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तुमसे हूँ मैं, या मुझसे हो तुम

तुमसे मेरे खयाल हे, या मेरे ख्यालों से तुम
सुलझी हुई किताब मैं, उलझें सवालों से तुम।

कैसे सुकून ए जिंदगी कायम होता यहां,
चैनों-अमन के बाग में, ज़ेबा बवालों से तुम।

दिल-जू बनाके उनको ,दिलकश हुए हे ख्वाब
आंसू मेरे रुखसार पे,बोसा रूमालों से तुम।

हासिल नही हो मुझको,इस बात का क्या ही गम
शामिल हो मेरे दिल के आखिर मलालों में तुम।

कैसे तेरे दीदार को तरसे न चश्म मेरे,
फाका-कशी के दौर में, फाजिल निवालों से तुम।

तुमसे ही तो सबा में लज्जत हे घुल गयी,
फीकी सी जिंदगी मे,तीखे मसालों से तुम।

मौत के स्याह रंग से अब लगता नही हे डर,
कोरी सी इस बशर में,बिखरे गुलालों से तुम।

वैभव बड़ोनिया
नरसिंहपुर
मध्य प्रदेश

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