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प्रकृति और पर्यावरण की जिम्मेवारी किसी अकेले की नहीं, पूरे समाज की है लेकिन लोग उसे सरकार पर छोड़ देते हैं: लक्ष्मी सिन्हा

बिहार पटना सिटी: राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव लक्ष्मी सिन्हा पृथ्वी दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि पृथ्वी को पवित्र और पूज्य न मान कर उपभोग्य माना जा रहा है। आज स्वार्थ की आंधी में जिसे जो भी मिल रहा है, उस पर अपना अधिकार जमा रहा है। विकास के नाम पर वन, पर्वत, घाटी, पठार, मरुस्थल, झील, सरोवर, नदी और समुंद्र जैसी भौतिक रचनाओं को ध्वस्त करते हुए मनुष्य के हस्तक्षेप प्ररिस्थितिकी के संतुलन को बार-बार खेल रहे हैं। यह प्रवृत्ति अतिवृष्टि, अनावृष्टि, तूफान,भूस्खलन, बाढ आदि प्रकृतिक आपदाओं के रूप में दिखाई पड़ते हैं। मनुष्य के हस्तक्षेप के चलते जैव विविधता घट रही है और बहुत से जीव_ जंतुओं की प्रजातियां समाप्त हो चुकी है। हमारा मौसम का क्रम उलट _पलट रहा है। गर्मी, जाडा बरसात की अवधि सिसकती जा रही है, जिसका असर खेती, स्वास्थ और जीवन क्रम पर पर रहा है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने कहा कि प्रकृति के सभी अंगों में परस्पर निर्भरता और पूरकता होती है, पर हम उसकी अनदेखी करते हैं। इस उपेक्षा वृत्ति के कई कारण हैं। एक यह की परिवर्तन अक्सर धीमे-धीमे होते हैं और सामान्यतः आम जन को उनका पता नहीं चलता। उदाहरण के लिए ऑक्सीजन, वृक्ष और कार्बन डाई _ऑक्साइड के रिश्ते को हम ध्यान में नहीं ला पाते। आज पेड़ काट रहे और उनकी जगह कंक्रीट के जंगल मैदानों में ही नहीं, पहाड़ों पर भी खड़े हो रहे हैं। जीवन की प्रक्रिया से इस तरह का खिलवाड़ अक्षम्य है, पर विकास के चश्मे में कुछ साफ नहीं दिख रहा है और हम सब जीवन के विरोध में खड़े होते जा रहे हैं। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि दूसरा कारण यह है कि प्रकृति और पर्यावरण की जिम्मेदारी किसी अकेले की नहीं, समाज की होती है, लेकिन लोग उसे सरकार पर छोड़ देते हैं। विकास की दौड़ में भौतिकवादी, उपभोक्तावादी और बाजार प्रधान युग में मनुष्यता चरम अहंकार और स्वार्थ के आगे जिस तरह नतमस्तक हो रही है,वह स्वयं जीवन विरोधी होती जा रही है। श्रीमती लक्ष्मी सिंह ने कहा कि यदि जीवन से प्यार है तो धरती की सिसकी भी सुननी होगी और उसकी रक्षा अपने जीवन की रक्षा के लिए करनी होगी। प्रकृतिक हमारे जीवन की संजीवनी है, भूमि माता है और उसकी रक्षा और देखरेख सभी प्राणियों के लिए लाभकर है। इस दृष्टि से नागरिकों के कर्तव्यों मैं प्रकृति और धरती के प्रति दायित्वों को विशेष रुप से शामिल करने की जरूरत है। दूसरी और प्रकृति के हितों की रक्षा के प्राविधान और मजबूत करनी होगी। भावी पीढ़ियों के लिए धरती को बेहतर दशा में छोड़कर जाना हमारा परम कर्तव्य है इसी कर्तव्य की पूर्ति से ही हमारा जीवन सार्थक सिद्ध होगा।

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