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तुलसी भवन में डेट का वार्षिकोत्सव सम्पन्न

सभी कलाकारों ने दी मनमोहक दिल को छू लेनेवाली शानदार प्रस्तुति


जमशेदपुर। सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मेलन /तुलसी भवन एवं डेट (D.A.T.E.) के संयुक्त तत्वावधान में गत १७-१८ दिसम्बर को संस्थान के मुख्य सभागार में दो दिवसीय नाट्य महोत्सव का आयोजन किया गया। जिसके अन्तर्गत दो हिन्दी नाटक “एक और द्रोणाचार्य” तथा “जिन लाहौर ने नई देख्या वो जन्म्यायी नई” (नाट्यांश) के अलावा नृत्य, परिधान एवं अंताक्षरी वोगैरह का आयोजन किया गया ।
नाट्य लेखक शंकर शेष की ” एक और द्रोणाचार्य” में जहां देश की शिक्षा-व्यवस्था में आज भी राजनीतिक दखल से उपजी सड़ांध उजागर होती है, वहीं प्रगतिशील अफसानानिग़ार असग़र वज़ाहत की कालजयी कृत्ति ” जिन लाहौर ने नई वेख्या वो जन्म्यायी नई” (“जिसने लाहौर नहीं देखा वो जन्मा ही नहीं!”) में आज़ादी के समय देश के विभाजन की वह विभिषिका सामने आई जिसे नाट्य-रूपांतर ने आज़ की नई पीढ़ी के सामने फिर से जिंदा कर दिया।

जमशेदपुर में यह नाटक शिक्षाविद एवं प्रख्यात कवयित्री- गीतकार डाॅ० रागिनी भूषण के रंगमंचीय अभिनय कौशल के लिए हमेशा याद किया जाएगा। जिन लोगों ने बंटवारे की त्रासदियां नहीं झेली और देखी है, उन्होंने भीष्म साहनी की “तमस” और इस नाटक को ज़रूर पढ़नी और देखनी चाहिए। पाकिस्तान में तो यह बंटवारा अजीबोगरीब और बड़ा भयावह-सा तमाशा होकर रह गया था। जो हिंदू अपना घर-बार, खेत-खलिहान और व्यवसाय छोड़ कर हिंदुस्तान आ गये थे। उनकी तमाम जायदादें वहां के मुस्लिम वाशिंदों के बीच बांट दी गई थी।
ऐसे ही एक रतन लाल थे, दंगे में जिनके खुशहाल परिवार के छोटे-बड़े सभी सदस्य क़त्ल कर दिए गए हैं और उनकी बड़ी सी हवेली पर अब सिकंदर मिर्जा का कब्जा है। सिकंदर का परिवार हवेली में घुसते ही देखता है कि किसी कोठरी में उस हिन्दू पंजाबी परिवार की कोई अस्सी वर्षीय वयोवृद्धा बेवा जिंदा बची रह गई है। सिकंदर के परिवार को यह नागवार गुजरता है और वो उसे हवेली को छोड़ कर हिंदुस्तान चले जाने को कहते हैं।

सिकंदर (रमेश चौधरी) –” पाकिस्तान में अब कोई हिन्दू नहीं रह सकता! बुढ़िया..!, तू ज़िंदा कैसे बच गई..? अच्छा है कि किसी को बुला ले और हवेली छोड़कर तू हिंदुस्तान चली जा..!”
बेवा (डाॅ० रागिनी भूषण)– ” पूरा परिवार खत्म हो गया, बेटा..!(रुआंसी हो कर) ..हम लुट गए..! रिश्ते-नाते सब मारे गए..! अब अपना कौन -पराया कौन..? कौन बचा है जिसे बुला लूं..? मेरे लिए जिंदगी क्या..और मौत क्या..?
रागिनी के ये खालिस उर्दू लहज़े में कहे गए संवाद ने दर्शक दीर्घा में बैठे सभी की आंखें नम कर दी और फ़िर हांथ तालियां बजाने पर विवश हो गए।
संवाद की इतनी बेहतर अदायगी दुर्लभ है। मुख्तसर ये कि सिकंदर मिर्जा का पूरा परिवार हमेशा जुगत लगा कर बेवा को हवेली से बाहर करने की फ़िराक में रहा लेकिन आखिरकार बेवा ने सभी का दिल इस क़दर जीत लिया कि आने वाले दिनों में जब दीवाली आई, तो मिर्जा का पूरा परिवार दीवाली मनाने और दीप सजाने में व्यस्त दिखा।

नाटक के सभी पात्र आयशा, पूजा सिंह, अनुज, ज्ञानेंद्र और विनोद कुमार ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ भरपूर न्याय किया। निर्देशक के तौर पर अनुज कुमार श्रीवास्तव अतिशय सफल रहे। प्रकाश व्यवस्था एवं बैकग्राउंड म्यूजिक सभी ने प्रभावित किया।
मौके पर मुख्य अतिथि के रुप में जमशेदपुर पश्चिम के माननीय विधायक श्री सरयू राय एवं विशिष्ट अतिथि स्थानीय दैनिक के सम्पादक श्री संजय मिश्रा के अलावे तुलसी भवन कार्यकारिणी तथा साहित्य समिति के सदस्यों के साथ नगर के शताधिक नाट्य प्रेमियों की उपस्थिति रही ।
उपासना सिन्हा के स्वागत उद्बबोधन एवं डाॅ० संध्या सिन्हा के सधे हुए मधुर स्वर में परिचयात्मक संचालन नाट्य प्रस्तुति में चार-चांद गूंथ गए।

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