FeaturedJamshedpurJharkhand

हाड़ मांस का बना हर शख्स निराला हो नहीं सकता : निरंजन


रांची। झारखण्ड हिन्दी साहित्य संस्कृति के तत्वावधान में वसन्त पंचमी एवं निराला जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित ऑनलाइन काव्यगोष्ठी अत्यंत सफलतापूर्वक संपन्न हुई। इस सारस्वत कार्यक्रम की शुरुआत सुनीता कुमारी द्वारा प्रस्तुत ‘या कुंदेंदु तुषारहारधवला’ से हुई। मंच के सचिव बिनोद सिंह गहरवार ने प्रतिभागी रचनाकारों का स्वागत किया। काव्य-पाठ का शुभारंभ गीता चौबे ‘गूँज’ की वसन्त पर सुंदर कविता ‘फिर आया वसन्त’ से हुआ। गीता सिन्हा ‘गीतांजलि’ ने निराला के ‘वर दे वीणावादिणि वर दे’ और ‘राम की शक्तिपूजा’ की कुछ पंक्तियाँ सुनायी। डॉ० मंजु सिन्हा की कविता ‘आया ऋतुराज’ में वसन्त की शोभा की झलक मिली। सुनीता श्रीवास्तव ‘जागृति’ ने निराला की एक व्यंग्य कविता ‘देश को मिल जाय जो पूंजी तुम्हारे मील में है’ का पाठ किया। शांतिलता वर्मा की ‘फागुन के संग आया वसन्त’ मन को भा गयी। वसन्त पर अनिता ‘रश्मि’ की कविता की पंक्ति ‘हर पतझड़ के बाद आता वसन्त है’ निराश मन में आशा का संचार करती है। सुरिन्दर कौर ‘नीलम’ ने अपने सुमधुर स्वर में वसन्त पर बड़ा ही सुंदर गीत प्रस्तुत किया, ‘आने से तेरे लगा आया वसन्त है।’ डॉ० शिवनन्दन सिन्हा की कविता ‘निराला को याद करते हुये’ महाकवि के व्यक्तिव एवं उनकी रचनाधर्मिता की वर्तमानता पर सटीक, तल्ख लेकिन सार्थक टिप्पणी करती है। घटा गिरी की कविता में मनमोहक वसन्त का अच्छा चित्रण है। कृष्ण विश्वकर्मा की अत्यंत लघु कविता की पंक्ति मन वसन्त मन वसन्त’ बहुत अच्छी लगी। विजय रंजन की कविता में पतझड़ के बाद वसन्त का मनोहारी रूप दिखा। डॉ० निशिकान्त पाठक ‘निराला’ ने अपनी ग़ज़ल ‘बदल ही गये रुख मौसम के’ सुनायी। पूनम वर्मा ने वसन्त और प्रेम पर खूबसूरत हाइकु सुनायी-“आखिर हुआ शीत का अंत/ आया वसन्त’ और ‘चंदा सूरज से आँचल को सजा दूँ।’ बिनोद सिंह ‘गहरवार’ की कविता लेखनी की पहली पंक्ति “है लेखनी लखती सदा हिय के उदधि उद्गार को” कवि-कर्म का परिचय देती है। कार्यक्रम के अंत में अध्यक्ष द्वारा अपने उद्बोधन में ‘निराला’, वसन्त पंचमी’ एवं वसन्त पर वक्तव्य दिया गया एवं वसन्त पर अपनी कविता का पाठ किया गया। उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को आम जनता का कवि बतलाया तथा उनके जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा,” राजा से आसन उठता है, ऊंचा कभी फकीरों का, मुकुटों से भी मान कभी बढ़ जाता है जंजीरों का, मस्ती के दीवाने कवि को मोद न मिला अमीरी में ,आग लगा दी दौलत को ढ़ूढ़ी शान्ति फकीरी में। उन्होंने निराला को अपने समय का फकीर एवं संघर्षों से जीवन पर्यंत लड़ने वाला विद्रोही कवि बतलाया। कार्यक्रम का समापन मंच के कोषाध्यक्ष कृष्ण विश्वकर्मा के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
सारस्वत कार्यक्रम की सफलता के लिए मंच के संरक्षक विनय सरावगी एवं अध्यक्ष कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव निरंकुश ने सबको बधाई एवं शुभकामनाएं दीं।

Related Articles

Back to top button