरना शुरु कर दिया।

इसमे सर्वाधिक मरीज डिप्रेशन के सामने आ रहे है। लेकिन मानसिक रोग के लक्षण जानते हुए भी लोग अन्य बीमारियो के विशेषज्ञो के पास पहुचते है, लेकिन साइक्रेटिक के पास जाना नही चाहते ,डाँ शौरभ टंडन ने बताया की पीडित इलाज न कराने से दिमाग को हल्का करने के लिए नशा करने लगते है,हाल के ही दिनो मे यह परेशानी देखने को मिल रही है।यह दिनचर्या के साथ अनुशासनहीनता का परिणाम है।

लक्षण- तनाव ,नींद ना आना,नशाखोरी,बिमारी की आशंका,घबराहट,मौत का डर समस्या के समाधान के बारे मे ना सोचना ,मोबाइल और टीबी के साथ जादा टाइम व्यतीत करने की आदत।

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