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ख्वाब को रोको ना सजने

ज़ख्म को नासूर सह के ही बनाना क्यूँ यहांँ है,
गुरबतों में ज़िंदगी रहकर बिताना क्यूँ यहांँ है।

कर रहे तारीफ लेकिन पीठ पीछे वार करते,
जो मुखौटे में छुपे उनसे निभाना क्यूँ यहांँ है।

हो फरिश्ता ही सरीखा कौन बंदा इस जहांँ में,
खुद बदल जाए जहांँ को आज़माना क्यों यहांँ है।

कुछ बदलते लोग देखे सीख हमको दे रहे थे,
दोगलापन देख के अपना बनाना क्यूँ यहांँ है।

रख हसद करते बुराई दूसरों की बेहया जो,
आईना इन बेहयाई को दिखाना क्यूँ यहांँ है।

है बहुत आसां नसीहत खूब देना दूसरों को,
दास्ताँ सबकी अलग फिर सिर खपाना क्यूँ यहांँ है।

ख्वाब को रोको नहीं सजने “अना”दो ज़िंदगी में,
ज़िंदगी थोड़ी कदम पीछे हटाना क्यूँ यहांँ है।

स्वरचित अनामिका मिश्रा
झारखंड सरायकेला

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