प्रउत दर्शन अधिकतम उपयोग एवं विवेकपूर्ण वितरण के द्वारा सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति की सुनिश्चितता प्रदान करता है
जमशेदपुर। प्राउटिष्ट यूनिवर्सल की ओर से आनंद मार्ग जागृति गदरा में आयोजित पांच दिवसीय उपयोगिता प्रशिक्षण शिविर (यूटीसी) में चौथे दिन एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया इस विचार गोष्ठी का विषय सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के आलोक में प्रउत की भूमिका”
आचार्य प्रियतोसानंद अवधूत , आचार्य पुण्येशानन्द अवधूत, आचार्य रणधीर देव,आचार्य शिवानंद दानी, आचार्य परमानंद अवधूत, आचार्य सतवार्तानंद अवधूत सभी ने कहा कि कहा कि आज की राजनैतिक व्यवस्था में जाति,समूह,वर्ग, समुदाय एवं सम्प्रदाय के हित की राजनीति की जा रही है।दलगत राजनैतिक व्यवस्था में अपने अपने दलगत हित ही सर्वोपरि हो चुके हैं।इसी राजनैतिक दुरावस्था में युगदृष्टा श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने प्रउत दर्शन का प्रतिपादन किया है।जिसमें समग्र मानव जाति के सर्वात्मक उन्नति के साथ पूरी सृष्टि के नैसर्गिक विकास की बात कही गयी है।प्रउत दर्शन अधिकतम उपयोग एवं विवेकपूर्ण वितरण के द्वारा सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति की सुनिश्चितता प्रदान करता है। ज्ञात हो कि मनुष्य की आवश्यकताएं सीमित है, नपी-तुली हैं,जबकि उसकी इच्छाएं अनन्त हैं।अनन्त इच्छाओं की पूर्ति केवल अनन्त सत्ता ईश्वर की प्राप्ति से ही सम्भव हैं। इसलिए प्रउत दर्शन के अनुसार सभी मनुष्यों को अपनी अनन्त मनसाध्यात्मिक क्षमताओं को अनन्त सत्ता परमात्मा की मोड़ना है तथा उसकी सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति प्रउत की संतुलित अर्थव्यवस्था के माध्यम से सुनिश्चित हो जाएगी।
प्रउत दर्शन के अनुसार सीमित दुनियावी भौतिक सम्पत्ति के अनियंत्रित संग्रह पर प्रतिबंध रहेगा।अन्यथा पूंजीवादी अनीति और अतिचार युक्त अर्थव्यवस्था के कारण आज अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होते जाएंगे।प्रउत की विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के अनुसार सभी लोगों की आवश्यकताओं की संवैधानिक सुनिश्चितता तय की जाएगी। परिणामस्वरूप प्रउत की सामाजिक आर्थिक राजनैतिक व्यवस्था में सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय को चरितार्थ किया जाएगा।