राजेश कुमार झा
पटना। पूर्व सांसद और बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन दो दशक से अधिक जेल जीवन बिताते हुए आखिरकार कोविड के शिकार हो गए थे। तिहाड़ जेल में रहते उनकी तबीयत बिगड़ी और अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। उनके समर्थकों को इस बात का अफसोस है कि उस वक्त नीतीश कुमार बीजेपी के साथ सरकार चला रहे थे और आरजेडी से उनकी अदावत चरम पर थी। अगर उस वक्त आज की तरह आरजेडी के साथ नीतीश की छनती तो आनंद मोहन की तरह शहाबुद्दीन भी रिहा हो गए होते। जिस तरह शहाबुद्दीन के समर्थक शहाबुद्दीन की मौत के लिए तिहाड़ जेल प्रशासन को दोषी ठहराते हैं, अगर उसमें तनिक भी दम है तो शहाबुद्दीन खुली हवा में सांस लेकर शायद आज जिंदा भी रहते। वैसे सच तो यही है कि हर आदमी की मौत मुकम्मल है और तारीख-समय भी मुकर्रर होती है।
आनंद मोहन पर मंडरा रहा जेल जाने का खतरा
गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में शिवहर के सांसद रहे आनंद मोहन जेल गए थे। उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। किस्मत से ऊपरी अदालत ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया। तकरीबन डेढ़ दशक तक वे जेल में रहे। जेल में रहते ही उनकी बेटी और बेटे की शादियां हुईं। हां, सगाई और शादी के लिए उन्हें पैरोल जरूर मिला था। बेटे की सगाई के दिन आनंद मोहन की रिहाई की खुशखबरी आई, जब नीतीश कुमार की सरकार ने जेल मैनुअल में संशोधन कर दिया। आनंद मोहन अब जेल से बाहर खुली हवा में सांस ले रहे हैं और एक बार फिर राजनीतिक अखाड़े में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में उनकी रिहाई को चुनौती मिलने के बाद एक बार फिर उन पर जेल जाने का खतरा मंडरा रहा है।
उम्रकैद के बावजूद कैसे रिहा हो गए आनंद मोहन
उम्रकैद की सजा काट रहे बंदियों की रिहाई का जेल मैन्युअल में पहले से एक प्रावधान था, लेकिन वह सभी तरह के बंदियों के लिए नहीं था। लोक सेवकों की हत्या के मामले में वह प्रावधान लागू नहीं होता था। इधर आनंद मोहन की बीवी-बेटे आरजेडी के साथ आ गए थे। प्रसंगवश यह बताना जरूरी है कि आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के विरोध के कारण आनंद मोहन का राजनीतिक अभ्युदय हुआ था। एक समय तो सवर्णों को यह भरोसा हो चला था कि अगड़े-पिछड़े की लड़ाई में सवर्णों की ओर से लालू यादव का विकल्प आनंद मोहन ही बन सकते हैं। खैर, समय एक जैसा तो रहता नहीं। राजनीति में तो यह बात शिद्दत से महसूस की जा सकती है। आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद आज आरजेडी के विधायक हैं तो पत्नी आरजेडी के टिकट पर विधायकी का चुनाव लड़ चुकी हैं। अब तो वे काराकाट से सांसदी का चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर रही हैं। आरजेडी और नीतीश कुमार के एक साथ हो जाने के बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि अब आनंद मोहन की रिहाई तय है। हुआ भी ऐसा ही। सरकार ने जेल मैन्युअल के उस प्रावधान को संशोधित कर दिया, जिसमें लोक सेवक की हत्या के दोषी को आम आदमी की हत्या के सजायाफ्ता की तरह लाभ मिल सके। इसी संशोधन के बाद आनंद मोहन की रिहाई हो गई।
क्यों दिख रहा आनंद मोहन के जेल जाने का खतरा
जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने आनंद मोहन की रिहाई के लिए बिहार सरकार द्वारा जेल मैनुअल में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 8 अगस्त को इस मामले पर अगली सुनवाई होनी है। पहली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से रिहाई के बाबत जवाब तलब किया है। राज्य सरकार विधि विशेषज्ञों से जवाब के लिए राय-मशविरा कर रही है। 8 अगस्त को इस मामले में फैसला तो नहीं आ पाएगा, लेकिन कोर्ट के रुख से संकेत तो जरूर मिल जाएगा कि आनंद मोहन फिर से जेल जाएंगे या रिहाई बरकरार रहेगी।