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वो पगली


कहानी
आखिर आज वो पगली इस नारकीय जीवन से मुक्त हो दुनिया को अलविदा कह गई ।सच कहूं तो मुझे सुनकर तनिक भी दुख नहीं हुआ ।किसके लिए दुख मनाती उस अर्द्ध विक्षिप्त स्त्री के लिए या उसके उस नाजायज बच्चे के लिए जो ना जाने किसके पाप का परिणाम था?
लगभग हर रोज ही उसे मैं देखती थी गोद में अपने उस मासूम बच्चे को लिए हुए ,एक हाथ में छाता और कपड़े का एक थैला कांधे में टांगे हुए लोरी गाती घूमती रहती थी।मेरे घर के सामने से अक्सर ही वो गुजरती हुई दिख जाती थी उसे, देखकर मैं भाव विह्वल हो जाती उसके प्रति मेरी सहानुभूति और उससे एक संवेदनात्मक जुड़ाव ही था जो उसकी तरफ खिंच जाती थी। जब भी उसे गुजरते हुए देखती मैं ठहर कर उसे तब तक देखती रहती जब तक कि वो मेरी नजरों से ओझल न हो जाती। न जाने कैसे कैसे खयाल आते मेरे मन मस्तिष्क में !बगैर दिमाग का इंसान एक अबोध बालक सा होता है या यों कहें कि उस बालक से भी मासूम। मासूम बच्चों से हम प्यार और उसकी देखभाल करते हैं न कि उसके साथ गलत निंदनीय व्यवहार ? इन्हीं सवालों में उलझी उसे अपलक देखती रहती।
सदा की भांति पति को ऑफिस जाते वक्त बाहर गेट तक छोड़ने जब आई तभी मेरी नजर उस पगली पर अचानक पड़ी।मेरे पति जैसे ही मेरी आंखों से ओझल हुए मैं गेट के पास रुक गई और फिर से ,भाव विभोर हो उसे एक टक देखती रही।मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि एक अर्द्ध विक्षिप्त स्त्री में भी कितना वात्सल्य है ,ममता की मूरत लग रही थी । मैं बहुत आहत हो सोच रही थी ,ओह! इस मां को तो अपने शिशु से इस अवस्था में भी कितना प्यार कितना वात्सल्य उमड़ रहा पर इस बच्चे को जन्म देने वाली मां को भी हैवानों ने नहीं छोड़ा, इंसानियत को शर्मसार कर दिया ।उफ्फ ! बहुत पीड़ित हो जाती थी मैं उसे देखकर ।परंतु, मैं समझ नहीं पाती थी कि मुझे उसके लिए क्या करना चाहिए किस प्रकार की मदद करूं ?ये कैसे ,कहां से खाती होगी कहां रहती होगी ऐसे कई सवाल मेरे मस्तिष्क में चलते रहते।तभी मेरे कानों में आवाज आई ऐ,खाना खिलाएगी?मै सुनकर चौंक गई ।वो पगली मुझसे ही कह रही थी , ओह! ये तो बात करती है इसे भूख का एहसास होता है।मुझे तो जैसे कोई मकसद मिल गया हो उसके लिए कुछ करने का और एक पल की देरी किए बगैर मैंने उसे झट से अपने घर बुला लिया।आज मुझे ईश्वर ने कुछ तो अवसर दिया। मेरी ममता और संवेदना को एक छोटा सा ही सही उसके प्रति अपना स्नेह और प्यार देने का अवसर तो दिया।मैंने उसे अपने घर में बुलाकर खाना परोसा तो वो बड़े ही प्यार से खाने लगी उस वक्त वो मुझे एक भूखी बच्ची परंतु, समझदार लग रही थी।उसे इस प्रकार खाते देखकर मुझे एक अलग ही सुख का अनुभव हुआ जो शायद मेरे जीवन का पहला और आखिरी सुख रहा।
खाना खाने के उपरांत उसे अपने जूठे बर्तन धोने थे। मैंने देखा उसमें ये समझदारी थी मगर ,उसे परेशानी हो रही थी क्योंकि, गोद में बच्चे को लिए हुए थी।वो याचना भरी आंखों से मेरी तरफ देख रही थी । मैं समझ गई और मैंने थोड़ी देर के लिए उसके बच्चे को थाम लिया।यह एक पल का सुख मैंने जो महसूस किया वो आजतक मुझे शांत सरोवर में डुबकी लगाने का एहसास दिला गया।शायद कमल का फूल इसीलिए इतना खूबसूरत होता है जो कीचड़ में खिलता है। उस वक्त मैंने एक बच्चे को थामा था वो न गरीब था न ही गंदा।मैं भी उस वक्त मां बन चुकी थी इस मातृत्व का अनुभव था।
ये सभी कुछ चल ही रहा था तभी मेरी काम वाली बाई आ गई और ये सब देखकर मुझे घूरने लगी।जब वो पगली चली गई तो बाई मुझे दुनियादारी की सीख देने लगी।आप भी ना भाभी किसी को भी ऐसे मत बुलाया कीजिए आप जानती भी हैं उसको ? पगली है ,तीन ,चार बच्चे हुए और कुछ ही दिनों में सब मर गए।देखी न कितना गन्दा रहती है और आप उसके बच्चे को भी छू ली….भैया से आपकी शिकायत करूंगी ।आपको उसे नहीं बुलाना चाहिए।आपको घिन भी नही आई उसके बच्चे को छूते हुए….?
मैं बाई की बातें सुनकर चौंक गई।अजीब सी मनःस्थिति थी मेरी! जो गंदा रहती है उसे किसने छुआ जो वो मां बन गई ,उसे तो पेट की भूख सताती थी दैहिक आकर्षण और भूख की बातें वो क्या जाने?उसे तो सही गलत का ज्ञान ही नहीं था जिसने पेट भर खाना खिला दिया उसने जो मर्जी उसके साथ …. एक तरफ सिर्फ पेट की आग जहां विक्षिप्त अवस्था में इसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा था ।दूसरी तरफ संवेदनहीन, दुराचारी इंसानियत को शर्मसार कर रहे थे।
हे भगवान !ये कैसी भूख है,कैसी पिपासा जो इस अबला को भी न छोड़ा । हां ये अबला ही है वरना दुर्गा और काली भी बन सकती थी। उसने तो श्रृंगार को समझा ही नहीं था। सजना – संवरना ना छोटे कपड़े उसने पहने फिर किस तरह का आकर्षण और तृष्णा जागी होगी उन दरिंदों में? कामवाली की बातें और उस पगली ने मेरे मन को झकझोड़ कर रख दिया ।अनगिनत प्रश्न कौंधता रहा अन्तर्मन में …!

लेखिका निवेदिता श्रीवास्तव

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