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आनंद मार्ग झारखंड से गए आचार्य सत्याश्रयानन्द अवधूत बांग्लादेश धर्म महासम्मेलन को संबोधित किया

परमात्मा को मानने वाले किसी से भी घृणा नहीं कर सकते कारण सभी परम पुरुष के संतान है

एक पिता के बेटे 500 जाति के नहीं हो सकते जो परम पुरुष को मानते हैं वह जात-पात के भेद को नहीं मानते*
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जमशेदपुर।
बांग्लादेश में आयोजित तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन को संबोधित करने आनंद मार्ग के रांची से श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत के प्रतिनिधि के रूप में सीनियर आचार्य आचार्य सत्याश्रयानन्द अवधूत धर्म महासम्मेलन को संबोधित किया जमशेदपुर एवं उसके आसपास के लगभग 2000 से भी ज्यादा आनंद मार्गी बांग्लादेश तीन दिवसीय धर्म महासम्मेलन में भाग लिए जो लोग इस धर्म महा सम्मेलन में शारीरिक रूप से सम्मिलित नहीं हो पाए हैं वह घर बैठे भी वेब टेलीकास्ट के माध्यम से मोबाइल एवं लैपटॉप पर धर्म महासम्मेलन का आनंद ले रहे हैं धर्म महासम्मेलन आनंद उत्तरा मास्टर यूनिट, जिला ठाकुर गांव बांग्लादेश में आयोजित किया गया था आनन्द मार्ग प्रचारक संघ बांग्लादेश के चेयरमैन आचार्य सुजीतानंद अवधूत के देखरेख में कार्यक्रम हुआ।
भारत से भाग लेने के लिए आचार्य सत्याश्रयानन्द अवधूत ,आचार्य कर्मयोगानंद अवधूत ,आचार्य शुभगतानंद अवधूत, अवधूतिका आनंद देवश्री आचार्या,
औरअवधूतिका आनंद प्रदीप्ता आचार्या गये थे।
भारत से गए प्रतिनिधियों ने बांग्लादेश के संस्था के विभिन्न यूनिटों का दौरा भी किया

साधक साधिकाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में गुरु सकाश, पाञ्चजन्य एवं योगासन का अभ्यास अनुभवी आचार्य के निर्देशन में किया।
संध्याकाल में सामूहिक धर्म चक्र किया गया आनंद मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत के प्रतिनिधि के रूप में आचार्य सत्याश्रयानन्द अवधूतने प्रवचन में कहा कि डरने की कोई जरूरत नहीं परम पुरुष हमारे साथ हैं परम पुरुष के बाहर में और कोई दूसरी सत्ता नहीं है क्योंकि सब कुछ उनकी मानस कल्पना है इसलिए उनके लिए सिर्फ एक ही जगह है उनके बाहर में कुछ नहीं है* कोई मनुष्य अगर चाहे कि में परमात्मा के परम पुरुष के मन के बाहर चला जाऊं बाहर रहूं नहीं हो सकेगा क्योंकि बाहर कुछ है ही नहीं और यह बात भी हम लोगों को मालूम होना चाहिए कि परम पुरुष अगर चाहे तो भी किसी से वह नहीं कह सकेंगे कि तुम बाहर चले जाओ क्योंकि सब कुछ उनके भीतर है अगर वह व्यक्ति बाहर चला जाए तो इसका माने उनके बाद भी कुछ है किंतु उनके बाहर कुछ नहीं है इसलिए परम पुरुष किसी को तुम चले जाओ कह नहीं सकते इसका माने हुआ अपने मन के भीतर सबको रखना उनके लिए फर्ज है पापी अगर अपनी ग्लानी के कारण यह सोचे कि में तो परम पुरुष को पा नहीं सकता परम पुरुष तो मेरी ओर ताकते तक नहीं तो अपनी ग्लानी के कारण वह वैसा सोचता है अगर कोई बच्चा रास्ते पर चल रहे हैं अगर वह बच्चा कीचड़ में गिर गया कपड़े पर कीचड़ लग गई तो कुछ लोग देखकर हंसेगे मगर उस बच्चे के पिता तुरंत उसे उठाकर उसके कपड़े को साफ कर देंगे और गोद में बैठा लेंगे पापी के मन में यह भावना आ सकती है वह भावना हो सकती है कि परम पुरुष का में ना पसंद हूं मगर परम पुरुष के लिए सौ बात नहीं है गिरे हुए जो लड़के हैं जो लड़का कीचड़ में गिर गया है उसके लिए पिता के मन में अधिक हमदर्दी रहती है तो कहना यही है कि परम पुरुष अगर चाहे भी तो किसी को अपने मन के दायरे के बाहर फेंक नहीं सकते परम *पुरुष अपने मन में दुनिया को विश्व ब्रम्हांड को बनाते हैं अपने मन में सबका कारण देखते हैं और आखिर तक सबको अपने मन में लेकर आते हैं यही है उनकी लीला लीला उनकी नहीं रहती तो लोग उन्हें पहचानते नहीं उन्होंने कहा कि मनुष्य के मन में यह विचार आया कि विश्व की सृष्टि क्यों हुई है कहां से हुई है इसकी आवश्यकता क्या थी ज्ञान मार्गी थक गए कारण उन्हें मालूम ही नहीं हुआ क्योंकि परमपुरुष ज्ञानमार्गीओं की पहुंच नहीं थी अगर पहुंच रही थी तो वे परमपुरुष से पूछ लेते क्यों इस दुनिया को बनाए हो मगर वहां तक ज्ञान मार्गी की पहुंच तो नहीं है इसलिए वे पूछेंगे कैसे उनकी बुद्धि भी उतना काम नहीं की मगर भक्तों की पहुंच परम पुरुष तक है क्योंकि भक्तों का काम है सेवा करना परम पुरुष की सेवा परम पुरुष की सही सेवा किस तरह हो सकती है परम पुरुष की यह जो संतान है या जो विश्व ब्रम्हांड है इसकी सेवा करने से ही परम पुरुष की सेवा हो गई* क्योंकि उसे परम पुरुष खुश होते हैं तो भक्तों की पहुंच परमपुरुष तक है वह सेवा करेंगे तो नजदीक पहुंच ही जाएंगे यह सेवा करेंगे और चुपके चुपके पूछ लेंगे क्यों तुमने इस ब्रह्मांड की सृष्टि की है।

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