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ग़ज़ल

प्यार करना भी नहीं उससे मुकरना भी नहीं
दूर रहकर है तड़पती और मिलना भी नहीं//

देख के हम होश अपने फिर कहीं खो ही न दें
राह से तुम अब कभी मेरी गुज़रना भी नहीं//

देख टुकड़े लाख होंगे गर न सँभला आज तू
दिल मेरे तू ग़ैर चीज़ों पर मचलना भी नहीं//

जब नहीं वो साथ है तो जीस्त ये बेकार है
अब मुझे सजना, सँवरना औ निखरना भी नहीं//

जैसी हूँ स्वीकार गर कर सकते हो कर लो मुझे
मत बदलना आप भी मुझको बदलना भी नहीं//

देख कर अनदेखा करते लोग तुमको जिस जगह
उस जगह पर भूल कर देखो ठहरना भी नहीं,//

दर्द के सब घूँट हँस कर जब्त कर ‘ऋतु’ आँख में
दिल मेरे तुझको कसम है तू बिखरना भी नहीं//

स्वरचित ✍️
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ, उत्तर प्रदेश

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