FeaturedJamshedpurJharkhand

ग्रीटिंग कार्ड की परम्परा लगभग पूरी तरह से विलुप्त” सौरभ कुमार जादूगोड़ा

जमशेदपुर । नए साल पर ग्रीटिंग कार्ड देने में भी अलग ही आनंद था। ग्रीटिंग कार्ड का दौर के समय बाज़ार में दुकानों से लेकर ठेलों तक तरह तरह के रेडीमेड कार्ड मिलते थे।
अचानक परिवर्तन हुआ संचार क्रान्ति का आगमन हुआ मोबाइल कंपनियाँ आई, एसएमएस का जमाना आया,और उसके बाद आया सोशल मीडिया, फ़ेसबुक इंस्टाग्राम व्हाट्सएप और न जाने क्या क्या? सोशल मीडिया पर शुभकामनाएं भेजना एक बटन की दूरी पर है। संचार क्रांति आने से कुछ चीजें तो बहुत बेहतर हो गई हैं। लेकिन भावनाएं जो लिखकर व्यक्त की जाती थी और जिन्हें अपने जन तक पहुंचाने में जो हल्का सा विलंब होता था। शायद वह एहसास अब कभी देखने को नहीं मिल रहा है। अब वह इंतजार वह बेचैनी पन की अब शायद कोई चिट्ठी आई हो, कोई संदेशा आया हो, शायद कोई अपना हाले-दिल लिखकर भेजा हो, लेकिन न तो साईकिल की घंटी सुनाई पड़ती है और न ही डाकिया नज़र आते हैं,अब तो बस आता है, मोबाइल पर रिंग, एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज और ई-मेल.टेक्नोलॉजी की दुनिया ने उन सुनहरे दिनों को कहीं पीछे छोड़ दिया, वही देने वाले और पाने वाले के बीच की खालीपन को इस टेक्नोलॉजी ने अभी तक पूरी तरह से भरा नहीं है। इसीलिए आजकल त्यौहार सजीव होते हुए भी कागज के जान पड़ते हैं। पहले कागज के त्यौहार कितने सजीव जान पढ़ते थे आप अपने से पूछ लीजिए। क्या इन शुभकामनाओं में वह भावनाएं जुड़ी होती है, जिन्हें हम शुभकामनाएं कहते हैं।

Related Articles

Back to top button