हर रोज तुम मुझे रुसवा न करो
ऐसे हम से बेवफ़ाई सदा न करो
अर्ज की थी अपनी मोहब्बत की
हर रोज दिल में आगाज न करो
हर शिकवे गिले अब दूर भी करो
न कुछ पूछते हो न कुछ कहते हो
दिल में छुपा कर दर्द गहरा न करो
जमाने में रूसवाई सारे आम न करो
चुपके से बुला कर खामोशी से यूं
खुद को आजाद,मुझे बर्बाद ना करो
हर रोज तुम मुझे रुसवा न करो
रचनाकार
मरियम रामला
ढाका बांग्लादेश