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मेरे पिता

” मेरे पिता ”

मेरे पिता कोई जादूगर तो नहीं,
फिर भी जब मैं रूठती हूं तो यूँ -यूँ,
चुटकी में मना लेते हैं मुझे ।

चाहे जितना भी रोती रहूं,
बातों ही बातों में हँसा देते हैं मुझे ।

वो कोई कुबेर भी नहीं
फिर भी खजाना भरा रखते हैं मेरे लिए।

मन दुखी भी रहे उनका तो भी हँसते हैं मेरे लिए।

नहीं है कोई ऊँची डिग्री हाँसिल उनको
फिर भी पी.एच.डी. प्रोफेसर बन जाते हैं मेरे लिए।

आज को जीते – जीते मेरे कल को सोचने लग जाते हैं मेरे लिए।

जब आए कोई बला मुझ पर
मसीहा बन जाते हैं मेरे लिए ।

भविष्य कैसे सुरक्षित हो मेरा
हर वक्त योजना करते हैं ,
इसके लिए एक नहीं दो- दो
शिफ्ट ड्यूटी करते हैं ।

मेरे पिता मेरा गर्व मेरा अभिमान हैं ,
वो मेरा मालिक मेरा भगवान हैं ।

पिता हैं तो सब है उनके बाद ही रब है।

ममता कर्ण मनस्वी, जमशेदपुर

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