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जादूगोड़ा के आस-पास ग्रामीण इलाकों में आधुनिकता की झलक


सौरभ कुमार
जादूगोड़ा। प्रकृति को हम जितने क़रीब से देखते हैं, उतने ही बेहतर तरीक़े से समझते हैं। मिट्टी के घर के बारे में तो सुना या पढ़ा होगा, तस्वीरों मैं जो घर आप देख रहे हैं ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक तरीके से बनाया गया है, जिसमें मिट्टी की खुशबू के साथ-साथ आधुनिकता की झलक भी आपको देखने को मिलेगी। अगर आपको इसका अद्भुत एहसास करना है तो आपको जादूगोड़ा के आसपास ग्रामीण इलाकों में स्वयं आकर देखना पड़ेगा,अनुभव करना पड़ेगा। एक बात आपको कॉमन लगेगी यहां रहनेवाले लोगों की सोच और प्रकृति के लिए उनका लगाव। शायद यही कारण है जो इन लोगों को हम सब से ख़ास बनाता है, साथी साथ आपको बता दूं कि मिट्टी का घर बनाना हो या फिर मिट्टी से बने घरों का मरम्मत करना हो तो किसी एक्सपर्ट या स्कील्ड की आवश्यकता इन्हें नहीं होती। इतना तो घर की महिलाएं खुद ही कर लेती हैं। मिट्टी लेपन कला में वह माहिर होते हैं। उन्हें प्रकृति से बेहद लगाव है। इसीलिए वह अपने जीवन को भी ईको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल तरीकों से जीने की कोशिश करते हैं। दिवाल बनाने का काम घर के ही सदस्य मिल जुल कर खुद ही कर लेते हैं। कहीं से मजदूर मंगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। ज्यादातर घरों में आप देखेंगे इनका घरों का छप्पर पुआल टाली अल्बेस्टर या खपरे का होगा, समय के बदलाव के साथ-साथ अब तो मार्केट में ब्लूस्कोप आ गया है जो शायद बहुत ही कम आपको देखने को मिलेंगे। लिपाई पोताई महिलाएं कर लेती हैं। रंग के लिए भी स्थानीय लाल सफेद काली मिट्टी और पेड़ों के छाल का उपयोग किया जाता है। घर की बनावट और कलाकृति को समझने के लिए आपको अंतरात्मा वाली चश्मा से देखना होगा। सबसे खास बात, पारंपरिक घर ईको फ्रेंडली हैं, अगर घर के अंदर आप जाए गर्मी के दिनों में तो आपको घर के अंदर में ठंडक का अनुभव होगा, वही जाड़े में घर के भीतर आपको गर्मी का अनुभव होता है। घर की साज- सज्जा भी पारंपरिक होता है।

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