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बिहार पटना । राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कर्नाटक चुनाव में विपक्ष द्वारा आर्थिक आधार पर कमजोर मुस्लिम वर्ग को आरक्षण देने के वादे को अनुचित ठहरा दीया है, वह समझ में आता है। भारत जैसे संप्रभु संवैधानिक राष्ट्र में पंथक आधार पर आरक्षण की बात नहीं की जा सकती, लेकिन जिस देश में पहले से ही जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था लागू हो, वहां पर आर्थिक रूप से कमजोर मुस्लिम वर्ग के लिए आरक्षण की मांग करना अनुचित कैसे हो सकता है? श्रीमती सिन्हा ने कहा कि जबकि अनारक्षित स्वर्ण वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए 10% आरक्षण की बात को स्वीकार कर लिया गया हो। जब भारतीय संविधान के अनुच्छेद-15 में ‘पंथ, मूलवंश, जाति, लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर भेद करना निषिद्ध है’तो फिर जाति आरक्षण को अब तक संवैधानिक मान्यता किस आधार पर दी जाती रही है? स्वाधीन भारत के संविधान को लागू हुए 73 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। बावजूद इसके जातिगत आरक्षण इस देश की मजबूरी बनी हुई है। क्या इसे जाति आधारित राजनीतिक की मजबूरी मान लिया जाए? श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने आगे कहा कि यदि इस देश का यही ध्रुव सत्य है तो फिर विपक्ष कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल अपने मुस्लिम वोट बैंक की खातिर इस वर्ग के कमजोर तबके के लिए 10% आरक्षण की बात कहते हैं तो इससे अनुचित क्यों बताया जा रहा है? जब इस देश की वोटखोर राजनीतिक के लिए आरक्षण अपरिहार्य बन चुका हो तो फिर उसमें उचित-अनुचित का छिद्रान्वेषण करना ठीक नहीं। देश में 50% तक की सीमारेखा बाले जातिगत आरक्षण के औचित्य पर भी अब विचार करने की जरूरत है। ऐसे में सत्तारूढ़ दल भाजपा को चाहिए कि वह देशहित में विभेदकारी जातिगत आरक्षण के विषय में भी कुछ विचार करें।