झारखण्ड में नहीं हैं एससीडी के मरीजों के लिये विशिष्ट देखभाल की कोई व्यवस्था, बड़ी चुनौती से निपटने के लिए समय पर जांच और उपचार जरूरी: डॉ विद्यापति
जमशेदपुर: सिकल सेल डिजीज (एससीडी) रक्त से संबंधित एक आनुवांशिक रोग है, जो कि भारत में लगातार सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चुनौती बना हुआ है। इस रोग में व्यक्ति को बार-बार बहुत तेज दर्द होता है जिससे उसका शरीर काफी कमजोर हो जाता है। यही नहीं, इससे कई गंभीर स्वाास्थ्य समस्यायें होने की भी आशंका बढ़ जाती है जिनमें निमोनिया, रक्तप्रवाह में संक्रमण, स्ट्रोक और तेज तथा स्थायी दर्द शामिल है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में नाइजीरिया के बाद सबसे ज्यादा एससीडी के मामले हैं। ऐसा अनुमान है कि जनजातीय आबादी में एससीटी के 18 मिलियन और एससीडी के 1.4 मिलियन रोगी हो सकते हैं। जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, अनुसूचित जनजाति में जन्म लेने वाले 86 में से 1 बच्चे को एससीडी होता है। इस बढ़ते बोझ को देखते हुए, एमओटीए ने सिकल सेल डिजीज सपोर्ट कॉर्नर की स्थापना की है, ताकि जनजातीय क्षेत्रों में मरीजों और स्वास्थ्य रक्षा सेवाओं के बीच के अंतर को कम किया जा सके। झारखण्ड इस बीमारी का प्रमुख क्षेत्र है, जहाँ सिकल सेल एनीमिया और थैलेसेमिया की मौजूदगी की दर 8 से 10 प्रतिशत है। इस प्रकार झारखण्ड में यह बीमारी स्थानिय हो चुकी है। राज्य में एससीडी के मरीजों के लिये विशिष्ट देखभाल की कोई व्यवस्था नहीं है और उनका इलाज अक्सर आम मरीजों की तरह किया जाता है। इस संबंध में रांची के राजेन्द्र इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (रिमस) में मेडिसिन के एचओडी डॉ. विद्यापति ने कहा कि हमें मरीजों की जाँच करने और उन्हें त्वरित चिकित्सकीय उपचार देने के लिये कुशल लोग और अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा चाहिये। हालांकि राज्य में ऐसे मामलों की जाँच और सही उपचार के लिये प्रयोगशालाएं और वार्ड नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि एससीडी माता-पिता से बच्चों को होता है, इसलिये महिलाओं की विवाह से पूर्व और प्रसवपूर्व जाँच इस बीमारी को फैलने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसके लिये हमें ऐसे हीमेटोलॉजिस्ट्स और लैब तकनीशियन चाहिये, जो डॉक्टैरों को बीमारी पर जानकारी दे सकें। एससीडी से निपटने में सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं इसका सही समय पर पता लगाना, जाँच और उपयुक्त उपचार जरूरी है। डॉ. विद्यापति ने बताया कि वैसो-ऑक्लुइसिव क्राइसेस (वीओसी), सिकल सेल डिजीज की एक आम जटिलता है और यह तब होता है, जब शरीर के किसी भाग में रक्त वाहिकाएं बीमार लाल रक्त कणिकाओं के कारण बाधित हो जाती हैं। वीओसी के कारण बहुत कष्ट कारी दर्द होता है, जो एक सप्तास तक बना रहता है। इससे एनीमिया, अंग की खराबी और जल्दी मौत भी हो सकती है। इस दर्द की आवृत्ति का अनुमान लगाना कठिन है और यह अलग-अलग मरीज में अलग-अलग तरह का होता है। ऐसा देखा गया है कि वीओसी का मरीजों की मृत्यु दर पर बड़ा प्रभाव होता है। एनीमिया, तिल्ली के काम में खराबी और न्यू मोकोकल सेप्सिस जैसे द्वितीय संक्रमण उन दूसरी जटिलताओं में से कुछ हैं, जो मरीजों को हो सकते हैं। एससीडी का गर्भवती महिलाओं पर भी बड़ा प्रभाव होता है, और उन्हें अक्सर एनीमिया हो जाता है। इस स्थिति से प्रभावी तौर पर निपटने के लिये मरीजों को हाइड्रोक्सीनयूरिया दिया जाता है। अन्य उपचारों में संक्रमण से लड़ने के लिये एंटीबायोटिक्सव और विटामिन पूरक शामिल हैं, ताकि लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) बनाने में मदद मिल सके।