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KM की कामयाबी और MRF के शेयरों के इतिहास बनाने की कहानी, बात बहुत खास है!

राजेश कुमार झा


टायर बनाने वाली कंपनी MRF के एक शेयर की कीमत 1 लाख रुपये से ऊपर हो गई। इसके साथ ही देश में एक रिकॉर्ड बन गया। एमआरएफ भारत की ऐसी कंपनी बन गई है जिसके शेयरों की दर ने 1 लाख रुपये का आंकड़ा छुआ है। एक वक्त था कि एमआरएफ की स्थापना करने वाले को मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के सैंट थॉमस हॉल में जमीन पर सोना पड़ता था। चुनौतियों से भरे हालात में एक कंपनी की नींव रखना और फिर लगातार लगन और मेहनत के दम पर रिकॉर्ड बना देना- एमआरएफ की यह कहानी काफी प्रेरणादायी है। तो चलिए जानते हैं एमआरएफ के बनने से लेकर आज तक की कहानी…वो वर्ष 1961 था जब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के. कामराज ने तिरुवत्तियुर स्थित एमआरएफ के नए पायलट प्लांट से पहला टायर निकाला। लेकिन 15 वर्ष पहले वर्ष 1946 में केएम मम्मेन मप्पिलाई ने तिरुवत्तियुर में ही खिलौना बैलून बनाने से कारोबार की दुनिया में कदम रखा था। तब उन्होंने सिर्फ 14 हजार रुपये से शुरुआती पूंजी से एक शेड से बिजनस की शुरुआत की थी। तीन साल बाद, 1949 में बैलून से इतर रबर के खिलौने, ग्लव्स और कंडोम भी बनाए जाने लगे। उसी वर्ष केएम ने तत्कालीन मद्रास (मौजूदा चेन्नई) में अपना पहला ऑफिस खोला। कारोबार के विस्तार के बाद उन्हें सफलता मिलती गई तो मनोबल बढ़ गया। फिर केएम के मन में एक बड़ा डग भरने की चाहत जागी। चूंकि उनके भतीजे का टायर बिजनस था, इसलिए केएम को लगा कि इस क्षेत्र में दांव आजमाया जा सकता है। केएम के भतीजे के प्लांट में फटे-पुराने टायरों को नया बनाया जाता था। वो विदेशी कंपनियों से रबर मंगाते थे। तब केएम को अहसास हुआ कि वो फटे-पुराने टायरों को नया बनाने के लिए जरूरी रबर के मार्केट में किस्मत आजमा सकते हैं। केएम ने 1952 में उस ट्रेड रबर की मैन्युफैक्चरिंग भी शुरू कर दी। बड़ी बात है कि उनका माल विदेशी कंपनियों के रबर से बेहतर था। यही वजह रही कि महज चार वर्षों यानी 1956 में ही रबर मार्केट में एमआरएफ की हिस्सेदारी 50% तक पहुंच गई। इस सफलता ने केएम के हौसले को तूफान की तेजी दे दी। उन्होंने अब खुद टायर बनाने के बिजनस में उतरने का मन बना लिया। अब केएम के सामने सवाल यह था कि टायर मैन्युफैक्चरिंग के बिजनस में उतरें तो कैसे? आखिर उन्होंने अमेरिकी टायर कंपनी ‘मैन्सफील्ड टायर ऐंड रबर’ के साथ हाथ मिलाया और वर्ष 1961 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के. कामराज के हाथों टायर कंपनी का उद्घाटन हो गया। उसी वर्ष केएम ने अपनी कंपनी एमआरएफ को मद्रास स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट करवा दी। चूंकि मैन्सफिल्ड जिस तकनीक से टायर बनाता था, वह भारत की सड़कों के माकूल नहीं था, इस कारण एमआरएफ के साथ बने उसके टायरों में फॉल्ट दिख रहे थे। केएम अभी इस बारे में सोच ही रहे थे कि यह अफवाह उड़ने लगी कि भारत की कंपनी में इतनी कुशलता नहीं कि वो दमदार टायर बना ले। इस अफवाह के पीछे वही विदेशी कंपनियों का हाथ था जिन्हें एमआरएफ से डर लगने लगा था। उस वक्त भारत के टायर मार्केट पर गुडईयर, डनलप और फायरस्टोन का कब्जा था। भारत में सरकारी ऑर्डर्स भी डनलप को मिला करते थे। एक तरफ केएम विदेशी कंपनियों के त्रिकोण को भेदने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी तरफ भारत सरकार को भी यह चिंता सता रही थी कि अगर ये तीन विदेशी कंपनियों का कब्जा बरकरार रहा तो वो यूं ही मनमानी करती रहेंगी। इस कारण भारत सरकार ने भी तय किया कि एमआरएफ को अपनी क्षमता साबित करने का मौका दिया जाए। वर्ष 1963 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने हाथों से एमआरफ की एक फैक्ट्री की नींव रखी और कंपनी को सरकारी ठेके मिलने लगे। केएम के लिए टायर बिजनस की दुनिया में कदम जमाने के लिए इतना काफी था। उन्होंने अगले चरण में एमआरएफ को घर-घर तक पहुंचाने की स्ट्रैटिजी पर काम करना शुरू किया। उन्होंने रिटेल मार्केट में धमाका करने की ठान ली। उन्होंने तब भारतीय विज्ञापन जगत के पिता कहे जाने वाले एलीक पदमसी (Alyque Padamsee) को नौकरी पर रखा। पदमसी ने बजाज, सर्फ, फेयर एंड हैंडसम जैसी सैकड़ों कंपनियों के लिए काम किया है। इसके दम पर वो विज्ञापन जगत के ऑस्कर माने जाने वाले क्लिओ हॉल ऑफ फेम (Clio Hall of Fame) में शामिल होने वाले पहले भारतीय बन गए। बहरहाल, एमआरएफ से जुड़ने के बाद पदमसी ने सीधे ट्रक ड्राइवरों के संपर्क साधने की रणनीति बनाई। ट्रक ड्राइवरों ने उनसे कहा कि टायर तो मजबूत और ताकतवर होना चाहिए। इसी बातचीत के आधार पर पदमसी ने 1964 में का लोगो तैयार किया। फिर जब टीवी का जमाना आया तो 1980 के दशक में एमआरएफ का विज्ञापन छा गया। उधर, 1964 में ही एमआरएफ ने बेरुत में अपना दफ्तर खोल दिया। यह विदेशी धरती पर उसका पहला ऑफिस था। 1967 में एमआरएफ के नाम एक रिकॉर्ड हासिल हुआ। किसी भारतीय कंपनी ने पहली बार अमेरिकी बाजार में टायर का निर्यात किया। जो कंपनी एमआरएफ से पहले भारत में मात खाई, उसे अपने ही देश में खतरा दिखने लगा था। यह सबकुछ कुछ ही सालों में हुआ। इधर, भारत में एमआरएफ अपने विस्तार की स्ट्रैटिजी पर आगे बढ़ती रही। उसने भारत की सड़कों के मुताबिक टायरों को अधिक से अधिक दुरुस्त कर रही थी। इसी क्रम में एमआरएफ ने पहली बार भारत में नायलॉन टायर लाया। इस तरह कंपनी का कारोबार बढ़ता गया और शहर दर शहर उसकी फैक्ट्रियां खुलती गईं। एमआरएफ ने अब तक सड़कों पर हवा से बहुत बातें कर ली थीं। अब उसने अपने पंख खोलने का फैसला किया। वह मोटर स्पोर्ट्स और क्रिकेट में भी दाखिल हो गई। कंपनी ने ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट डेनिस लीली को साथ लेकर जहीर खान और इरफान पठान जैसे तेज गेंदबाजों को निखारा। 1980 के दशक में एमआरएफ भारत का सबसे बड़ी नायलॉन पैसेंजर कार टायरों और ट्रक टायरों की सबसे बड़ी विक्रेता बन गईं। फिर जब देश में मारुति 800 से कार क्रांति आई तो उसे भी एमआरएफ के टायरों ने ही गति दी। 1989 में एमआरएफ ने दुनिया की सबसे बड़ी खिलौना बनाने वाली कंपनी हैसब्रो के साथ साझेदारी से फनस्कूल ब्रांड लॉन्च किया। उसी वर्ष उसने कॉनवेयर बेल्ड बिजनस में भी कदम रखा।वर्ष 2007 में कंपनी के ताज में एक और हीरा जुड़ गया जब उसका सालाना टर्नओवर एक अरब डॉलर के पार कर गया। मजे की बात है कि एमआरएफ को इस मुकाम तक पहुंचने में 46 वर्ष लगे लेकिन इस उपलब्धि को सिर्फ चार वर्ष में दुहरा दिया। वर्ष 2011 में एमआरएफ का ऐनुअल टर्नओवर 2 अरब डॉलर को पार किया। आज एमआरएफ का 25 प्रतिशत बाजार पर कब्जा है। दुनिया के 65 देशों में जाते हैं। कंपनी का विदेशी निर्यात करीब तीन अरब डॉलर का है। आज कंपनी न सिर्फ टायर बल्कि ट्यूब, पेंट, कन्वेयर बेल्ट और खिलौने भी बना रही है। यह उस व्यक्ति की सफलता की गाथा है जिसे अपने पिता के जेल जाने के बाद जमीन पर सोना पड़ा था। केएम के पिता का बैंक और अखबार का कारोबार था। सीरिया से केरल आकर बसे इस इसाई परिवार में केएम के कुल नौ भाई-बहन थे। तत्कालीन प्रिंसली स्टेट त्रावनकोर ने केएम के पिता की संपत्ति सीज करके उन्हें दो साल जेल में डाल दिया, तब एक खिलखिलाते परिवार में भूचाल आ गया। तब केएम मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज के स्टूडेंट थे। तब केएम को कॉलेज के हॉल में जमीन पर सोकर रात गुजारनी पड़ी थी। आज उनकी कंपनी के शेयरों न जाने कितने लोगों की चांदी कर दी है। आंकड़े बताते हैं कि जिसने जनवरी 2011 में 1 लाख रुपये लगाकर एमआरएफ के 13 शेयर खरीदे होंगे, उनके शेयरों की जनवरी 2021 में कीमत 12 लाख रुपये हो गई थी। जिसने 1990 में एमआरएफ के 20 हजार शेयर खरीदे होंगे, उनके शेयरों की वैल्यू 2017 में 130 करोड़ हो गई होगी। आज एमआरएफ का शेयर 1 लाख रुपये की कीमत पार करते ही रिकॉर्ड बना दिया। केएम ने 1993 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होकर रिकॉर्ड बनाया था। वो दक्षिण भारत के पहले उद्योगपति थे जिन्हें यह सम्मान मिला था।

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