आदिवासियों के अस्तित्व पहचान और हिस्सेदारी का मामला आज विनाश के कगार पर : सालखन मुर्मू
जमशेदपुर। आदिवासियों के अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी का मामला आज विनाश के कगार पर खड़ा है। इसके लिए निश्चित रूप से सोरेन खानदान (शिबू- हेमंत) और उनके अंधभक्त जो गांव-गांव में अवस्थित हैं, आदिवासी स्वशासन प्रमुख – माझी परगना, मानकी- मुंडा आदि दोषी हैं। क्योंकि दोनों ने मिलकर आदिवासी समाज को गुलाम बनाकर अंधकार में धकेल कर रखा है। दोनों ने अब तक आदिवासियों के हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार आदि को बचाने की जगह बेचने का काम किया है।
यह बातें प्रेस बयान में पूर्व सांसद एवं सेंगल अभियान के प्रमुख साल्कन मुर्मू ने कहीं। उन्होंने कहा कि झारखंडी जन का दुर्भाग्य है कि सोरेन खानदान और उनके शागीर्दों ने सिदो मुर्मू और बिरसा मुंडा जैसे शहीदों के सपनों को बर्बादी की कगार तक पहुंचा दिया है। मुर्मू ने आरोप लगाते हुए कहा कि 2) सोरेन खानदान ने लूट, झूठ, भ्रष्टाचार के सभी मानदंडों को तोड़ दिया है। 18.9.23 को सुप्रीम कोर्ट ने जहां हेमंत सोरेन के राहत आवेदन को ठुकरा दिया है तो अब गैर कानूनी जमीन के खरीद- बिक्री आदि मामलों पर 23.9.23 को उन्हें ईडी के पास पेश होना पड़ सकता है। शिबू सोरेन को भी 29.9.23 को भ्रष्टाचार के मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट में पेश होना है।
3) अब विधायक और खानदान की बहू सीता सोरेन का मामला भी आ गया है। जिसने 2012 में रिश्वत लेकर राज्यसभा का वोट बेचा था। जेल गई थी। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किया था कि जब हमारे ससुर शिबू सोरेन को 1998 में राहत मिली तो उसी तर्ज पर हमें भी राहत दी जाए। तब सीबीआई ने सीता सोरेन के खिलाफ अपना पक्ष रखा, बिरोध किया। तब सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता वरुण कुमार सिन्हा के मार्फत हमने और स्वर्गीय प्रोफेसर बीके मिश्रा ने मिलकर एक हस्तक्षेप याचिका दायर किया था कि शिबू सोरेन आदि को दी गई फैसले पर पुनर्विचार हो। जिसे 7.3.2019 को स्वीकार कर लिया गया। अब राष्ट्रहित में तथा राजनीति में नैतिकता को बहाल करने वाला फैसला आया है। अब 7 – सदस्य वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस पर पुनर्विचार करेगा। उम्मीद है फिर एक बार जेएमएम घूसकांड के आरोपी तथा सीता सोरेन जेल जा सकते हैं। अन्ततः सोरेन खानदान पूर्णता बेनकाब हो सकता है।
4) कुर्मी महतो पहले आदिवासी सूची में कभी नहीं थे और जोर जबरदस्ती करके एसटी नहीं बन सकते हैं। भले ही कुछ राजनीतिक दल वोट बैंक के लोभ लालच में उनको भड़का रहे हैं। यदि उनके पास प्रमाण और तथ्य हैं तो उन्हें हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। देश और जनता को तबाह और गुमराह करने की जरूरत नहीं है। कुर्मी महतो के आदिवासी बिरोधी प्रयास को रोकने के लिए भारत के 13 करोड़ असली आदिवासी उग्र आंदोलन के लिए बाध्य हो सकते हैं। चूंकि बिहार, यूपी जैसे प्रदेशों में कुर्मी महतो भरे पड़े हैं।
5) सरना धर्म कोड और मरांग बुरु को बचाने के लिए विशाल सरना धर्म कोड जनसभा का आयोजन रांची के मोरहाबादी मैदान में 8 नवंबर 2023 को आयोजित होगा। जिसमें 2011 की जनगणना में सरना धर्म लिखाने वाले लगभग 50 लाख प्रकृति पूजक आदिवासियों को आमंत्रित किया जाता है। भारत देश के अलावे नेपाल, भूटान बांग्लादेश आदि से भी इस निर्णायक सरना धर्म कोड जनसभा में प्रकृति पूजक आदिवासी शामिल होने के लिए आमंत्रित हैं। सेंगेल का नारा है – कोड दो, आदिवासी का वोट लो।