गोपाल महतो के नेतृत्व में हूल दिवस पर वीर शहीद सिद्ध कान्हु को श्रद्धा सुमन अर्पित किया
जमशेदपुर। झामुमो नेता गोपाल महतो ने कहा मौजूदा संथाल परगना का इलाका बंगाल प्रेसिडेंसी के अधीन पहाड़ियों एवं जंगलों से घिरा क्षेत्र था। इस इलाके में रहने वाले पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासी खेती-बाड़ी करके जीवन-यापन करते थे और जमीन का किसी को राजस्व नहीं देते थे। ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व बढ़ाने के मकसद से जमींदार की फौज तैयार की जो पहाड़िया, संथाल और अन्य निवासियों से जबरन लगान वसूलने लगे। लगान देने के लिए उनलोगों को साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता और साहूकार के भी अत्याचार का सामना करना पड़ता था। इससे लोगों में असंतोष की भावना मजबूत होती गई। सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव चारों भाइयों ने लोगों के असंतोष को आंदोलन में बदल दिया। आंदोलन की शुरुआत 30 जून, 1855 को 400 गांवों के करीब 50 हजार आदिवासी भोगनाडीह गांव पहुंचे और आंदोलन की शुरुआत हुई। इसी सभा में यह घोषणा कर दी गई कि वे अब राजस्व नहीं देंगे। इसके बाद अंग्रेजों ने, सिद्धू, कान्हू, चांद तथा भैरव- इन चारों भाइयों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जिस दरोगा को चारों भाइयों को गिरफ्तार करने के लिए वहां भेजा गया था, संथालियों ने उसकी गर्दन काट कर हत्या कर दी। इस दौरान सरकारी अधिकारियों में भी इस आंदोलन को लेकर भय पैदा हो गया ।
एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम में मुख्य रूप से झामुमो नेता गोपाल महतो के साथ राजेश महतो, शिव शंकर महतो, सूरज सिंह, रोहित लोहरा, मनिल महतो ,राजकुमार सिंह , ब्रह्मा प्रधान ,संतोष प्रसाद, राकेश रजक, कैलाश महतो, कोला मुखी ,सुनील गुप्ता,गुरमीत सिंह मिंटू ,चंदन महतो के साथ कई झामुमो नेता एवं कार्यकर्ता उपस्थित थे।